Uttar Pradesh: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में प्रोफेसरों ने बिना धुप से भी सौर ऊर्जा तैयार करने का फार्मूला ईजाद किया है। यानि कि यदि सूरज भी न निकले तो सौर ऊर्जा तैयार होगी। इसका उपयोग बिजली उपकरणों को संचालित करने में किया जा सकेगा।
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इस तकनीक के माध्यम से सूर्य की गर्मी को ही ऊर्जा में बदल कर प्रयोग किया जा सकेगा। विश्वविद्यालय के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के अध्यक्ष डॉ. जीऊत सिंह और असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. प्रशांत सैनी के संयुक्त शोध का यह परिणाम है जो प्रायोगिक से लेकर सैद्धांतिक तौर पर सफल हो रहा है। शोध के दो आयाम भी वित्तीय सहयोग के साथ सफल होंगे। उन्होंने अपने शोध के विषय वस्तु और तकनीकी पहलू को साझा करते हुए कहा कि, इस सोलर प्लांट का प्रयोग उन स्थानों पर किया जा सकेगा जहां कई बार पूरे दिन धूप नहीं निकलती है। यह प्लांट 10 डिग्री सेल्सियस तक की गर्मी को भी सौर ऊर्जा में बदल देगा।
डॉ. प्रशांत द्वारा तैयार किए गए सौलर प्लांट के सैद्धांतिक प्रारूप से संबंधित शोध पत्र को यूनाइटेड किंगडम के अंतरराष्ट्रीय जनरल एनर्जी कन्वर्जन एंड मैनेजमेंट ने भी प्रकाशित किया है। डॉक्टर जीऊत कहते हैं कि कंबाइंड कूलिंग, हीटिंग, पावर एंड डिसैलिनेशन नाम के इस प्लांट में थर्मल आयल से भरी इनक्यूबेटेड ट्यूब से बना सोलर कलेक्टर सौर ऊर्जा को एकत्र करेगा। फिर चेंज मटेरियल टैंक में उसे सुरक्षित करके बिजली से चलने वाले यंत्रों को संचालित किया जा सकेगा।
उन्होंने कहा कि इस नई तकनीक के जरिए दूषित जल को पेयजल में परिवर्तित किया जा सकेगा। डॉ प्रशांत के इस शोध में आईआईटीबीएचयू के मैकेनिकल इंजीनियर विभाग के प्रोफेसर जे सरकार का भी सहयोग मिला है।
शोध के संबंध में डॉ. प्रशांत का कहना है कि सोलर प्लांट का उद्देश्य गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोत के प्रयोग को बढ़ावा देना है। अभी तक हुए शोध कार्य के अनुसार अनुमान है कि इस प्लांट से बिजली बनाने में प्रति यूनिट खर्च भी काम आएगा। उन्होंने कहा कि ऐसा हुआ तो फिर यह बड़े उर्जा प्लांटों से कम खर्चीला साबित होगा। साथ ही लोगों की सरकार पर बिजली को लेकर निर्भरता कम होगी और कई तरह के झंझट से भी मुक्ति मिलेगी।
इसमें वाष्पीकरण की प्रक्रिया से मिली उर्जा टरबाइन को भी चलाएगी जिससे बिजली का निर्माण शुरू हो जाएगा। बिजली बनने की प्रक्रिया दिन और रात दोनों में लगातार जारी रहेगी। यह इसकी बड़ी खासियत होगी। इस शोध के दो आयाम विश्वविद्यालय के मैकेनिकल इंजीनियर विभाग के छत पर स्थापित हुआ है जो बेहतर कार्य कर रहा है। शेष दो आयाम जब तैयार हो जाएगा तो यह ऊर्जा की जरूरत को पूरा करने में कम खर्चीला साबित होगा।
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