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क्या महंत नरेंद्र गिरि की मौत इस समस्या के समाधान का कारण बनेगी!

File Photo

Mahant Narendra Giri death case

देश में औसतन हर वर्ष सवा लाख से ज्यादा लोग आत्महत्या (NCRB के अनुसार 2019 में कुल आत्महत्या 1,39,123) करते हैं। महंत नरेंद्र गिरि की पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक उनकी मौत दम घुटने से हुई है। हालांकि, फिलहाल यूपी पुलिस घटना की जांच कर रही है और राज्य सरकार ने सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी है।

नरेंद्र गिरि एक धार्मिक संस्था की नेशनल लेवल बॉडी (अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद) के मुखिया थे। फिलहाल, उनकी मौत के पीछे संपत्ति के वि​वाद को बड़ी वजह माना जा रहा है। हालांकि, महंत नरेंद्र गिरि के कमरे से मिले सुसाइड नोट में आत्महत्या के लिए तीन लोगों को जिम्मेदार ठहराया गया है। तीनों ही आरोपियों का संबंध धार्मिंक संस्थाओं से है।

आम जनता को सर्वोच्च सत्ता (ईश्वर) के प्रति आस्थावान बनाने का प्रयास करने वाले एक धार्मिक व्यक्ति का इस तरह से अंत, धर्म और धार्मिक संस्थाओं के प्रति हमारे नजरिए (सोच) को हिला देने वाला है।

आम आदमी की साधू-संतों, संन्यासियों या धर्मगुरुओं में कितनी आस्था होती है? कितने प्रतिशत लोग अपनी समस्याओं के समाधान के लिए उनके पास जाते हैं? उनमें से कितने लोगों को समाधान मिलता है? इस तरह का कोई सर्वे या डाटा उपलब्ध नहीं है। ऐसा करने की कोई हिम्मत भी नहीं कर सकता।

यही वजह है कि धार्मिक संस्थाओं के पास कितनी संपत्ति है इसके सिर्फ कयास लगाए जा रहे हैं। किसी के पास कोई ठोस जानकारी नहीं है। धार्मिक संस्थाओं को दान देने वालों की गोपनीयता का पूरा ध्यान रखा जाता है। तर्क यह है कि इससे दान देने वाले के मन में अहंकार नहीं पनपता।

हिंदू, मुसलमान, सिख या ईसाई किसी भी धर्म या धार्मिक संस्था की गतिविधियों या कार्यों में किसी बाहरी व्यक्ति या संस्था के दखल को घोर अनुचित माना जाता है। सरकारें भी इन मामलें में दखल देने की हिमाकत नहीं करतीं।

हालांकि, धर्म के नाम पर बनी इन संस्थाओं के पास अकूत दौलत, संपत्ति और रसूख है। सांसारिकता या भौतिकता की जगह आध्यात्म को ‘सर्वोच्च धन’ मानने वाली इन संस्थाओं में पारदर्शिता की मांग करने वाले को अधार्मिक और धर्म विरोधी मान लिया जाता है। हालांकि, कहा जा रहा है कि नरेंद्र गिरि इस दिशा में कुछ करने की सोच रहे थे, ताकि मठों और अखाड़ों की संपत्ति से जुड़ी कोई ठोस नीति बनाई जा सके।

आमतौर पर दोषी या अपराधी को सजा दिलाने के बाद पुलिस, अदालतें और सरकारें अपना पल्ला झाड़ लेती हैं। अपराध के कारणों को समझने का तब तक कोई प्रयास नहीं किया जाता जब तक कि निर्भया या शाह बानो जैसा कोई मामला नहीं हो जाता।

नरेंद्र गिरि की मौत के बाद धार्मिक संस्थाओं की कार्यप्रणाली और उनसे जुड़ी प्रॉपर्टी को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। इसे केवल किसी धर्म विशेष तक सीमित नहीं माना जाना चाहिए। धर्म से जुड़ी संस्थाओं को पारदर्शी बनाए जाने के लिए ठोस कदम उठाए जाने का शायद यही सही समय है। बेहतर तो यह होता कि सभी धर्मों से जुड़ी धार्मिक संस्थाएं खुद आगे आकर सर्वसम्मति से इस बारे में कोई फैसला करतीं।

धर्म या आस्था व्यक्तिगत मामला है लेकिन, किसी भी समाज या व्यवस्था में धन-दौलत या प्रॉपर्टी निजी मामला नहीं हो सकता। हर व्यक्ति को अपनी गाढ़ी कमाई के बारे में सरकारों को बताना पड़ता है और टैक्स भी चुकाना पड़ता है, ताकि सरकारों और व्यवस्था के प्रति आम आदमी की आस्था बन रही। वैसे भी हर इंसान को अपने किए का हिसाब तो देना ही पड़ता है, चाहे यमराज के सामने या कयामत के दिन। इससे कोई भी बच नहीं सकता। तो धार्मिक संस्थाएं इससे अलग क्यों रहें।

– संजीव श्रीवास्तव

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