Site icon चेतना मंच

हाईकोर्ट के स्टे के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लिया यूटर्न, वकील तथा वादी हुए खुश

Supreme Court

Supreme Court

भारत की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही एक आदेश पर यूटर्न लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही वर्ष-2018 के एक आदेश को पलट दिया है। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने मान लिया है कि वर्ष-2018 में स्टे (स्थगन आदेश) के मामले में दिया गया सुप्रीम कोर्ट का फैसला गलत तथा असंवैधानिक था। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले सेे देश भर के वकील तथा मुकदमें लडऩे वाले लाखों वादी खुश हो गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सर्वत्र सराहना की जा रही हैं।

क्या है स्टे पर फैसले का मामला

आपको बता दें कि वर्ष-2018 में भारत की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने स्टे (स्थगन आदेश) को लेकर एक फैसला दिया था। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पूरे भारत में तुरंत लागू हो गया था। सुप्रीम कोर्ट के वर्ष-2018 के फैसले में कहा गया था कि किसी भी हाईकोर्ट ने यदि किसी मामले में स्टे यानि स्थगन आदेश दे रखा है और उस मामले में 6 महीने  तक कोई कार्यवाही नहीं होती है तो 6 महीने के बाद वह स्टे आदेश अपने आप यानि स्वत: ही समाप्त हो जाएगा। यह आदेश सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यों की बड़ी बैंच ने जारी किया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से हडक़ंप मच गया था। वकीलों तथा वादियों ने इस फैसले को गैर संविधानिक करार दिया था। स्टे 6 महीने में खुद ही समाप्त होने की प्रक्रिया के सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से अधिकतर वकील, वादकारी यहां तक कि जिला अदालतों से लेकर हाईकोर्ट तक के जज सहमत नहीं थे।  मजबूरी में सभी को सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानना पड़ रहा था। अब लगभग 6 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यूटर्न लेते हुए अपना वर्ष-2018 का आदेश पलट दिया है।

क्या फैसला दिया सुप्रीम कोर्ट ने

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को एक बड़ा फैसला सुनाया है। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही वर्ष-2018 के फैसले को पलट दिया है। बृहस्पतिवार को दिए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रायल अदालतों व हाईकोर्ट की ओर से मुकदमों में दिया गया स्थगन आदेश छह महीने बाद स्वत: समाप्त नहीं हो सकता। शीर्ष अदालत की पांच सदस्यीय पीठ ने 2018 के फैसले को रद्द कर दिया। संविधान पीठ ने 13 दिसंबर, 2023 को हाईकोर्ट बार एसोसिएशन इलाहाबाद और अन्य की याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा था। जस्टिस ओका और जस्टिस मिश्रा ने दो अलग-अलग फैसले सुनाए, हालांकि उनका सार समान था।

जस्टिस ओका ने सीजेआई, जस्टिस पारदीवाला व जस्टिस मित्थल के लिए लिखे फैसले में कहा, हम मानते हैं कि हम एशियन रिसर्फेसिंग ऑफ रोड एजेंसी प्रा लि. के निदेशक के मामले में दिए गए विचार से सहमत नहीं हैं। इसमें दो सवाल हैं पहला यह कि क्या सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 में मिली सख्ती के जरिए यह आदेश दे सकता है कि तय समय पूरा होने के बाद मुकदमों पर हाईकोर्ट की रोक अपने आप खत्म हो जाएगी। दूसरा यह कि क्या अनुच्छेद-142 के तहत सुप्रीम कोर्ट रोक के अंतरिम आदेश वाले मामलों में हाईकोर्ट को रोज सुनवाई करने और जल्द से जल्द निपटारा करने का निर्देश दे सकता है। जस्टिस ओका ने कहा, सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 में मिली शक्ति का इस्तेमाल करते हुए छह महीने के बाद रोक स्वत: हटाने का निर्देश नहीं दे सकता। 2018 के मामले में भी ऐसा निर्देश नहीं देना चाहिए था। यही नहीं, सांविधानिक अदालतों को किसी भी अन्य अदालत में लंबित मामलों के निपटारे के लिए समयसीमा तय नहीं करनी चाहिए।

ग्रेटर नोएडा – नोएडा की खबरों से अपडेट रहने के लिए चेतना मंच से जुड़े रहें।

देशदुनिया की लेटेस्ट खबरों से अपडेट रहने के लिए हमें  फेसबुक  पर लाइक करें या  ट्विटर  पर फॉलो करें।

Exit mobile version