HOLY : वर्ष 2024 की होली आ गई है। होली 2024 का पर्व इस साल 25 मार्च को मनाया जाएगा। पूरी दुनिया इस समय होली मनाने की तैयारी कर रही है। होली मनाने से पहले होली के महत्व को समझना जरूरी है। इसी कारण हम आपको होली के मुख से ही सुनवा रहे हैं होली की आप बीती पूरी बात। होली की पूरी बात पढ़ कर आपका होली मनाने का मजा सौ गुना बढ़ जाएगा। तो नीचे पड़े होली की आप बीती बात।
HOLI
मैं होली हूं
मैं होली (Holy) हूं!! कहीं आपको यह तो नहीं लग रहा कि यह स्पेलिंग गलत है। नहीं बिल्कुल नहीं। होली( HOLY) जी हां यही मेरा सही अर्थ है। राग, द्वेष, ईर्ष्या, वैमनस्य से मुक्त, शुद्ध, पवित्र, प्यार, और स्नेह के रंगो से रंगी सप्तरंगी बहार। धर्म, अध्यात्म, संस्कृति से बहुत आगे सामाजिक समरसता के सूत्रों से बंधी मैं होली हूं।
मेरा जन्म कलयुग से पूर्व द्वापर युग में ही हो गया था। मैं ब्रज की होली, बरसाने की लट्ठमार, असम की फकुवा, दक्षिण भारत की मंजल कुली, पंजाब की होला मोहल्ला, हरियाणा तथा पश्चिमी फत्तर प्रदेश की दुलहैंडी, बंगाल की डोल जात्रा, हिमाचल की सांगला, महाराष्ट्र की रंग पंचमी, गोवा की शिमगो, तमिलनाडु की कमान पंडिगई, मणिपुर की योशांग, छत्तीसगढ़ की होरी, मध्य प्रदेश की भागोरिया और बिहार की फगुआ हूं। वैदिक काल में मुझे ‘नवान्ननेष्टि यज्ञ’ कहा जाता था।
यह वह समय होता है जब खेतों में पका हुआ अनाज काटकर घरों में लाया जाता है। जलती अग्नि में जौं, गेहूं की बालियां और हरे चने अग्नि को समर्पित कर भूनकर प्रसाद स्वरूप बांटे जाते थे। मैं अनाज के पूर्ण रूप से तैयार होने का प्रमाण हूं। मैं कृषक की संपन्नता हर्ष, उल्लास की अभिव्यक्ति हूं, जिसे ग्रामीण परिवेश में आज भी देख सकते हैं। मैं आहार, पोषण व अन्न की उपयोगिता का पर्व हूं। मैं एक अनूठा पर्व हूं। जिसमें छोटे, बड़े, धनी, निर्धन, शिक्षित, अशिक्षित, किसान, व्यापारी, स्त्री, पुरुष, बच्चे और बूढ़े सभी पारस्परिक सद्भाव से एक दूसरे को ‘बुरा न मानो होली है’ कहकर गुलाल और रंग लगाते है। मैं ही वह पर्व हूं जिस दिन लोग आपसी वैमनस्य भूलकर मतभेदों को मुझमें (होलिका में) जला देते है और ‘रंगो में रंग मिल जाते हैं ‘न कोई बड़ा न कोई छोटा सब एक हो जाते है।
बुराई पर अच्छाई की जीत
मैं ‘बुराई पर अच्छाई की जीत ‘भी हूं! विष्णु भक्त प्रह्लाद के पिता, हिरण्यकश्यप ,द्वारा प्रह्लाद को अनेकानेक यातनाएं दी गई किंतु बालक प्रह्लाद अपनी भक्ति पर अडिग रहा। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका जिसे वरदान प्राप्त था कि उसके पास एक ऐसी ‘दुशाला’ है, जिसे ओढ़कर वह अग्नि में बैठ जाएगी तो वह अग्नि में जलेगी नहीं। प्रहलाद की प्रताड़ना की अंतिम पराकाष्ठा के रूप में होलिका अपने भतीजे प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई, लेकिन प्रह्लाद का बाल बांका भी नहीं हुआ और होलिका जल कर राख हो गई। बुराई का अंत हुआ, अच्छाई की जीत हुई।
मैं दृण विश्वास से कहती हूं। ‘जाको राखे साइयां मार सके न कोई’। इन अमर संदेशों भक्त प्रह्लाद की अटूट भक्ति की आप सबको याद दिलाने मै प्रति वर्ष आती हूं।
मेरा पौराणिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, प्राकृतिक, सांस्कृतिक, सामाजिकज्योतिषीय महत्व होने के साथ साथ वैज्ञानिक महत्व भी है। जब लोग होलिका दहन के समय मेरी परिक्रमा करते है तो मुझसे (अग्नि होलिका से) निकला ताप शरीर और आसपास के पर्यावरण को शुद्धता और स्वच्छता प्रदान करता है। सामूहिक अग्नि, होलिका में गाय के गोबर के उपले, कंडे, होरा अर्थात हरे चने डालना-चढ़ाना समृद्धि कारक और आयु वृद्धि करने वाला माना गया है।
मेरे ज्योतिषीय महत्व को भी जानिए
मेरा ज्योतिष से गहरा नाता है। फाल्गुन माह के शुल्क पक्ष, पूर्णिमा के दिन पिता सूर्य अपने पुत्र शनि के घर कुंभ में रहते है। सूर्य को आत्मा का कारक और चंद्रमा को मन का कारक ग्रह कहा गया है, जिनके संयोजन से पृथ्वी पर जीवन है। सूर्य को देवत्व का प्रकाश और चंद्रमा को भक्ति का प्रतिनिधि कहा गया है। फाल्गुनी पूर्णिमा के दिन चंद्रमा सिंह राशि में पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में होता है। जिसके स्वामी शुक्र (असुरों के गुरु) तथा सूर्य कुम्भ राशि में पूर्व भाद्रपद नक्षत्र में होते है उसके स्वामी गुरु बृहस्पति (देवताओं के गुरु) होते है। चंद्रमा (भक्त रूप में वर्णित) सिंह (अग्नि)के प्रभाव में होता है।
यह प्रतीक है जो जलती अग्नि में होलिका की गोद में बैठे भक्त प्रह्लाद (चंद्रमा) में परिलक्षित होता है। इस दिन परमात्मा की ऊर्जा (सूर्य) अपने भक्त प्रह्लाद (चंद्रमा) पर पूरी तरह से केंद्रित है, भक्त को पूरी कृपा दृष्टि से देख रहे है, सिंह राशि के प्रभाव से आसुरी ऊर्जा का दहन होता है, भक्त की कोई क्षति नहीं होती है। मैं नकारात्मक ऊर्जा के क्षरण का पर्व हूं।
मैं ब्रज में एक माह तक रहती हूँ। सूरदास, रसखान, मीरा की रचनाओं में थिरकती हूं, बरसाने की लट्ठमार होली में मधुर वीरता धारण करती हूं।
आइए आने वाले पवित्र पावन सामाजिक समरसता के रंगोत्सव के दिन ‘सत्यमेव जयते’, ‘बुराई का अंत हो’, ‘अच्छाई की जीत हो’, ‘प्रह्लाद भक्त की जय’, ‘अन्नदाता की जय’ का उद्घोष करते हुए मेरी परिक्रमा करें, मेरे सात्विक ताप से नकारात्मकता को दूर करें, गेहूं, जौं, उपले मुझे समर्पित करते हुए संपन्नता, समृद्धि, स्वास्थ्य एवं सामाजिक समरसता का प्रसाद प्राप्त करें।
मुझे हुड़दंग, जुआ, शराब, कीचड़ से न जोड़े क्योंकि मैं HOLY हूं, रंगोत्सव हूं, सामाजिक समरसता की सतत धारा हूं….
[प्रस्तुति – सुश्री कमलेश “कमल”]
[कमलेश “कमल” प्रशासनिक अधिकारी रही हैं तथा तथा एक संवेदनशील लेखिका है]
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