नारद जयंती : ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को देवर्षि नारद जी का जन्म हुआ था । नारद जी अपने पिछले जन्म में एक गंधर्व थे लेकिन अपने अशिष्ट आचरण के कारण ब्रह्मा जी के शाप की वजह एक शूद्रदासी पुत्र के रूप में उनका जन्म हुआ । ब्रह्मा जी से श्राप मिलने के बाद उन्होंने अपने जीवन को बदलने की ठानी। जिस अशिष्ट आचरण की वजह से उन्हें श्राप मिला था उन्होंने उसे छोड़ दिया और प्रभु नारायण की सेवा और प्रभु नारायण का नाम लेकर उनकी भक्ति में स्वयं को रमा लिया और यही वह बात थी जिससे देव ऋषि नारद के जीवन में बड़ा परिवर्तन आया और वह नारायण के सबसे बड़े भक्त के रूप में प्रसिद्ध हुए।
नारायण के सबसे बड़े भक्त देवर्षि नारद
साधू संतों की सेवा करते उनमें भगवद भाव जगा और वह भगवान विष्णु की भक्ति में रम गये । एक दिन उन्हें भगवान विष्णु के दर्शन हुये तो वह उसी में रम गये और उनका पुन:दर्शन करना चाहा तब आकाशवाणी हुई कि अब मैं आपको अगले जन्म मेंं ही मिलूंगा । इसके पश्चात वह भगवद भक्ति में लीन रहे । दूसरे जन्म में वह ब्रह्मा के मानस पुत्र के रूप में जन्मे । ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को नारद जयंती के रूप में मनाया जाता है।
सृष्टि के प्रथम संवाददाता बनें
इस जन्म में भी वह भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रह उन्हीं के नारायण-नारायण गीत का वीणा वादन करते हुये सृष्टि के प्रथम संवाददाता बनें । देवर्षि नारद जी को तीनों लोकों में कहीं भी संचरण की सुविधा प्राप्त थी । वह संवादों के आदान प्रदान में अपनी वीणा के माध्यम से ही संदेश देते थे। लोक हित के प्रथम संवाददाता जिसका तीनों लोकों में सभी सम्मान पूर्वक उनका स्वागत करते हुये उनसे समाचार के रूप में संदेश प्राप्त करते । देव, दानव- मानव तीनों में उनकी प्रतिष्ठा थी और सभी उनकी बात को मानते हुये उनका सम्मान करते । वह त्तत्ववेत्ता ,अगाध बोध रहस्यों के ज्ञाता एवं समस्त वेद वेदांगों से परिपूर्ण वीणा के स्वर में ही अपनी बात कहते थे ।,वेदव्यास वाल्मीकि मुनि एवं शुकदेव जी के गुरू थे । सभी देवताओं में श्रेष्ठता देवर्षि पद पर सुशोभित नारद जी को समझने से पहले उनके विचारों को भी समझना होगा ।
उषा सक्सेना