Nirjala Ekadashi 2024 : ज्येष्ठमाह शुक्ल पक्ष की यह एकादशी वर्ष की चौबीस एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण है । नौतपा के ताप के मध्य इस एकादशी का व्रत मानव की सबसे कठिन परीक्षा है। इसमें आप जल भी नहीं पी सकते इसीलिये इसे निर्जला एकादशी कहते हैं । एक बार जब पाडव द्यूत क्रीड़ा में सबकुछ हारने के पश्चात वन में थे तब श्रीकृष्ण उनसे मिलने आये । तब युधिष्ठिर ने उनसे अपना यश सम्मान और साम्राज्य वापिस पाने के लिये पूंछा कि :-हे माधव! हमें कोई ऐसा व्रत और उपाय कहें जिसके करने से हम अपना खोया हुआ राज्य और सम्मान पा सकें । तब श्रीकृष्ण ने उन् से हर माह की दोनों एकादशियों का फल बतलाते हुये कहा कि आप अपने भाईयों और द्रौपदी के सहित एकादशी का व्रत करिये जिसके करने से आपको उसके फल स्वरू खोया राज्य और सम्मान प्राप्त होगा ।
Nirjala Ekadashi 2024
यह सुनकर भीम ने कहा :-हे माधव! मुझसे भूख सहन नही होती तो फिर मैं वर्ष की इन चौबीस एकादशियों का व्रत कैसे कर पाऊंगा । आप तो मुझे कोई ऐसा व्रत बतलाईये जिसके एक दिन करने पर ही इन सभी का फल प्राप्त हो। भीम की बात सुनकर श्रीकृष्ण ने कहा -भीम भैया फिर आपके लिये केवल एक ही व्रत है ज्येष्ठमाह के शुक्लपक्ष की निर्जला एकादशी । जिसमें कुछ भी फलाहार तो क्या आप पानी भी नहीं ले सकते । चौबीस की जगह केवल एक यही सबसे अधिक ताप देने वाली एकादशी निराहार निर्जला रहकर एक दिन का कष्ट भोगते हुये कर लीजिये । इसके करने से आपको सभी एकादशियों के व्रत को करने का फल प्राप्त होगा । भीम ने कुछ क्षण सोचते हुये कहा- फिर ठीक है , माधव ! खोया हुआ यश सम्मान और साम्राज्य पाने के लिये इतना कष्ट तो मुझे सहन करना ही पड़ेगा कहते हुये भीम ने इस एकादशी के कठिन व्रत को किया जिसके कारण इसका दूसरा नाम भीम के नाम पर भीम सेनी एकादशी पड़ा ।
किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करें
इस दिन किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करने के पश्चात भगवान विष्णु के* ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय*का जाप करते हुये उनके मंदिर में जाकर उनका विधि-से पूजाकर पंडित एवं ब्राह्मणों को मिट्टी के घड़े में जल भर उसे नये वस्त्र से ढककर कुछ मुद्राओं सहित ब्राह्मण को दान देना चाहिये इस दिन दान में वस्त्र ,छतरी एवं उपाहन (चरण पादुका) दान देने का विशेष महत्व है। एकादशी की उत्पत्ति की कथा :-प्राचीन काल में मुसासुर नामक असुर ने ब्रह्मा की तपस्या करके उनसे वरदान प्राप्त करते हुये सभी देवताओं को कष्ट देने लगा जिससे भय त्रस्त होकर सभी भगवान विष्णु की शरण में गये । उस असुर वध कोई नारी ही कर सकती थी अत: भगवान विष्णु के साथ सभी ने देवी योगमाया का स्मरण करते हुयेउनसे उस असुर के वध की प्रार्थना की । देवी ने सभी देवताओं की प्रार्थना सुनकर उनके कष्ट के निवारण के लिये उन्हें वचन देकर मुरासुर के साथ युद्ध करते हुये उसका वध किया । जिस दिन योगमायाज्ञका प्राकट्य हुआ उसे एकादशी की उत्पत्ति के रूप में मान कर भगवान विष्णु ने देवी को समर्पित किया । इस तरह भगवान विष्णु के हृदय में निवास करने वाली देवी योगमाया ही एकादशी हैं जो विष्णु भगवान को एकादशी के रूप में सबसे प्रिय हैं । जै एकादशी रूपिणी योगमाया एवं भगवान विष्णु की ।ऊंँ नमो भागवते वासुदेवाय।
उषा सक्सेना