होली का …. मादक उल्लास जब चरम पर था….शिव विवाह के साथ ही मन को मथते मन्मथ ने अनंग होकर भी अपने पंचशर चला ही दिये। प्रकृति के माध्यम से टेसू के फूल जंगलों के मध्य पत्र हीन वृक्ष पर जब खिले तो उसके साथ सेमल भी फूल उठा। अब काम देव जागृत थे और नवसृजन के पथ पर बढ़ने के लिये उन्मुक्त रति के साथ विचरण करते। ऐसे में घने जंगलों के बीच निवास करते आदिवासियों पर उनका प्रभाव कैसे नहीं पड़ता।
Holi Special
भगोरिया होली का ही एक रूप है, जिसे वह महोत्सव के रूप में मनाते हैं। मध्य प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र के मालवा-निमाड़ अंचल के खरगौन धार, झाबुआ और बड़वानी ऐसे ही क्षेत्र हैं, जहां पर भील-भिलाला जाति इसे उत्सव के रूप में मनाते हुये सांस्कृतिक परम्पराओं का निर्वहन कर अनुष्ठान के रूप में अपने देवी देवताओं का मनाते हुये पूजन कर उनकी सामूहिक रूप से गीत-संगीत और नृत्य के द्वारा उनको प्रसन्न कर अपना आभार प्रकट करते हैं।
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लोक पर्व :
यह एक ऐसा लोक पर्व है, जो जीवन को जीवंतता प्रदान कर जीवन जीने के सही अर्थ को समझाता है। यह जीवन में प्रेम के महत्व को दर्शाता प्रेम का उत्सव है। प्रेम है तो जीने की उमंग है। उसके प्रवाह में तरंगित होता मन अपने आप ही गीत-संगीत और नृत्य के उल्लास में प्रवाहित हो जाता है। मादर की थाप पर तान भरती बांसुरी की लय पर गूंजता हृदय का गान किसे उद्वेलित नहीं करेगा। ऐसे ही आनन्द के क्षणों में अपने भावी जीवन साथी का चुनाव कर उनके प्रति अपने प्रेम को प्रदर्शित करते नवयुवक और युवतियां एक दूसरे के साथ बिना किसी रोकटोक के उन्मुक्त हो समूह में नृत्य करते हैं और अंत में सूर्य ढलने के पहले ही मौका पाते ही एक दूसरे के साथ भाग जाते हैं। कहीं छिपने के लिये और तब उनके परिवार वाले उन्हें ढूंढ़कर उनकी पसंद को अपनी स्वीकृति प्रदान कर उनका विवाह करते हैं। इस विवाह में लड़के वालों को दण्ड स्वरूप लड़की वालों को सामूहिक भोज देना पड़ता है। तभी वह अपनी अनुमति देते हैं। युवक-युवती द्वारा अपना जीवन साथी स्वयं चुनकर भाग जाने के कारण ही इसका नाम भगोरिया पड़ा।
Holi Special
कथा :
एक कथा के अनुसार भगोर के राजा ने इस क्षेत्र पर विजय प्राप्त की थी। बाद में उसने अपने सैनिकों को इस शर्त के साथ कि होली के पूर्व के हाट मेले में वह अपनी पसंद की युवती को पान के रूप में प्रेम प्रस्ताव दे सकते हैं। उस युवती के द्वारा प्रस्ताव को स्वीकार कर लेने पर ही वह उसके साथ भागर कहीं छिप सकते हैं। जब तक कि उनके घरवाले उन्हें खोजकर उनका विवाह नहीं करते। भगोरिया आदिवासी अंचल की ऐसी सामाजिक व्यवस्था है, जिसमें समाज के मूल्य जुड़े हैं।
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कहने को यह हाट बाजार हैं, पर आम हाट बाजारों से अलग। इन हाट बाजारों में कल की चिंता किये वगैर उन्मुक्त होकर आज को जीते हैं। आदिवासी पूरी साज सज्जा के साथ सज संवर कर पूरे परिवार के साथ उन्मुक्त होकर उपस्थित होता है। इन्द्रधनुष के सात रंग भी इनके चटक प्राकृतिक रंगों के सामने सभी रंग फीके जीवन को जीवंतता के साथ जीना कोई इनसे सीखे।
भगोरिया केवल एक महोत्सव ही नहीं, वरन उनकी सांस्कृतिक संस्कृति के संवर्धन का साधन है। मादक महुये के नशे में मदमस्त इनका अपना रूप देखने लायक होता है। उस समय यह स्वयं अपने मन के राजा होते हैं, जो निडर है, किसी से नहीं डरता।
– उषा सक्सेना
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