Thursday, 21 November 2024

हिंदू पंचांग में विशेष दिन, वट सावित्री व्रत और शनि जयंती एक साथ

वट सावित्री व्रत :  आज का दिन हिन्दू पंचांग के अनुसार विशेष महत्वपूर्ण । आज वट सावित्री व्रत और शनि…

हिंदू पंचांग में विशेष दिन, वट सावित्री व्रत और शनि जयंती एक साथ

वट सावित्री व्रत :  आज का दिन हिन्दू पंचांग के अनुसार विशेष महत्वपूर्ण । आज वट सावित्री व्रत और शनि जयंती एक साथ है। ज्येष्ठ मास भगवान ब्रह्मा जी को समर्पित है। वट वृक्ष में ही ब्रह्मा जी का निवास माना गया है । वटवृक्ष की जड़ें कभी समाप्त नही होती । उसकी शाखाओं से ही जड़ें निकल कर अपने आपको आरोपित कर लेती हैं।

इसके पीछे का दर्शन और गुप्त रहस्य

सृष्टि में सृजन के बीज कभी समाप्त नहीं हो सकते । नर में अग्नितत्व और मादा में सोमतत्व है जो कभी समाप्त नहीं हो सकते। कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि अमावस्या सूर्यदेव एवं पितरों को समर्पित होती है । हमारे पितर ही तो हमारे पूर्वज हैं जिनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हुये हम उनका पूजन करते हैं । इसीलिए आज के दिन वट वृक्ष की पूजा, सृष्टि के सृजन कर्ता ब्रह्मा को समर्पित है ।

आज के दिन सूर्य एवं छाया के पुत्र शनि का भी जन्म

आज के दिन सूर्य एवं छाया के पुत्र शनि का भी जन्म हुआ था । इसीलिए इसे शनि जयंती भी कहते हैं । शनिदेव की प्रसन्नता के लिये पीपल के वृक्ष के नीचे सरसों के तेल का दिया जला कर उनका उसकी जड़ों में जल समर्पित करते हुये उनकी शांति एवं आशीर्वाद के लिये उनके पूजन का विशेष विधान है ।

वट वृक्ष की पूजा से ब्रह्मा,विष्णु और महादेव तीनों त्रिदेव का एक साथ आशीर्वाद

वट वृक्ष के मध्य में भगवान विष्णु का वास होता है एवं शिखर पर महादेव का इस प्रकार से केवल वट वृक्ष की पूजा से ही हमें ब्रह्मा,विष्णु और महादेव तीनों त्रिदेव का एक साथ आशीर्वाद प्राप्त होता है ।अमावस्या पितर एवं शनिदेव का दिन सूर्यदेव को समर्पित तिथि केवल एक वट वृक्ष के पूजन मात्र से ही पितर दोष एवं अन्य सब के ग्रह दोष दूर होकर उनका आशीर्वाद मिलता है । इसकी सात बार परिक्रमा कच्चा सूत को लेकर लपेटते हुये की जाती है । सुहागिनें आज विशेष रूप से अपने पति की दीर्घ आयु की कामना करते सुहाग का सामान फल मीठे पुये बरगदा आदि बनाकर पूजा में चढ़ाती हैं। आज गाय के गोबर से बारह छोटे -छोटे पात्र बनाकर उनपर भीगे हुये चने की दाल रख कर पूजा करती है । यह हमारी वह बारह राशियों हैं जिनके राजा स्वयं सूर्यदेव हैं और यमराज सूर्यदेव के पुत्र। विधि विधान से पूजन करते हुये सुहागिनें अन्य सुहागिनों का सम्मान सिंदूर का टीका लगा कर सुहाग का सामान देती हैं ।

सत्यवान सावित्री की कथा

वट सावित्री व्रत में सत्यवान सावित्री की कथा है जिसमें अपने सतीत्व के बल पर यमराज से भी सावित्री अपने पति के प्राण ही नही वरन शत्रुओं द्वारा का छीना हुआ साम्राज्य के साथ नाती पोतों का सुख भी मांग लेती है । यमराज उसके वाक्चातुर्य में फंस कर अपने वचन से मुकर भी नहीं पाते और अंत में वट वृक्ष के नीचे लेटे हुये मृत सत्यवान को जीवनदान देते हैं । इस कथा के द्वारा नारी की शक्ति का परिचय दिया गया है कि वह चाहे तो जंगल में दीन हीन अवस्था में रह रहे अपने पति और उनके माता पिता को उनका खोया हुआ सम्मान भी अपनी बुद्धि चातुर्य और कार्यों के द्वारा वापिस दिला सकती है । इसीलिए उसमें लक्ष्मी सरस्वती और काली तीनों रूप समाहित हैं ।

  ऊँ सावित्री देव्यै नमो नम:।
।।ऊँ शं शनैशचरायै नम:।।
।।ऊँ ब्रह्मदेवाय नम:।।

उषा सक्सेना

Vat Savitri Vrat : इस साल 6 जून को है वट सावित्री का व्रत

Related Post