Noida News : नोएडा में पिछले दिनों बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार के विरोध में आयोजित सर्वधर्म समाज के प्रदर्शन में उत्तर प्रदेश युवा व्यापार मंडल की टीम, प्रदेश उपाध्यक्ष निखिल अग्रवाल की अध्यक्षता में प्रवीण गर्ग, मनीष शर्मा, अमित गोयल व अन्य सैकड़ों व्यापारी। हिन्दू युवा वाहिनी के अध्यक्ष टीसी गौड के आह्वान पर हिन्दू युवावाहिनी की कार्यकारिणी के सभी सदस्य, सेक्टर-15 से ऋषि शर्मा, सेक्टर-71 से प्रदीप मिश्रा, गजेंद्र शर्मा, तुषार गोयल, सेक्टर-19 से विभिन्न सेक्टरों से सामाजिक कार्यकर्ता सब ही पैदल मार्च करते इस प्रदर्शन में सम्मिलित हुए।
प्रदर्शन में समाजसेवी हाथ में झंडा लिए बहुत आक्रोश से अपने इस कष्ट को बयां करते हुए नोएडा हाट की ओर जा रहे थे और नारे लगा रहे थे कि ‘माता-बहनों का यह अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान’। इस आवाज को सुनकर मेरे जहन में कुछ सवाल उठे। यदि जिंदगी में हमने जैसा सोचा सब कुछ वैसा ही हो जाए तो फिर वह जिंदगी तो ख्वाब बन जाएगी। ख्वाब पूरे करने को तो जागना पड़ता है। वहां जाकर सब कुर्सी पर बैठ गए, विभिन्न हिन्दू संगठनों के नेता बड़े मंच पर विराजमान थे। सभी ने अपना 2 वक्तव्य रखा जिसे सबने ध्यान से सुना और सबने समझा भी कि हिन्दू बंटेगा, तो कटेगा। सब ही कष्ट में थे। अब हम क्या करें? क्योंकि नेता नहीं लड़ते, लड़ते तो कार्यकर्ता हैं और मरता आम आदमी है।
अब प्रश्न य़ह भी उठता है कि क्या हमने अपनी मां बहन को सुरक्षित करने की तैयारी शुरू कर दी है? ताकि उनका अपमान करने से पहले कोई 100 बार विचार करे न कि बेटा गलत करे और माता-पिता लड्डू बांटे। क्रोध और आक्रोश किसी भी समाज में अधिक या कम नहीं था। क्योंकि अन्याय कमजोर से ही शुरू होता है। तो क्या यह आवश्यक नहीं कि जो समय हमें मिला हुआ है? हम उस समय को ही अच्छा बनाएं। ना कि अच्छे समय का अभी भी इंतजार करे कि कोई हमारा भला करेगा। क्या आपको नहीं लगता कि मानव-मानव के इस संघर्ष का कारण गरीबी तथा अभाव से पिंड छुड़ाने को झपट लेना बल्कि मारकर छीन लेना आसान रास्ता चलने की शुरुआत है ये। आसान तो कुछ भी नहीं होता कठिनाइयां तो उसमें भी बहुत हैं पहले बहुत सारी भीड़ को पैदा करें, खिलाएं, पालें तब फल की उम्मीद करें। ऐसे तो समय हमारे पास भी है। यही सोच हमने अपने साथियों के साथ इस समस्या को साँझा करने को मीटिंग रखी क्योंकि अब हमें इस चिंतन से बाहर आना होगा की जो किसी का हक या खुशी छीन लेता है? उसका इलाज वक्त करता है। यह जुमला पढऩे में अच्छा लगता है। पर सच तो सच है न-कि झपटने वाले इस बेशर्मी को करने से मालिक भी तो हो जाता हैं। यूं हमने बहुत अच्छे निर्णय भी लिए कि अब हम रिश्तों में से ‘मैं’ को दूर करके ‘हम’ को खूबसूरती दें। यदि एक मकान है उसमें दो पुत्र हैं तो वे दोनों साथ होकर रहें। बेच कर दोनॉ अलग-अलग फ्लैट में बुजुर्ग माता-पिता तड़पते अकेले। ऐसे में भी यदि दूसरा बच्चा बेटी है तो उस घर में रहने वाले को ये ही बेचैनी रहती है कि इसको बेचकर मेरे ही नाम दूसरा घर लिया जाए की सोच से बाहर आना होगा ताकि हमारे भी परिवार बंटें न कि हमारे युवा या युवतियां आत्महत्या को अग्रसर हों। हम से ‘मैं’। इस बंटने पर लगाम लगे।
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‘मैं’ ना तो राँग है, ना ही ‘मैं’ राइट पर यहीं से शुरू होती हैं बंटने की फाइट। स्वयं में गुण और सिर्फ अच्छा देखना और ‘हम’ में दोष क्या यह अहंकार नहीं है? यह तो बिल्कुल भी सद्गुण नहीं है। परिवारों से टूटकर अपनों से अलग फ्लैट में जाकर एक गेट जिस पर कुछ अनजान लोग ‘गार्ड’ बैठे होते हैं उनको अपना सुरक्षा कवच मानना? ज्यादा सोचना बंद कीजिए। हकीकत की दुनिया में कदम रखिए। पहले परिवरों को जोडें फिर अपने अगल-बगल फिर सेक्टर बाकी सब स्वयं ही जुडऩे लगेगे।
संतानों को स्वस्थ व श्रेष्ठ बनाएं बेटा यदि 6 फीट तो बेटी भी 6 फीट हो। बच्चे परिवार में खेलकूद कर हृष्ट-पुष्ट हों। अंतत: होशियार होना अच्छी बात है परंतु होशियारी का अंत अब जीरो मिलने लगा है। तो यह कैसी समझदारी है। लंबी छलांग एकदम तो नहीं लगा पाएंगे परंतु यदि निरंतर कदम बढ़ाएंगे एक-दूसरे के लिए समर्पण, अपना समय, साथ देंगे। बच्चे पढऩे अवश्य जाएं पर पढक़र ऑफिस में ही रोजगार मिलेगा यह अहंकार ना पालें। हर काम सीखें, काम करें। यदि सेहतमंद मजबूत समाज बनाएंगे तो यूँ प्रदर्शन की आवश्यकता ही नहीं होगी। हम तो सीख देने वाले बनेंगे कि अब और नहीं ‘बंटेंगे या कटेंगे’? Noida News :
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