Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालयों के जजों के खिलाफ शिकायतों पर विचार करने संबंधी लोकपाल के आदेश पर रोक लगा दी। इस फैसले को न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। अदालत ने कहा कि लोकपाल के इस आदेश से न्यायपालिका की स्वायत्तता पर गंभीर खतरा पैदा हो सकता है और यह देश के संवैधानिक ढांचे के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि, यह आदेश न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सीधे तौर पर प्रभावित कर सकता है, जो लोकतंत्र की बुनियादी आवश्यकताओं में से एक है।
लोकपाल के आदेश को ‘बेहद चिंताजनक’ करार दिया
गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की स्पेशल बेंच ने लोकपाल के आदेश पर रोक लगाते हुए इसे ‘बेहद चिंताजनक’ करार दिया। जस्टिस बी.आर. गवई की अगुआई वाली बेंच ने स्पष्ट रूप से कहा कि उच्च न्यायालयों के जजों को संविधान के तहत एक स्वतंत्र संवैधानिक प्राधिकारी माना गया है और वे लोकपाल के अधीन नहीं आ सकते। बेंच ने केंद्र, लोकपाल रजिस्ट्रार और शिकायतकर्ता से जवाब भी मांगा है।
‘कोई भी व्यक्ति’ की परिभाषा में हाई कोर्ट के जज भी शामिल
लोकपाल का यह आदेश 27 जनवरी को जारी किया गया था जिसमें कहा गया था कि, उच्च न्यायालय के जजों को लोकपाल अधिनियम, 2013 के तहत आने वाली संस्था माना जाए। लोकपाल ने इस आदेश में यह भी दावा किया था कि ‘कोई भी व्यक्ति’ की परिभाषा में हाई कोर्ट के जज भी शामिल हैं। हालांकि, लोकपाल ने मामले की सत्यता पर अभी कोई भी टिप्पणी नहीं की और इसे आगे की कार्रवाई के लिए मुख्य न्यायाधीश (CJI) के पास भेज दिया है।
लोकपाल के दायरे में नहीं आते उच्च न्यायालय के जज – तुषार मेहता
सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को अस्वीकार करते हुए कहा कि लोकपाल ने जो तर्क प्रस्तुत किया है, वह गलत है। कोर्ट ने साफ किया कि उच्च न्यायालय के जजों को एक संवैधानिक प्राधिकारी के रूप में देखा जाना चाहिए और उन्हें केवल एक वैधानिक पदाधिकारी के रूप में नहीं माना जा सकता जैसा कि लोकपाल ने किया है। इस मुद्दे पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी अपनी बात रखते हुए कहा कि उच्च न्यायालय के जज लोकपाल के दायरे में नहीं आते हैं सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान शिकायतकर्ता को जज का नाम उजागर करने से भी रोक दिया और उसकी शिकायत को गोपनीय रखने का निर्देश दिया। कोर्ट का मानना था कि इस प्रकार के मामलों में न्याय की प्रक्रिया को बाधित करने से बचना जरूरी है, ताकि कोई भी पक्ष असमर्थित आरोपों से बच सके। Supreme Court
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