History of Gurjar : डा. सुनील सिंह
History of Gurjar : नई दिल्ली/जयपुर। सब जानते हैं कि भारत (India News) विभिन्न जाति व धर्मों का देश है। इस देश में मुख्यत: 36 बिरादरी (जाति) रहती हैं। इन बिरादरियों में से गुर्जर जाति को सबसे बहादुर कौम के रूप में गिना जाता है। इस जाति का इतिहास बेहद गौरवशाली (गुर्जर इतिहास) (History of Gurjar) रहा है। सन 1200 ईस्वीं तक गुर्जर राजाओं ने भारत वर्ष के विभिन्न हिस्सों पर राज किया था।
History of Gurjar
आप को बता दें कि इतिहासकारों के हिसाब से आज के गुजरात पर गुर्जर चौहानों का राज था। राजस्थान भी प्राचीन समय में गुजरात ही कहलाता था। राजस्थान का गुजरात ‘नरान विध्वंश’ हुआ, उसके खंडहरों पर 1108 ई. में अजमेर बसाया गया। अजमेर के पास नरान नाम का गांव आज भी मैजूद है। ज्ञात रहे महमूद गजनवी के (1029) के जमाने में अजमेर और दिल्ली आज की तरह बड़े शहर नहीं थे। हेनसांग की यात्रा का विवरण वाट्रस ने दिया है परंतु किसी जगह राजपूत शब्द का उल्लेख नहीं किया, अपितु लिखा है कि गुर्जर क्षेत्र की राजधानी भीनमाल है। यहां का राजा 18 वर्षीय युवक है जो अत्यंत समझदार और बोद्ध मत का अनुयायी है तथा असली गुर्जर क्षत्रिय है। हेनसांग महाराजा हर्ष के दरबार मे आया था। हर्ष का मंत्री बाणभट्ट अपनी पुस्तक हर्ष चरित्र में लिखता है, हर्ष के पिता ने भीनमाल के गुर्जरो की नींद खराब कर दी थी।
अलबरूनी महमूद, गजनवीकाल में उप महाद्वीप में आया था। इसकी किसी किताब में राजपूत शब्द का जिक्र नहीं है। एक जगह उसने लिखा है, गुजरात (उस समय राजस्थान को भी गुजरात कहते थे) का प्रमुख शहर नरान है जो मुल्तान से 200 मील पूर्व और मथुरा से 250 मील पश्चिम में है। नौंवी शताब्दी के प्रारंभ में गुर्जर साम्राज्य विस्तृत था। इसमें अनती (काठियावाड़), मालवा, किरात, हिमांचल का आँचल राज्य, वत्स (कौशाम्बी प्रदेश), मत्स्य तथा पूरा पंजाब समिलित थे। कनौज, अजमेर तथा दूसरे अन्य राज्यों में अनेक गुर्जरवंश राज्य करते थे। ये निर्विवाद सत्य है कि गुर्जर जाति इस उप महाद्वीप के उत्तर में गिने चुने बड़े राजकुलों या जातियों में से एक थी। गुर्जरों की एक शाखा तंवर (तोमर) ने दिल्ली में राज्य स्थापित किया। कनौज उस काल में उप महाद्वीप का केंद्रीय नगर था।
History of Gurjar : गौरवशाली गुर्जर इतिहास
रहीमदाद खां मौलाई ने ‘तारीखे जतृतुल सिंध’ में बताया है। सन 816 ई. में गुर्जर जाति के राजा नागभट्ट ने कनौज जीता, जहां उन्होंने 200 वर्ष तक शासन किया। इन गुर्जर राजाओं में महाराजा मिहिर भोज सर्वाधिक प्रसिद्ध थे। प्रतिहारों ने अपने शिलालेखों पर स्पस्ट रूप से गुर्जर वंश के होने की पुष्टि की है। इलियट और डाउसन ने ‘हिस्ट्री ऑफ इंडिया एंड टोल्ड बाई इट्स हिस्टोरियन’ 13 भागों में लिखी, जिसमें सात अरब यात्रियों की किताबों का उदाहरण है। किसी ने भी राजपूत शब्द का उल्लेख नहीं किया, अपितु कनौज के गुर्जरों का जिक्र अवश्य है। अरब लेखकों के अनुसार उन्होंने लिखा है गुर्जर उनके भयंकर शत्रु थे। उन्होंने ये भी कहा, अगर गुर्जर न होते तो वे 12वीं शताब्दी से पहले ही भारत पर अधिकार कर लेते।
एक भी गुर्जर ने अपना साम्राज्य क्षेत्र भूमि बचाने के लिए बाहरी आक्रमणकारियों की अधीनता को स्वीकार नहीं किया। चाहे वह देश छोड़कर चले गए हों। सन 1300 ईसवीं में जब बचे खुचे किले भी हाथ से निकल गये तो गुर्जरों ने छापा मारने प्रारम्भ कर दिये थे। दिल्ली के सुल्तान ने घोषणा कर दी जहां गुर्जर देखो उसे खत्म कर दो। झेलम, रावलपिंडी, गुजरात व स्यालकोट के गुर्जरों ने असंख्य बार दिल्ली व काबुल का मार्ग बंद कर दिया। पुस्तक ‘ताजुके बाबरी’ के अनुसार ये साधरण बात नहीं थी।
बाबर की आक्रमणकारी सेना पर गुर्जरों ने छापा मारा और उसके घोड़े और पशु छीन कर ले गये। ये गुजरात के गुर्जर थे। जब बाबर ने कहा था गुर्जरों ने तो नाक में दम कर दिया है। वह बलिदानी (राणा का अर्थ बलिदानी होता है) गुर्जर ही थे, जिन्होंने मोहमद गौरी के शिविर में प्रवेश कर जिला झेलम (आज के पाकिस्तान) के गॉव श्रीमाल में उसका कत्ल कर दिया। यहाँ एक बात आती है, ‘पृथ्वीराज विजय’ महाकाव्य के अनुसार गौरी की हत्या खोखर जाटों द्वारा की गई तो आपको बता दें कि आज भी अफगानिस्तान और पाकिस्तान में जाटों की गिनती गुर्जरों में ही होती है। गुर्जरों में जेनेटिक गुण होता है वो अपना बदला खुद ही लेता है। चाहे समय कितना ही लग जाये। गुर्जर मंडल में आहिर, जाट और गुर्जर ही थे, जो पृथ्वीराज चौहान की मौत के बाद खत्म हो गया था।
‘Linguistic survey of india’ में भी श्री मर्धन लिखते है कि हिमाचल पर्वत में विचरण करने वाले घुमन्तु गुर्जरों में चौहान गुर्जर भी मौजूद हैं। जिससे सिद्ध होता है गुर्जरी भाषा राजस्थान की भाषा थी जो कि बृज भाषा (मथुरा) और मेवाड़ी भाषा से मिलती जुलती है। ये लोग घुमंतु दूध विक्रेता गुर्जर उच्च शाही खून है। जो महमूद गजनवी, मोहमद गौरी व अलाउदीन की याद दिलाते है। जिनसे इन्होंने मातृभूमि के लिए डटकर युद्ध किया।
राजपूतों के अनुसार गुर्जरों का इतिहास
राजपूतों ने अजमेर में संविधान राजपूत एसोसिशन की स्थापना 1927 ई. में की थी। यदि कोई गुर्जर नेता राजपूत कहलाने लगे तो वह असल में गुर्जर ही रहता है। ठाकुर जयपाल सिंह रावत ने 1932 ई. में गुर्जरों का प्रारंभिक इतिहास लिखा। उनके अनुसार कनौज के सम्राट गुर्जर थे और गुर्जर और राजपूत असल में एक ही है। सन 1955 में ‘गुर्जर इतिहास’ लिखा जिसकी भूमिका ठाकुर यशपाल ‘राजपूत इतिहास’ ने लिखी और बताया पश्चिमी भारत का शासन सदैव गुर्जरों से सम्बंधित रहा है। गुर्जरों के कुछ खानदान मध्यकाल में राजपूत कहलाये।
ठाकुर यशपाल ‘राजपूत के शब्द बताता हूं’ जिसमें उन्होंने लिखा है कि यूरोपीयन खोज करना कहते हैं कि इतिहास वास्तव में रोटी और मक्खन प्राप्त करने के लिए किए गये संघर्ष की कहानी का नाम है। परंतु गुर्जर इतिहास अपने देश की स्वतंत्रता के लिए दी गई कुर्बानियों की दास्तान है। इतिहास रेगिस्तान रायचन्द ने लिखी है। वह लिखते है ‘रामायण’ या ‘जैन’ ग्रंथ में दूसरी प्राचीन पुस्तकों में राजपूत जाति का उल्लेख नहीं है। राजपूत शब्द जाति के रूप में सन 1200 ई. के पश्चात ही प्रयुक्त हुआ है। संक्षेप में कहें तो सन 1200 ई. के पश्चात ही प्राचीन राजाओं को राजपूत लिखने का प्रचलन चला। चौहान गोत्र गुर्जर, जाट, राजपूत बिरादरियों में भी पाए जाते है। चागड़ों में भी चौहान है, लेकिन कोई प्राचीन चौहानों को जाट या चागड नहीं कहता। राजपूत दावा करते हैं कि प्राचीन चौहान राजपूत थे, जबकि इतिहास प्रमाणित करता है कि प्राचीन चौहान गुर्जर थे।
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