Ajab Gajab : आप विभिन्न मंदिरों में जाते होंगे और आपने देखा होगा कि एक ही पुजारी रोजाना भगवान की पूजा और सेवा करता हुआ मिल जाता है। पुजारी के वंजश भी भगवान की सेवा करते हुए देखे जा सकते हैं, लेकिन भारत का एक मंदिर ऐसा है, जहां पर पुजारी को अपने जीवन में केवल एक ही बार भगवान की सेवा और पूजा अर्चना करने का मौका मिलता है। खास बात यह है कि इस मंदिर में गुर्जर समाज के पुजारी हैं, जो भगवान की सेवा करते हैं।
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आपको बता दें कि राजस्थान के मेवाड़ में चार भुजानाथजी मंदिर है। इसे मेवाड़ का चौथा धाम भी कहा जाता है। यह राजसमंद जनपद के कुम्भलगढ़ तहसील के गढ़बोर गांव में स्थित है। 5288 साल पुराने इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण के चर्तुभज स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है और इसे महाभारत काल में पांडवों द्वारा स्थापित किया गया था।
मंदिर में हैं 1000 गुर्जर पुजारी
चार भुजानाथजी मंदिर से गुर्जर समाज का गहरा नाता है। इस मंदिर में गुर्जर समाज के 1000 पुजारी परिवार हैं। सभी परिवारों का मंदिर में सेवा और पूजा करने का नंबर तय किया गया है। कुछ परिवारों को यह नंबर जीवन में केवल एक ही बार मिलता है। हर अमावस्या को भगवान की पूजा करने का वाले पुजारी का नंबर बदल जाता है। अमावस्या पर नंबर बदलने पर अगले परिवार का मुखिया पुजारी बनता है। भगवान की और सेवा करने के लिए कुछ नियम भी हैं, सेवा करने का नंबर समाप्त होने तक पुजारी को मंदिर में ही रहना पड़ता है। पुजारी को अमावस्या से अगली अमावस्या आने तक यानि एक माह तक कठिन तप, मर्यादाओं में रहना पड़ता है। इस दौरान पुजारी घर नहीं जा सकते है। परिवार या सगे-संबंधियों में मौत होने पर भी पूजा का दायित्व निभाना होता है।
आरती में दिखती है वीरता की मुद्रा
आरती के दौरान जब गुर्जर परिवार के पुजारी जिस प्रकार से मूर्ति के समक्ष खुले हाथों से जो मुद्रा बनाते है और आरती के दौरान जिस प्रकार नगाड़े और थाली बजती है वो पूर्णत वीर भाव के प्रतिक है। चारभुजाजी की आरती और भोग लगभग श्रीनाथ जी की तरह ही है किन्तु चारभुजाजी के दर्शन सदैव खुले रहते है अर्थात उनके दर्शन का वैष्णव सम्प्रदाय की पूजा पद्धतियों की भाँती समय आदि नहीं है।
राजपूत शासक से है संबंध
श्री चार भुजानाथजी के इस मंदिर का राजपूत शासक से भी संबंध रहा है। बताया जाता है कि मन्दिर का निर्माण राजपूत शासक गंगदेव ने करवाया था। मंदिर के शिलालेख के अनुसार सन 1444 ई. (वि.स. 1501) में खरवड़ शाखा के ठाकुर महिपाल चौहान व उसके पुत्र रावत लक्ष्मण ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। एक मन्दिर में मिले शिलालेख के अनुसार यहां इस क्षेत्र का नाम “बद्री” था जो कि बद्रीनाथ से मिलता जुलता है।
हर छह माह बाद लगता है मेला
श्री चार भुजानाथजी के इस ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिर में हर छह माह बाद मेला लगता है। यानि एक साल में दो बार मेलों का आयोजन होता है। पहला मेला प्रतिवर्ष भाद्रपद शुकल एकादशी (जल झुलनी एकादशी) को लगता है। यह मेला पूरे प्रांत में प्रसिद्ध है जिसे लक्खी मेला भी कहा जाता है। दूसरा मेला होली के दूसरे दिन से अगले पंद्रह दिवस तक चलता है जिसमें अनेक दर्शनार्थी आते हैं।
पौराणिक कथा
भगवान श्रीकृष्ण ने विश्वकर्मा से स्वयं व बलराम की मूर्तियां बनवाई, जिसे राजा इन्द्र को देकर कहा कि ये मूर्तियां पांडव युधिष्ठिर व सुदामा को सुपुर्द करके उन्हें कहना कि ये दोनों मूर्तियां मेरी है और मैं ही इनमें हूं। वर्तमान में गढ़बोर में चारभुजा जी के नाम से स्थित प्रतिमा पांडवों द्वारा पूजी जाने वाली मूर्ति और सुदामा द्वारा पूजी जाने वाली मूर्ति सत्यनारायण के नाम से सेवंत्री गांव में स्थित है। कहा जाता है कि पांडवो ने हिमालय जाने से पूर्व मूर्ति को जलमग्न करके गए थे ताकि इसकी पवित्रता को कोई खंडित न कर सके।
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