सुख समृद्धि की हो गई है कमी या विकास हो गया अवरुद्ध, तो ये उपाय आएंगे काम

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सुख समृद्धि की हो गई है कमी या विकास हो गया अवरुद्ध, तो ये उपाय आएंगे काम
locationभारत
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calendar15 Oct 2021 06:36 AM
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अगर आपके घर परिवार में सुख शांति और समृद्धि (happiness prosperity) में कमी है और विकास अवरुद्ध है तो निम्न प्रयास और उपाय आपको लाभ पहुंचा सकते हैं।

घर में लक्ष्मी जी की कृपा कैसे बनाएं यदि हम अपने घरों में लक्ष्मी जी की असीम कृपा चाहते हैं और चाहते हैं की लक्ष्मी जी का आशीर्वाद हमेशा परिवार पर बना रहे तो हमें घरों में साफ सफाई रखनी चाहिए। माता लक्ष्मी को साफ सुथरा घर ही पसंद होता है और इसके अलावा सफाई में इस्तेमाल झाड़ू भी बहुत प्रिय होती है। ऐसा कहा जाता है कि सुबह सुबह यदि आपके घर के बाहर कोई झाड़ू लगाते हुए आपको दिख जाए तो यह आपके लिए शुभ संकेत माना जाता है।

लक्ष्मी जी को खुश कैसे करें यदि हम लक्ष्मी जी को खुश करना चाहते हैं तो हमें घर के मुख्य द्वार पर सरसों के तेल का दीप जलाना चाहिए। लाल धागे में सात मुखी रुद्राक्ष गले में धारण करने से अचानक धन की प्राप्ति होती है। लक्ष्मी जी से सच्ची श्रद्धा और भाव से प्रार्थना करनी चाहिए। अगर आप काफी परेशान हैं और आपको लगता है कि मां लक्ष्मी आप से रुष्ट हैं तो उन्हें प्रसन्न करने के लिए घर में एक संग लाकर उसे पूजा के स्थान पर विधिवत रखें। हमें इस दौरान प्रतिदिन संघ की पूजा करनी चाहिए क्योंकि ऐसा कहा जाता है जिस घर में शंख होता है उस घर में मां लक्ष्मी और नारायण का वास होता है इसके अलावा संघ से जुड़े कुछ उपाय भी आपके लिए काफी मददगार हो सकते हैं।

व्यापार में तरक्की के लिए यदि हम व्यापार में तरक्की चाहते हैं तो घर में शंख का आवाहन करें। व्यापार स्थल पर विष्णू भगवान जी की तस्वीर के नीचे रखकर पूजा करनी चाहिए। व्यापार में धन लाभ के लिए शंख की पूजा काफ़ी मदद गार होती है। शंख में गंगाजल भरकर कार्य स्थल पर छिड़कना चाहिए। घर का क्लेश दूर करने के लिए यदि घर के क्लेश से आप परेशान हैं तो आपको अपने घर में शंख की पूजा करें और उसे तुलसी के द्वारा विधि विधान से पूजन करें। इससे दुःख, गरीबी और क्लेश सब दूर होता है। मां लक्ष्मी जी प्रसन्न होकर घर में प्रवेश करती हैं।

घर की नकारात्मकता दूर करने के लिए अगर घर में प्रतिदिन शंख बजाया जाए तो घर की नकारात्मकता है तुरंत दूर हो जाती हैं और शंख की ध्वनि से बेहद सुखद माहौल हो जाता है। जैसा कि हम जानते हैं कि शंख की ध्वनि बहुत शुभ होती है और इससे मां लक्ष्मी जी काफी प्रसन्न होती हैं। ध्यान रहे कि पूजा करने वाला शंख एवं बजाने वाला संघ के अलग अलग होना चाहिए।

पति पत्नी के संबन्ध बेहतर करने के लिए यदि आप शादीशुदा हैं और आपके पति-पत्नी के संबंधों में खटास आने लगी है तो पूजा वाले शंख को एक पारदर्शी शीशे के कटोरे में रखें। ऐसे दोनों के बीच आपसी संबंध काफी अच्छे होने लगते हैं और दोनों में प्रेम दिखाई देने को मिलता है। यह उपाय करने से घर में शांति एवं एक दूसरे के विचार भी मिलने लगते हैं।

श्री ज्योतिष सेवा संस्थान भीलवाड़ा (राजस्थान)

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Dharam Karma : वेद वाणी

Rigveda
locationभारत
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calendar30 Nov 2025 06:35 AM
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Sanskrit : आ चिकितान सुक्रतू देवौ मर्त रिशादसा। वरुणाय ऋतपेशसे दधीत प्रयसे महे॥ ऋग्वेद ५-६६-१॥

Hindi: हे ज्ञानी मनुष्य! आप श्रेष्ठ विद्वानों का संग करो जो तुम्हें तुम्हारे शत्रुओं (काम, क्रोध, लोभ आदि) से दूर करेंगे। तुम्हें उत्तम कर्म करने के लिए प्रवृत्त करेंगे। (ऋग्वेद ५-६६-१) #vedgsawana

English: O wise man! You associate with the best scholars who will keep you away from your enemies (lust, anger, greed, etc.). They will lead you to do good deeds. (Rig Veda 5-66-1) #vedgsawana

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धर्म-अध्यात्म : ज्ञान ही है सच्चा गुरु!

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locationभारत
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calendar15 Oct 2021 04:37 AM
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 विनय संकोची

'जो दुनिया का गुरु बनता है वह दुनिया का गुलाम हो जाता है और जो स्वयं का गुरु बनता है वह दुनिया का गुरु बन जाता है' - यह शास्त्रों और संत महापुरुषों का वचन है। आज जो गुरु हमारे आसपास दिखाई पड़ते हैं उनमें अधिकांश दुनिया से गुरु बनने की जुगत में लगे हुए हैं, इसीलिए उसके गुलाम हुए जा रहे हैं। ऐसे गुरु का चित्त-हरण नहीं अपितु वित्त-हरण करने में जुटे हैं। शिष्यों को मोह माया से दूर रहने का पाठ पढ़ाने वाले तथाकथित गुरुओं का अधिकांश समय माया की गुलामी में व्यतीत होता है।

सच्चे गुरु अंत:करण के अंधकार को दूर करते हैं। सच्चे गुरु आत्मज्ञान की युक्ति बताते हैं। सच्चे गुरु मेघ की तरह ज्ञान वर्षा करके शिष्य को ज्ञानावृष्टि से नहलाते हैं। सच्चे गुरु ऐसे माली हैं, जो जीवन रूपी वाटिका को सुरभित करते हैं। सच्चे गुरु अभेद का रहस्य बता कर भेद में अभेद का दर्शन करने की कला सिखाते हैं। सच्चे गुरु शिष्य की सुषुप्त शक्तियों को जागृत करते हैं, ज्ञान की मस्ती देते हैं, भक्ति की सरिता में स्नान कराते हैं और कर्म में निष्कामता सिखाते हैं ऐसा शास्त्रों का स्पष्ट कथन है।

शास्त्रों का यह भी कथन है कि जो दूसरों को प्रमाद करने से रोकते हैं, स्वयं निष्पाप रास्ते से चलते हैं, हित और कल्याण की भावना रखने वाले को तत्व बोध कराते हैं, उन्हें गुरु कहा जाता है।

धर्म को जानने वाले, धर्म के अनुसार आचरण करने वाले, धर्म परायण और सब शास्त्रों में से तत्वों का आदेश करने वाले भी गुरु कहे गए हैं। धर्म में एकनिष्ठ अपने संसर्ग से शिष्यों के चित्त को शुद्ध करने वाले गुरु बिना स्वार्थ के दूसरों को भी तारते हैं और स्वयं भी तर जाते हैं। आजकल उपरोक्त शास्त्रोक्त परिभाषाओं पर खरा उतरने वाला गुरु मिल पाना असंभव नहीं, तो कठिन अवश्य है। भावी शिष्य की आर्थिक स्थिति देखकर अपना प्रिय चेला बनाने की परंपरा ने धर्म को धंधा बना कर रख दिया है।

शास्त्र सम्मत परिभाषाओं की कसौटी पर कसे जाने को आज का हर कोई गुरु तैयार नहीं होगा क्योंकि उन्हें पता है कि वे खरे साबित नहीं होंगे। आज के तथाकथित गुरुओं ने अपने शिष्यों को टकसाल समझना शुरू कर दिया है। इस टकसाल से प्राप्त धन से आश्रम, गौशाला, अनाथालय, विद्यालय, अस्पताल जैसी स्थाई संपत्ति बनाना आजकल के अनेक गुरुओं का सबसे बड़ा शौक, सबसे बड़ा व्यसन हो गया है।

शास्त्रों का वचन है कि चित्त की परम शांति गुरु के बिना मिलना दुर्लभ है। यह सत्य हो सकता है, यह सत्य तो होगा ही। लेकिन आजकल के गुरु तो शिष्यों की शांति का हरण कर उन्हें बेचैन बना देते हैं, परेशान कर देते हैं, विचलित कर डालते हैं।

गुरु की महानता से तमाम प्राचीन साहित्य और शास्त्र भरे पड़े हैं लेकिन उनके बीच कहीं यह भी लिखा है - वेषं न विश्वसेत प्राज्ञो वेषो दोषाय जायते। रावणो भिक्षुरूपेण जहार जनकात्मजाम् || अर्थात् - केवल वेश पर विश्वास नहीं करना चाहिए, वह दोष युक्त भी हो सकता है। रावण ने भिक्षु का रूप धर कर ही तो सीता का हरण किया था।

इस धरा धाम पर जितना भी ज्ञान विज्ञान है, वह श्रीगुरुमुख से प्राप्त होने पर ही फलित होता है। वस्तुतः ज्ञान ही गुरु है और गुरु ही ज्ञान है। अज्ञान रूपी अंधकार का अस्तित्व तब तक ही है, जब तक सद्ज्ञान का सवेरा न हो। गुरु के ज्ञान रूपी सूर्य की किरणें शिष्य के अंतःकरण पर पड़ती हैं, तो विकार, वासना और अज्ञान का अंधकार स्वयं भाग जाता है। गुरु, शिष्य के अंदर सोई पड़ी शक्ति को जागृत कर देते हैं सुप्त पड़ी चेतना को झकझोर कर जगा देते हैं और संवर जाता है शिष्य का जीवन, प्राप्त हो जाता है लक्ष्य, मिल जाता है किनारा। गुरु प्राप्ति शिष्य के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि होती है, सबसे बड़ा सौभाग्य होता है।

अगर कोई गुरु शिष्य से कुछ भी चाहता है तो उसे गुरु कहलाने का अधिकार नहीं है। यह ठीक है कि आडंबर में लिपे-पुते तथाकथित गुरुओं ने लोगों की दृष्टि में गुरु तत्व की गरिमा को गिराया है, लेकिन कहीं ना कहीं आज भी कुछ तो ऐसे संत महापुरुष हैं, जो प्रत्येक शास्त्र सम्मत कसौटी पर खरे उतरते हैं और जिनकी शरण में जाकर व्यक्ति प्रभु प्राप्ति के राजपथ पर आगे और आगे बढ़ सकता है।