बिहार में एनडीए को मिली बड़ी हार, सीमा सिंह का नामांकन रद्द


बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन अब मिशन “डैमेज कंट्रोल” पर पूरी तरह एक्टिव हो गया है। सीट बंटवारे में देरी कर एनडीए को हमले का मौका देने वाला गठबंधन अब हर कदम बेहद सोच-समझकर उठा रहा है। कभी साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए एकता का संदेश, तो कभी घोषणापत्र में सामूहिक प्रतिबद्धता का प्रदर्शन आरजेडी और कांग्रेस अब यह जताने की कोशिश में हैं कि मतभेद पीछे छूट चुके हैं और महागठबंधन पहले से कहीं अधिक संगठित होकर मैदान में उतरा है। उद्देश्य साफ है वोटिंग से पहले जनता के बीच यह तस्वीर बनाना कि अंदरूनी दरारें भर चुकी हैं और अब मुकाबला सीधा एनडीए से है। Bihar Election
महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे को लेकर शुरू हुआ मतभेद किसी खुली जंग से कम नहीं था। आरजेडी, कांग्रेस और वीआईपी ने जब अपने-अपने उम्मीदवारों का अलग-अलग ऐलान किया, तो कई सीटों पर सहयोगी ही प्रतिद्वंद्वी बन बैठे। यह तस्वीर न सिर्फ राजनीतिक असहमति दिखा रही थी, बल्कि संवाद की कमी का खुला सबूत भी थी। हालात संभालने के लिए कांग्रेस ने अपने अनुभवी नेता और संकटमोचक माने जाने वाले अशोक गहलोत को मैदान में उतारा। गहलोत को पटना भेजा गया, जहां उन्होंने लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव से लंबी बातचीत की। इस मुलाकात की तस्वीरें जैसे ही सामने आईं, सियासी गलियारों में यह संदेश गया कि महागठबंधन में दरार भरने की कोशिश अब शीर्ष स्तर से शुरू हो चुकी है और यह सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि रणनीतिक पहल थी। Bihar Election
लालू प्रसाद यादव और अशोक गहलोत की मुलाकात के ठीक अगले दिन यानी 23 अक्टूबर को पटना में महागठबंधन ने साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर राजनीतिक माहौल को गर्मा दिया। इस मंच पर तेजस्वी यादव को औपचारिक रूप से मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया गया। एक ऐसा फैसला जिस पर अब तक सबसे ज्यादा मतभेद थे। यह घोषणा गठबंधन की एकजुटता का प्रतीक तो बनी, लेकिन तस्वीर में राहुल गांधी की गैरमौजूदगी ने राजनीतिक संदेश को अधूरा कर दिया। बीजेपी ने तुरंत इस मौके को भुनाया और सवाल उठाया कि क्या कांग्रेस वाकई गठबंधन के फैसलों में बराबर की भागीदार है? यानी, जहां एक ओर महागठबंधन ने एकता दिखाने की कोशिश की, वहीं राहुल की अनुपस्थिति ने उस तस्वीर में एक हल्की दरार भी छोड़ दी।
महागठबंधन ने महज पांच दिन में अपनी सबसे बड़ी चूक को दुरुस्त कर लिया। 28 अक्टूबर, मंगलवार को जब ‘तेजस्वी प्रण’ नाम से घोषणापत्र जारी हुआ, तो इस बार तस्वीर पूरी थी तेजस्वी यादव के साथ राहुल गांधी भी प्रमुखता से दिखे। बीते प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल की गैरमौजूदगी पर बीजेपी ने तंज कसते हुए कहा था कि आरजेडी ने कांग्रेस को उसकी “औकात” दिखा दी है। लेकिन इस बार महागठबंधन ने उसी तीर को वापस विपक्ष की ओर मोड़ दिया। घोषणापत्र के कवर पर राहुल की मौजूदगी ने साफ कर दिया कि कांग्रेस अब साइडलाइन नहीं, बल्कि गठबंधन के केंद्र में है और यही संदेश जनता तक पहुंचाना इस कदम का असली मकसद था।
सीट बंटवारे की रेस में भले महागठबंधन एनडीए से पिछड़ गया हो, लेकिन घोषणापत्र जारी करने के मोर्चे पर उसने बढ़त बना ली। 28 अक्टूबर को तेजस्वी यादव की अगुवाई में जारी ‘बिहार का तेजस्वी प्रण’ सिर्फ एक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि आने वाले पांच सालों के लिए गठबंधन का विज़न चार्ट है। इसमें रोजगार से लेकर सुशासन तक का रोडमैप खींचा गया है, जिससे यह साफ संकेत जाता है कि महागठबंधन अब बचाव नहीं, ‘पॉलिसी पिच’ की राजनीति खेलने के मूड में है। Bihar Election
राहुल गांधी ने बुधवार से बिहार में प्रचार अभियान की शुरुआत की है। सकरा और दरभंगा की रैलियों में वे तेजस्वी यादव के साथ मंच साझा करेंगे। इस कदम का संदेश साफ है फ्रेंडली फाइट वाली सीटों के बावजूद गठबंधन एकजुट है। इसके अलावा, 10 नवंबर को महागठबंधन की संयुक्त रैली होगी, जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भी हिस्सा लेंगे। कांग्रेस ने यह भी तय किया है कि जिन सीटों पर सहयोगी दलों के खिलाफ फ्रेंडली फाइट है, वहां राहुल या खरगे प्रचार नहीं करेंगे। रणनीति यह है कि मतदाता को भ्रमित किए बिना एकजुटता का संकेत दिया जाए। Bihar Election


