Hindi Kahani - नली का कमाल

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar12 Jun 2023 03:42 PM
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Hindi Kahani - राजा कृष्णदेव राय का दरबार लगा हुआ था। महाराज अपने दरबारियों के साथ किसी चर्चा में व्यस्त थे। अचानक से चतुर और चतुराई पर चर्चा चल पड़ी। महाराज कृष्णदेव के दरबार में दरबारियों से लेकर राजगुरु तक तेनालीराम से चिढ़ते थे। तेनालीराम को नीचा दिखाने के उद्देश्य से एक मंत्री ने खड़े होकर कहा – महाराज! आपके इस दरबार मे बुद्धिमान और चतुर लोगो की कमी नहीं। यदि अवसर दिया जाए तो हम भी अपनी बुद्धिमानी सिद्ध कर सकते हैं किंतु?

Hindi Kahani - नली का कमाल

“किन्तु क्या मंत्री जी”, महाराज कृष्णदेव ने आश्चर्य से पूछा। सेनापति अपने स्थान से उठकर बोला – मैं बताता हूं महाराज! मंत्री जी क्या कहना चाहते हैं। तेनालीराम के सामने किसी भी दरबारी को अपनी योग्यता सिद्ध करने की प्राथमिकता नहीं दी जाती। हर मामले में तेनालीराम आगे अड़ कर चतुराई का श्रेय स्वयं ले जाते हैं। जब तक अन्य लोगो को अवसर नही मिलेगा। वे अपनी योग्यता कैसे सिद्ध करेंगे। सेनापति की बात सुनकर महाराज समझ गए कि सभी दरबारी तेनालीराम के विरोध में हैं। महाराज कुछ क्षण के लिए शांत होकर सोचने लगे। तभी उनकी दृष्टि कोने में लगी ठाकुर जी की प्रतिमा पर गयी। प्रतिमा के सामने जलती धूपबत्ती को देखकर राजा को सभी दरबारियों की परीक्षा लेने का उपाय सूझ गया।

उन्होंने फौरन कहा – आप सभी को अपनी योग्यता सिद्ध करने का एक अवसर अवश्य दिया जाएगा। और जब तक आप सभी अपनी योग्यता सिद्ध नही कर देते तेनालीराम भी बीच में नहीं आएगा। यह सुनकर सभी दरबारी बड़े प्रसन्न हुए। ठीक है महाराज! कहिए हमें क्या करना है। राजा ने धूपबत्ती की और इशारा करते हुए कहा – मुझे दो हाथ धुंआ चाहिए। जो भी दरबारी ऐसा कर पाया उसे तेनालीराम से भी अधिक बुद्धिमान और चतुर समझा जाएगा।

राजा कृष्णदेव की बात सुनकर सभी दरबारी आपस में फुसफुसाने लगे कि यह कैसा मूर्खतापूर्ण कार्य है। भला धुंआ भी कभी नापा जा सकता है। एक-एक कर सभी दरबारी अपनी-अपनी युक्ति लगाकर धुंआ नापने में लग गए। कोई दोनों हाथों में धुंआ नापने की कोशिश करता किन्तु धुंआ हाथों से निकल लहराता हुआ ऊपर की तरफ निकल जाता। सभी ने भरपूर कोशिश की लेकिन कोई भी दो हाथ धुंआ महाराज को न दे सका।

Hindi Kahani - नली का कमाल

जब सभी दरबारी थक कर बैठ गए तो एक दरबारी बोला – महाराज! धुंआ नापना हमारी दृष्टि में असंभव कार्य है। हाँ, यदि तेनालीराम ऐसा कर पाए तो हम उसे अपने से भी चतुर मान लेंगे। किन्तु वह ऐसा नहीं कर पाए तो आप उसे हमारे समान ही समझेंगे। राजा मंद-मंद मुस्कुरातें हुए बोले – क्यों तेनाली! क्या तुम्हें यह चुनौती स्वीकार है। तेनालीराम ने अपने स्थान से उठकर सिर झुकाते हुए कहा – अन्नदाता! मैंने सदैव आपके आदेश का पालन किया है। इस बार भी अवश्य करूँगा।

तेनालीराम ने एक सेवक को बुलाकर उसके कान में कुछ शब्द कहे। सेवक तुरंत दरबार से चला गया। अब तो दरबार मे सन्नाटा छा गया। सभी यह देखने के लिए उत्सुक थे कि कैसे तेनालीराम राजा को दो हाथ धुंआ देता है। तभी सेवक शीशे की बनी दो हाथ लंबी नली लेकर दरबार मे हाज़िर हुआ। तेनालीराम ने उस नली का मुंह धूपबत्ती से निकलते धुंए पर लगा दिया। थोड़ी ही देर में शीशे की नली धुंए से भर गयी और तेनाली ने नली के मुहँ पर कपडा लगा दिया और उसे महाराज की ओर करते हुए कहा महाराज ये लीजिए दो हाथ धुआं।

यह देख महाराज के चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी और उन्होंने तेनाली से नली ले ली और दरबारियों की तरफ देखा। सब के सिर नीचे झुके हुए थे। लेकिन दरबार में कुछ दरबारी ऐसे भी थे जो तेनालीराम के पक्ष में थे। उन सब की आँखों में भी तेनाली के लिए प्रशंसा के भाव थे। तेनालीराम की बुद्धिमानी और चतुराई देख, राजा बोले- अब तो आप मान गए होंगे की तेनालीराम की बराबरी कोई नही कर सकता। दरबारी भला क्या बोलते, वो सब चुप सुनते रहे।

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Hindi Kavita – तुम हमें यूं सताया ना करो

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Hindi Kavita
locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 10:29 AM
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Hindi Kavita – जुल्फें नहीं वो घटाएं हैं, इन्हें फिजूल उड़ाया ना करो। जानते हैं हम, तुम अप्सरा हो, हर किसी को यूंही बताया ना करो। बदनाम हो जाओगी तुम एक दिन, दिल सबका यूं चुराया ना करो। निगाहें, शराब हैं तुम्हारी, मुफ्त में इसे पिलाया ना करो। मुखड़ा तुम्हारा एक चांद है, परदों में इसे छिपाया ना करो। घटा के बीच की लाली है वो, गुलाब होंठो से हटाया ना करो। अब इजहार कर ही दो हमसे, यूं बेवजह दिल बहलाया ना करो। कब तक तारीखें बढ़ाते जाओगे, इस तरह बहाना बनाया ना करो। कहीं छोड़ ना दे, जान जिस्म को, मीत तुम हमें यूं सताया ना करो। - अनुभव शर्मा ———————————————— यदि आपको भी कहानी, कविता, गीत व गजल लिखने का शौक है तो उठाइए कलम और अपने नाम व पासपोर्ट साइज फोटो के साथ भेज दीजिए। चेतना मंच की इस ईमेल आईडी पर-  chetnamanch.pr@gmail.com हम आपकी रचना को सहर्ष प्रकाशित करेंगे।

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Hindi Kahani - बूढ़ा भिखारी

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar28 Nov 2025 03:46 AM
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Hindi Kahani - सर्दियों का मौसम था। महाराज कृष्णदेव अपने कुछ मंत्रियों के साथ किसी काम से नगर से बाहर जा रहे थे। ठंड इतनी थी कि सभी दरबारी मोटे-मोटे ऊनी वस्त्र पहनने के बाद भी काँप रहे थे। चलते-चलते राजा की दृष्टि एक बूढ़े भिखारी पर पड़ी जो हाथ में कटोरा लिए इस कड़कड़ाती ठंड में एक पत्थर पर बैठा काँप रहा था।

भिखारी की ऐसी स्थिति देखकर महाराज से रहा न गया। रथ रूकवाकर पहुँच गए उस स्थान पर जहाँ वह बूढ़ा भीख मांग रहा था। कुछ देर तक राजा कृष्ण देव भिखारी को देखते रहे और फिर अपना कीमती शॉल उतार कर बूढ़े भिखारी को ओढ़ा दिया। महाराज की ऐसी उदारता देख सभी दरबारी व आसपास के लोग राजा की प्रशंसा करते हुए जय-जयकार करने लगे। जब सब लोग महाराज की प्रशंसा करने में लगे थे तब केवल तेनालीरामन ही ऐसा व्यक्ति था जो चुप खड़ा हुआ था। तेनाली को चुप देख राजपुरोहित को बोलने का अवसर मिल गया।

Hindi Kahani - बूढ़ा भिखारी

वह तपाक से बोला- क्या बात है तेनालीरामन यहाँ सभी महाराज के इस कार्य की प्रशंसा कर रहे हैं? केवल तुम ही चुप हो। क्या तुम्हें महाराज की उदारता पर कोई संदेह है? तेनाली फिर भी चुप रहे। अब महाराज को भी तेनालीराम की यह चुप्पी खलने लगी। वह वही से वापस राजमहल लौट चले। पूरे रास्ते राजपुरोहित तेनालीराम के विरुद्ध महराज कृष्ण देव को भड़काता रहा।

अगले दिन जब दरबार लगा तो सबसे पहले दरबार में महाराज ने तेनालीराम को संबोधित करते हुए पूछा – लगता है तुम्हें स्वयं पर अधिक घमंड हो गया है। तभी कल तुम चुप चाप खड़े थे। महाराज के पूछने पर भी तेनालीराम कुछ नहीं बोले। अब तो महाराज तिलमिला उठे और तेनाली को एक वर्ष के लिए देश निकाले की सजा दे डाली। सजा सुनाते हुए महाराज ने कहा – “तुम अभी विजयनगर को छोड़कर चले जाओ और जाते समय अन्य सभी कुछ यहीं छोड़कर केवल एक वस्तु अपने साथ ले जा सकते हो। बताओ, तुम क्या साथ ले जाना चाहते हो?” तेनालीरामन ने मुस्कुराते हुए कहा – “महाराज!, आपका दिया दंड भी मेरे लिए पुरूस्कार के समान है। लेकिन आपकी आज्ञा है तो मैं अपने साथ वह शॉल ले जाना चाहता हूं। जो कल आपने उस बूढ़े भिखारी को दिया था।”

तेनाली की बात सुनकर दरबार में उपस्थित सभी दरबारी और महाराज सन्न रह गए। भला दिया गया शॉल वापस कैसे मांगा जाए। ऐसा करना तो महाराज का अपमान जैसा होगा। अब चूँकि शॉल का मामला दंड से जुड़ चुका था इसलिए महाराज ने आदेश दिया कि उस बूढ़े भिखारी को शॉल सहित दरबार मे उपस्थित किया जाए।

Hindi Kahani - बूढ़ा भिखारी

आदेश का पालन करते हुए सैनिक कुछ ही देर में बूढ़े भिखारी को दरबार में लेकर आ गए। राजा कृष्ण देव ने उस भिखारी से कहा – “कल जो शॉल हमनें तुम्हें दिया था वह हमें वापस कर दो। बदले में हम तुम्हें अन्य बहुमूल्य वस्त्र और शॉल दे देंगे।” राजा की बात सुनकर भिखारी घबरा गया और इधर-उधर बगलें झाँकने लगा। सैनिकों के जोर देकर पूछने पर उसने कहा – महाराज! वह शॉल बेचकर तो मैंने रोटी खा ली।

बूढ़े भिखारी के मुँह से यह बात सुनकर महाराज कृष्ण देव क्रोध से भर गए। परन्तु बात उनके सम्मान की थी इसलिए उन्होंने भिखारी को आगे कुछ न कहते हुए दरबार से चले जाने का आदेश दिया। अब वे तेनाली की और देखते हुए बोले – “हमें सीधे-सीधे जवाब दो कल तुम चुप क्यों थे ? क्या कल तुम्हें हमारा कार्य पसन्द नहीं आया ?”

तेनालीराम हाथ जोड़ते हुए कहने लगा – “क्षमा करें! महाराज!, आपको मेरी चुप्पी का उत्तर भिखारी से मिल गया। भिखारी को कीमती शॉल की नहीं बल्कि पेट भरने के लिए रोटी की जरूरत थी। मैं आपको शॉल देते हुए रोक नहीं सकता था इसलिए चुप ही रहा।” राजा कृष्ण देव राय को तेनालीराम की बात जच गयी। उन्होंने तभी अपने मंत्रियों को आज आदेश दिया कि नगर में ऐसा प्रबंध करो ताकि किसी भी नगरवासी को पेट भरने के लिए भीख न मांगनी पड़े।

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