MP News: पेशाब कांड: इस तरह की माफ़ी के लिए बड़ा कलेजा चाहिए...

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CBI should investigate the incident of urinating on a tribal youth: Congress
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calendar08 Jul 2023 07:31 PM
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  MP News: कहते हैं सज़ा देने से बड़ा माफ़ करने वाला होता हैं लेकिन जब किसी के साथ जघन्य अपराध किया गया हो और फिर भी पीड़ित, खुद सरकार से अपराधी के लिए माफ़ी की मांग करें तब आप क्या कहेंगे? ऐसा ही कुछ हुआ है मध्यप्रदेश के सीधी के बहुचर्चित पेशाब कांड में... उल्लेखनीय है की बीते दिनों सीधी से बीजेपी विधायक केदार शुक्ला के प्रतिनिधि प्रवेश शुक्ला द्वारा एक आदिवासी दशमत रावत के मुंह पर शराब के नशे में पेशाब किया गया जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर तेज़ी से वायरल हुआ इस घटना को लेकर हल्ला मचने लगा सोशल मीडिया पर लोगों के द्वारा इस घटना पर जातिगत भेदभाव के आरोप लगाए जानें लगे। इस घटना की भनक जैसे ही सीएम शिवराज को लगी उन्होने स्वयं संज्ञान लेते हुए आरोपी प्रवेश शुक्ला के ऊपर कार्यवाई के निर्देश दिए फिर क्या था शिवराज सरकार का बुल्डोजर प्रवेश शुक्ला के घर पर जा धमका और तोड़फोड़ की गई इस दौरान प्रवेश की मां का रो रो कर बुरा हाल था और वो अचेत भी हो गई थी

MP News  मध्य प्रदेश में चुनाव जल्द हैं ऐसे में इस घटना से बीजेपी आलाकमान के माथे पर आए शिकन 

दशमत के साथ हुई इस घटना ने चुनावी साल में बीजेपी को बैकफुट पर ला दिया है. बीजेपी समझ नहीं पा रही कि इस घटना से कैसे निपटें, पार्टी की छवि को जो धक्का लगा है उससे कैसे उबरें, क्योंकि मध्य प्रदेश में आदिवासी समाज की आबादी 21 प्रतिशत है और विधानसभा की 47 सुरक्षित सीटें आदिवासियों के लिये हैं. ऐसे में इस घटना ने आदिवासियों के वोट में सेंध लगाने की कोशिश कर रही बीजेपी को परेशान कर दिया है. जिसकी वजह से शिवराज सिंह चौहान ने डैमेज कंट्रोल करने की ज़िम्मेदारी अपने कंधो पर ली उन्होने सीधी से करीब छह सौ किलोमीटर दूर भोपाल में मुख्यमंत्री निवास पर कुर्सी पर दशमत रावत (पीड़ित) को बैठाकर पैर धुला. माला पहनाई, शॉल और श्रीफल दिए. फिर उन्हें मीठा खिलाया और बैठकर नाश्ता भी कराया. और क्षमा याचना भी की जिसका वीडियो तेज़ी से प्रसारित किया गया...

इसके बाद इन सबके बीच पीड़ित का एक बयान आया जिसमें वो कहता है

‘जो गलती हुई थी उसकी सजा मिल गई। वो (प्रवेश शुक्ला) हमारे गांव के पंडित हैं उनको छोड़ दिया जाए…' साथ ही उन्होने और मांगो के सवाल पर गांव के लिए 'सड़क' बनवाने की मांग की इस तरह की माफ़ी देने के लिए बड़ा कलेजा चाहिए जो कि पीड़ित दसमत रावत के पास है लेकिन एक समाज के तौर पर उनके इस बयान में हमारी हार है ये मन को व्यथित करने वाला बयान है .. आपका इस घटना के बारे में क्या सोचना है आप हमे कॉमेंट में लिख कर भेज सकते हैं

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World Chocolate Day: क्या है वेलेंटाइन वीक के चॉकलेट डे और विश्व चॉकलेट डे में अंतर, जाने यहां

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calendar07 Jul 2023 03:50 PM
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By: Supriya Srivastava, 7 July
World Chocolate Day: किसी भी खास मौके को खुशहाली के साथ सेलिब्रेट करने में स्वीट यानी मिठाई का बहुत खास महत्व होता है। जब मीठे की बात की जाए तो उसमे चॉकलेट का नाम न आए ऐसा हो ही नहीं सकता, क्योंकि चॉकलेट सिर्फ स्वाद के लिए नहीं होता है, बल्कि किसी भी खास मौके पर चॉकलेट एक बेहतरीन गिफ्ट भी होता है। बर्थडे हो या एनिवर्सरी, प्यार का इजहार करना हो या दोस्ती की शुरुआत, चॉकलेट की मिठास के साथ हर रिश्ते की मीठी शुरुआत की जा सकती है। चॉकलेट सिर्फ खाने में स्वादिष्ट नहीं होता है बल्कि इससे सेहत के भी कई राज जुड़े हुए हैं। अब जब चॉकलेट इतने गुणों से भरपूर है तो इसके लिए एक दिन तो बनता है। प्रतिवर्ष 7 जुलाई का दिन विश्व चॉकलेट दिवस के रूप में मनाया जाता है। आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि जब वेलेंटाइन वीक में 9 फरवरी को चॉकलेट दिवस मनाया जाता है, तो फिर 7 जुलाई को मनाया जाने वाला विश्व चॉकलेट दिवस इससे अलग कैसे ?

वेलेंटाइन वीक में मनाया जाने वाला चॉकलेट डे, World Chocolate Day से कैसे हैं अलग -

जैसा कि आप सभी जानते हैं, वेलेंटाइन वीक प्यार के सप्ताह के रूप में जाना जाता है। 7 फरवरी को रोज डे से शुरू हुआ यह दिन 14 फरवरी को वैलेंटाइंस डे के साथ समाप्त होता है। इसी वीक के बीच में 9 फरवरी को चॉकलेट डे मनाया जाता है। जैसा कि ऊपर हमने बताया कि वेलेंटाइन वीक प्यार के इजहार का सप्ताह होता है, ऐसे में इस बीच के बीच में मनाया जाने वाला चॉकलेट डे, प्यार की नई शुरुआत का एक जरिया होता है। जिसमें लोग अपने किसी खास को चॉकलेट गिफ्ट कर अपने दिल की बात का इजहार करते हैं। लेकिन 7 जुलाई को मनाया जाने वाला वर्ल्ड चॉकलेट डे का इससे कोई लेना-देना नहीं है। यह दिन तो चॉकलेट के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। जी हां, आपने सही पढ़ा, सन 1550 में आज ही के दिन यूरोप में चॉकलेट बनाने की शुरुआत की गई थी।

World Chocolate Day का इतिहास :

आज पूरी दुनिया में चॉकलेट बहुत शौक से खाई जाती है। बच्चे से लेकर बूढ़े तक हर किसी को चॉकलेट की मिठास पसंद होती है। यूं तो दुनिया में चॉकलेट का इतिहास करीब 2500 साल पुराना है। अमेरिका के रेन फॉरेस्ट में करीब 2000 साल पहले कोको के पेड़ की खोज की गई जिसके फल से चॉकलेट बना। शुरुआती दौर में चॉकलेट खाने में बहुत कड़वा होता था। बाद में धीरे-धीरे इसमें सुधार किया गया और इसे कड़वे से मीठा बनाया गया। विश्व चॉकलेट दिवस मनाने की शुरुआत साल 2009 में की गई। चॉकलेट की इतिहास की माने तो सन 1550 में पहली बार यूरोप में चॉकलेट अस्तित्व में आया। यूरोप में ही चॉकलेट पर काफी रिसर्च किए गए और इसके स्वाद को अलग-अलग तरह से तब्दील किया गया। यूरोप में चॉकलेट की शुरुआत के वर्षगांठ के रूप में ही यह दिन मनाया जाता है।

स्वाद से भरे चॉकलेट खाने के ये लाभ -

हर वर्ग के लोगों का प्रिय चॉकलेट स्वाद के साथ सेहत के लिए भी है फायदेमंद। विशेषज्ञों के अनुसार चॉकलेट के सेवन से अवसाद की समस्या कम होती है। तनाव अथवा डिप्रेशन की समस्या होने पर चॉकलेट के सेवन से इसे काफी हद तक कम किया जा सकता है। हालांकि इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि चॉकलेट का अत्यधिक सेवन नुकसानदायक भी को सकता है। आपको ये पोस्ट कैसी लगी कमेंट सेक्शन में हमें जरूर बताएं। 

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Maharashtra Politics NCP Crisis: आखिर क्यों पड़ी NCP में फूट, कैसे ढह गया शरद पवार का किला

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Maharashtra Politics NCP Crisis:
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calendar04 Jul 2023 03:55 PM
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  Maharashtra Politics NCP Crisis:  2 जुलाई को महाराष्ट्र की राजनीति (Politics of Maharashtra) में एक बार फिर भूचाल आ गया। जब शरद पवार की एनसीपी (NCP) में फूट पड़ गई। उनके भतीजे अजित पवार ने अपने चाचा को झटका देते हुए, अलग राह लेकर एनडीए (NDA) में शामिल होने का फैसला कर लिया। अजित पवार (Ajit Pawar) के साथ शरद पवार(Sharad Pawar) के करीबी माने जाने वाले छगन भुजबल (Chhagan Bhujbal), प्रफुल्ल पटेल (Praful Patel) और दिलीप वलसे पाटिल (Dilip Walse Patil) भी पार्टी से अलग हो गए हैं। अजित पवार बतौर उपमुख्यमंत्री प्रदेश की एकनाथ शिन्दे सरकार में का भी हिस्सा बन गए हैं। उनके साथ 8 और मंत्रियों ने भी शपथ ग्रहण की। आखिर ऐसा क्या हुआ जो इन नेताओं को ये कदम उठाना पड़ा? एनसीपी में इस फूट के पीछे की वजह क्या है? कैसे राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले शरद पवार को अपना किला ढहने की खबर नहीं हुई? इन सवालों के जवाब बताते हैं।

Maharashtra Politics NCP Crisis अजित पवार को पार्टी में साइड लाइन किया जाना

अगर अजित पवार कि बात करें तो एक समय एनसीपी में वो बड़ी हैसियत रखते थे, उनकी पार्टी और संगठन में गहरी पकड़ थी। कई बार तो लगा कि वो शरद पवार के उत्तराधिकारी बन सकते हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से उनकी लगातार उपेक्षा की जा रही थी। उनका पार्टी में कद कम हो गया था। इसकी बड़ी वजह उनका 2019 में शरद पवार से बगावत कर बीजेपी (BJP) से हाथ मिलाना थी। दरअसल अजित पवार ने 2019 में भी पार्टी से बगावत की थी और देवेन्द्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। लेकिन ये सरकार 80 घंटे में ही गिर गई, क्योंकि शरद पवार के कड़े रुख के बाद उनके साथ बगावत करने वाले नेता पार्टी में वापस लौट गए। मजबूरन अजित पवार को भी पलटी मारनी पड़ी और वापस पार्टी में लौटना पड़ा। लेकिन उन्हें वो सम्मान नहीं मिल सका, जो पहले हासिल था। Maharashtra Politics NCP Crisis अजित पवार अपमान का घूंट पी कर रह गए। उस समय उनकी हालत धोबी के कुत्ते वाली हो गई थी, जो न घर का रहा था और न ही घाट का। क्योंकि बिना एमएलए के वो बीजेपी के किसी काम के नहीं थे और जब उन्होंने घर वापसी की तो उसके बाद उनकी अहमियत कम हो चुकी थी। अब अजित फिर से पार्टी में अपनी पुरानी पोजीशन बनाने के प्रयास में जुट गए।

Maharashtra Politics NCP Crisis अजित पवार भूले नहीं अपना अपमान

अजित पवार ने 2019 के घटनाक्रम के बाद पार्टी में वापसी जरूर की, लेकिन वो अलग-थलग पड़ गए। उनके प्रयासों के बाद भी उन्हें पार्टी में साइड लाइन लगा दिया गया। इस अपमान को अजित पवार भूले नहीं, लेकिन वो विवश थे, इसलिए कड़वा घूंट पी गए। इस साल मई कि शुरुआत में में शरद पवार ने अपना अध्यक्ष पद छोड़ने का निर्णय किया। हालांकि बाद में अपने निर्णय को बदल कर उन्होंने अपना इस्तीफा वापस ले लिया। साथ ही पवार ने पार्टी में 2 कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का फैसला भी किया, तो यहाँ भी अजित पवार का नाम इस लिस्ट में नहीं था। जिन 2 लोगों को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था, वो थे प्रफुल्ल पटेल और शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले (Supriya Sule)। अजित पवार को फिर से दरकिनार कर दिया गया था।

राजनीतिक महत्वाकांक्षा का हावी होना

राजनीति में महत्वाकांक्षा होना कोई नई बात नहीं है, लेकिन कभी-कभी ये महत्वाकांक्षा सिद्धांतों और नीतियों पर हावी हो जाती है। नेता सत्ता के लिए हर तरह के समझौतों के लिए तैयार हो जाते हैं। शरद पवार ने भी कॉग्रेस और शिवसेना के साथ जाकर यही किया और अजित पवार आदि नेता भी अब एनडीए के साथ जाकर ऐसा ही कुछ कर रहे हैं। पहले शरद पवार ने सिद्धांतों और नीतियों को दरकिनार कर दिया था। अब अजित पवार और उनके सहयोगियों ने भी सिद्धांतों और नीतियों से समझौता कर लिया है। वैसे ये भी माना जा रहा है कि अपने ऊपर चल रहे भ्रष्टाचार के केसों में सरकारी जांच एजेंसियों से बचने के लिए इन्होंने एनडीए के साथ जाने का निर्णय लिया है, ताकि उनके खिलाफ चल रहे मामलों में ढील मिल जाए।

फिर पड़ा वंशवाद अनुभव पर भारी

जैसा कि आधुनिक राजनीति में होता है, परिवारवाद पार्टियों पर हावी रहता है, खासकर क्षेत्रीय पार्टियों में तो ये आगे बढने का एकमात्र माध्यम बन गया है। अब तो बात परिवारवाद से निकल कर सिर्फ पुत्र-पुत्री तक ही सीमित हो गई है। पार्टी कोई भी हो, अधिकांश पार्टियों की स्थिति यही है कि योग्यता नहीं पार्टी के सर्वेसर्वा की संतान होना ही सबसे बड़ी योग्यता बन गई है। अनुभवी और योग्य लोगों को दरकिनार कर संतान को आगे बढ़ाया जाता है, चाहे वो योग्य हो या नहीं। इसका नतीजा ये होता है कि पार्टी से जुड़े लोगों में असंतोष की भावना आ जाती है। जब उन्हें लगता है कि पानी सिर से ऊपर जा रहा है, तो इसी तरह का परिणाम होता है, जैसा एनसीपी में हुआ है। पहले भी अन्य कई दलों में ऐसा हो चुका है। अगर महाराष्ट्र की ही बात करें तो शिवसेना (Shiv Sena) को ऐसे झटके एक बार नहीं दो बार लग चुके हैं। पहली बार जब बाला साहेब ठाकरे के अपने पुत्र उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) को आगे बढ़ाने के प्रयास से असन्तुष्ट होकर उनके भतीजे राज ठाकरे (Raj Thackeray) उनसे अलग हो गए थे। दूसरी बार जब उद्धव ठाकरे से असन्तुष्ट होकर एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) के नेतृत्व में शिवसेना दो फाड़ हो गई थी।Maharashtra Politics NCP Crisis

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