मोदी-अमित शाह की इस गलती से हिमाचल-दिल्ली में हारी बीजेपी

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calendar02 Dec 2025 04:03 AM
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राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह और नरेंद्र मोदी की टीम ने गुजरात ही नहीं हिमाचल और दिल्ली में अपनी पूरी ताकत झोंक दी इसके बावजूद, पार्टी को तीन में से दो जगहों पर हार का सामना करना पड़ा। साल 2022 के अंतिम महीने में दिल्ली नगर निगम सहित गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हुए। दिल्ली नगर निगम के चुनाव प्रचार में लगे पोस्टरों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे का इस्तेमाल किया गया। इसके बावजूद 15 साल से एमसीडी में काबिज भारतीय जनता पार्टी को महज 10 साल पहले बनी आम आदमी पार्टी ने सत्ता से बेदखल कर दिया। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को विधानसभा की 68 में से 40 सीटों पर जीत मिली है जबकि, बीजेपी 25 सीटों पर जीती है। अगर वोट प्रतिशत की बात करें तो हिमाचल में कांग्रेस के वोट प्रतिशत में पिछले चुनाव (41.68%) की तुलना में दो प्रतिशत से भी कम की वृद्धि हुई है। इस बार कांग्रेस को 43% वोट मिले हैं लेकिन, सीटें लगभग दो गुनी हुई हैं। पिछली बार कांग्रेस को 21 सीटों मिली थी जबकि, इस बार 40 मिली हैं।

वोट प्रतिशत बढ़ने के बावजूद मिली हार

अजीब बात यह है कि हार के बावजूद दिल्ली नगर निगम चुनाव में बीजेपी के वोट प्रतिशत में करीब दो प्रतिशत की बढ़ोत्तरी (37 से 39%) हुई है। इसके बावजूद वह आम आदमी पार्टी से चुनाव हार गई है। निगम की 250 में से 134 सीटें जीतने वाली आप (AAP) को बीजेपी से केवल दो प्रतिशत ज्यादा (41%) वोट मिले हैं। गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी को प्रचंड जीत मिली है लेकिन, उसके वोट प्रतिशत में केवल तीन फीसदी की बढ़त हुई है। पिछली बार पार्टी को 49.5% वोट मिले थे जबकि, इस बार उसे 52.5% वोट मिले हैं। लेकिन, सीटों की संख्या 99 से 156 पर पहुंच गई है। आंकड़ों से साफ है कि तीनों चुनाव में जीत दर्ज करने वाली पार्टियों के वोट प्रतिशत में कोई अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। खुद को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी कहने वाली बीजेपी दिल्ली में देश की सबसे नई पार्टी और हिमाचल में देश की फिलहाल सबसे कमजोर राष्ट्रीय पार्टी से चुनाव हार गई है। अजीब बात यह है कि बीजेपी के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी मूलत: हिमाचल के ही हैं।

हार की पहली वजह

इन आंकड़ों से यह भी स्पष्ट है कि बीजेपी को वोट देने वाले उसके कट्टर समर्थकों में कम से कम दिल्ली में कोई कमी नहीं आई है। तो, सवाल उठना स्वाभाविक है कि वोट प्रतिशत में बढ़ा फेरबदल न होने के बावजूद आखिर बीजेपी दिल्ली और हिमाचल प्रदेश चुनाव क्यों हार गई? यह सब जानते हैं कि चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह और अपराजेय नरेंद्र मोदी की जोड़ी की सहमति के बिना बीजेपी में एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। साफ है कि अमित शाह और मोदी के आगे किसी स्थानीय नेता तो क्या राष्ट्रीय नेता की भी दाल गलना मुश्किल है। ऐसे में दिल्ली या हिमाचल में पार्टी की अंदरुनी कलह, असंतोष और स्थानीय नेताओं और मुद्दों की अनदेखी कोई नई बात नहीं है।

हार की दूसरी वजह

चाणक्य को लगता है कि उनके पास चुनाव जीतने का ऐसा फार्मूला है जिसमें नेता और मुद्दे मायने नहीं रखते। अमित शाह यह मानते हैं कि अगर कोई एक नेता जो देश में होने वाले किसी भी चुनाव के परिणामों को बदल सकता है तो, वह नरेंद्र मोदी हैं। दिल्ली और हिमाचल चुनाव से बहुत पहले कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, झारखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी अपने दोनों ब्रह्मास्त्र इस्तेमाल कर चुकी है और सभी जगहों पर पार्टी को मुंह की खानी पड़ी है। मोदी-अमित शाह की जोड़ी ने पार्टी और चुनावी रणनीति पर अपना एकछत्र नियंत्रण स्थापित कर रखा है। इसका सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ है कि पार्टी में स्थानीय या राज्य स्तरीय नेताओं की खुलेआम अनेदखी हुई है। रमन सिंह, वसुंधरा राजे, येदियुरप्पा से लेकर शिवराज सिंह चौहान को साइड लाइन करने का नतीजा इन राज्यों के विधानसभा चुनावों में सामने आने के बावजूद, पार्टी ने दिल्ली और हिमाचल प्रदेश में उसी गलती को दोहराया।

हार की तीसरी वजह

बीजेपी ने स्थानीय या राज्य-स्तरीय नेताओं ही नहीं, स्थानीय मुद्दों की भी लगातार अनदेखी की है। बीजेपी की चुनावी मशीन का मानना है कि नरेंद्र मोदी के नाम पर किसी भी चुनाव को जीता जा सकता है। इसी अति-आत्मविश्वास के चलते पार्टी ने हिमाचल प्रदेश में पुरानी पेंशन स्कीम सहित सेब बागानों और उससे जुड़ी समस्याओं की अनदेखी की जिसकी कीमत उसे सत्ता गवां कर चुकानी पड़ी। पार्टी को यह समझना होगा कि मोदी अमित शाह के इस रवैये के चलते बीजेपी में ऐसे क्षेत्रीय या स्थानीय नेताओं की लगातार कमी होती जा रही है जो अपने दम पर किसी राज्य या विधानसभा की सीट जीत सकें। इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि बीजेपी अपने ज्यादातर चुनावों में अधिकतर सांसदों, विधायकों या पार्षदों को दोबारा चुनाव लड़वाने से बचती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस बार भी गुजरात में मिली प्रचंड जीत को ही जमकर उछाला जाएगा और दिल्ली या हिमाचल की हार को हल्के में लिया जाएगा। संभव है कि दिल्ली या हिमाचल की हार का ठीकरा किसी के सिर पर फोड़ दिया जाए और गुजरात की जीत का नायक बताकर मोदी को फिर से तुरुप का पत्ता साबित करने की कोशिश शुरू हो जाए। बीजेपी की यह रणनीति उसे कांग्रेस की ही तरह बना देती है जहां हर जीत के लिए गांधी परिवार को श्रेय दिया जाता है और हार का जिम्मेदार कोई नहीं होता। देखना दिलचस्प होगा कि अगले साल राजस्थान, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ या पूर्वोत्तर के राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी इसी रणनीति पर चलती है या उसमें कोई बदलाव होता है। -संजीव श्रीवास्तव
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Gujarat Election: 2022 में 15 महिला उम्मीदवार सफल, इनमें 14 भाजपा से

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calendar30 Nov 2025 04:52 AM
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Gujarat Election: अहमदाबाद। गुजरात विधानसभा चुनाव में विजयी महिला उम्मीदवारों की संख्या में पिछली बार की तुलना में मामूली वृद्धि हुई। इस बार 15 महिला उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की जबकि 2017 के चुनाव में उनकी संख्या 13 थी।

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चुनाव में सफल 15 महिला विधायकों में से 14 भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से हैं, जबकि एक कांग्रेस से। इस बार विभिन्न राजनीतिक दलों और निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर कुल 139 महिला उम्मीदवार मैदान में थीं। 2012 के विधानसभा चुनावों में जीतने वाली महिला उम्मीदवारों की संख्या 16 थी। वहीं 2017 के चुनाव में 13 महिलाओं ने जीत हासिल की थी। लेकिन इनमें से एक की दिसंबर 2021 में मौत हो गई, जिसके बाद यह सीट खाली हो गई। इस बार, भाजपा ने कुल 18 महिलाओं को टिकट दिया था, जबकि कांग्रेस ने 14 ऐसे उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। भाजपा की इन सफल महिला उम्मीदवारों में से कुछ ने अपनी जीत का श्रेय पार्टी कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा प्रदेश भाजपा प्रमुख सी. आर. पाटिल के नेतृत्व को दिया। सूरत शहर के लिंबायत से जीती भाजपा की संगीता पाटिल ने अपनी जीत का श्रेय ‘पन्ना समिति’ को दिया। उन्होंने संवाददाताओं से कहा,पन्ना समिति के ‘ब्रह्मास्त्र’ के कारण पार्टी कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर चर्चा की। उसकी बदौलत पूरे राज्य में भाजपा को यह सकारात्मक परिणाम मिला। प्रधानमंत्री मोदी की मेहनत, सी.आर. पाटिल का संगठनात्मक कौशल और मुख्यमंत्री भूपेंद्र के विकास कार्य का भी फायदा मिला। भाजपा उम्मीदवार के रूप में राजकोट ग्रामीण सीट से जीतीं भानुबेन बाबरिया ने शानदार जीत के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत की सराहना की। उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री मोदी जिस तरह से देश में काम कर रहे हैं उससे लोग खुश हैं। वे शांति और समृद्धि का अनुभव कर रहे हैं। लोग (केंद्रीय गृह मंत्री) अमित शाह, सी.आर. पाटिल और मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के नेतृत्व से खुश हैं। गुजरात विधानसभा के लिये दो चरणों में एक और पांच दिसंबर को हुए चुनावों में, भाजपा ने 156 सीटें जीतीं, कांग्रेस के खाते में 17 और आम आदमी पार्टी (आप) के खाते में पांच सीटें गईं। चुनावों में जीतने वाली महिला उम्मीदवारों में से चार अनुसूचित जाति और दो अनुसूचित जनजाति समुदाय से हैं। आम आदमी पार्टी ने पांच और बहुजन समाज पार्टी ने 12 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया था हालांकि उनमें से कोई भी चुनाव नहीं जीत सका।

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Loksabha News: लोकसभा में पेश आज पेश किए गए ये तीन विधेयक

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Lok Sabha News : The youth of Northeast who used to hold guns during Congress rule, now have commuters in their hands: Minister
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calendar29 Nov 2025 12:43 PM
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Loksabha News: भारतीय जनता पार्टी के सांसद रवि किशन ने जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण करने के प्रावधान वाला एक गैर-सरकारी विधेयक शुक्रवार को लोकसभा में पेश किया।

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गोरखपुर से लोकसभा सदस्य ने गैर सरकारी कामकाज के तहत सदन में ‘जनसंख्या नियंत्रण विधेयक, 2019’ पेश किया। इसके अलावा कई अन्य गैर सरकारी विधेयक लोकसभा में पेश किए गए। जनता दल (यूनाइटेड) के आलोक कुमार सुमन ने दवाओं की कीमत निर्धारित करने वाला गैर सरकारी विधेयक पेश किया। द्रमुक की टी सुमथि ने निराश्रित वरिष्ठ नागरिकों और विधवाओं के लिए आवासीय सुविधा के प्रावधान वाला गैर सरकारी विधेयक पेश किया।

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