क्या सरकार चुनाव आयोग को दे सकती है आदेश? जानिए असली ताकत

भारत निर्वाचन आयोग और राज्य चुनाव आयोग में क्या अंतर है?
भारत निर्वाचन आयोग, जिसकी स्थापना 25 जनवरी 1950 को हुई थी, एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है जो देश में राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय चुनावों की देखरेख करती है। संविधान के आर्टिकल 324 के तहत इसे अधिकार दिया गया है कि वह राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा, राज्य विधानसभा आदि के चुनाव कराए और उनके नियम तय करे। इसका नेतृत्व मुख्य चुनाव आयुक्त करते हैं जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। वहीं, राज्य चुनाव आयोग राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में स्थानीय निकाय चुनावों के संचालन के लिए जिम्मेदार होता है। यह भी एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है जिसका काम निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना है। इसके प्रमुख को राज्य के राज्यपाल नियुक्त करते हैं।सरकार का चुनाव आयोगों पर कितना नियंत्रण?
चुनाव आयोगों की स्वतंत्रता को संविधान निर्माताओं ने बहुत अहम माना। डॉ. बीआर अंबेडकर ने चुनाव आयोग को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों जैसा संरक्षण देने की बात कही थी ताकि चुनावी प्रक्रिया में किसी भी तरह का राजनीतिक दबाव न आ सके। इसलिए चुनाव आयोग के फैसलों पर सरकारें सीधे तौर पर आदेश नहीं दे सकतीं। आयोग चुनाव से जुड़े सभी फैसले स्वतंत्र रूप से करता है और चुनावी प्रक्रिया के दौरान सरकारी मशीनरी भी आयोग के नियंत्रण में होती है।अगर राज्य चुनाव आयोग ने सरकार की बात न मानी तो क्या होगा?
1988 के संशोधन के बाद भी यह व्यवस्था बनी हुई है कि चुनाव अधिकारी आयोग के अधीन रहते हैं और सरकारें केवल सुझाव दे सकती हैं, आदेश नहीं। अगर सरकार को लगता है कि आयोग नियमों का उल्लंघन कर रहा है तो वह अदालत का सहारा ले सकती है लेकिन आयोग को सीधे आदेश देना संभव नहीं है।क्या विधानसभा चुनावों में भी होगा बैलेट पेपर का इस्तेमाल?
कर्नाटक में स्थानीय निकाय चुनावों के लिए बैलेट पेपर का इस्तेमाल हो सकता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि विधानसभा चुनावों में भी ईवीएम की जगह बैलेट पेपर आ जाएगा। राज्य चुनाव आयोग अपनी परिस्थितियों के हिसाब से चुनावी उपकरणों का चयन करता है और इस मामले में स्वतंत्र होता है।भारत निर्वाचन आयोग कब देता है निर्देश?
राज्य चुनाव आयोग, भारत निर्वाचन आयोग के निर्देशों के तहत काम करता है। इसलिए जब भी राष्ट्रीय स्तर पर कोई निर्णय लिया जाता है राज्य आयोग उसे लागू करने के लिए बाध्य होता है।यह भी पढ़ें: देशभर में एकसाथ लागू होगा SIR? इस दिन होगी चुनाव आयोग की बड़ी बैठक
इस लेख का उद्देश्य स्पष्ट करना है कि चुनाव आयोगों की स्वतंत्रता संविधान द्वारा सुरक्षित है और सरकारें इन्हें सीधे आदेश नहीं दे सकतीं। कर्नाटक सरकार का बैलेट पेपर पर जोर राजनीतिक बहस का हिस्सा है लेकिन चुनाव आयोगों के कामकाज पर इसका सीधा असर तभी पड़ेगा जब आयोग स्वयं उसे मंजूरी देगा। Ballot Papers for Local Pollsअगली खबर पढ़ें
भारत निर्वाचन आयोग और राज्य चुनाव आयोग में क्या अंतर है?
भारत निर्वाचन आयोग, जिसकी स्थापना 25 जनवरी 1950 को हुई थी, एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है जो देश में राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय चुनावों की देखरेख करती है। संविधान के आर्टिकल 324 के तहत इसे अधिकार दिया गया है कि वह राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा, राज्य विधानसभा आदि के चुनाव कराए और उनके नियम तय करे। इसका नेतृत्व मुख्य चुनाव आयुक्त करते हैं जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। वहीं, राज्य चुनाव आयोग राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में स्थानीय निकाय चुनावों के संचालन के लिए जिम्मेदार होता है। यह भी एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है जिसका काम निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना है। इसके प्रमुख को राज्य के राज्यपाल नियुक्त करते हैं।सरकार का चुनाव आयोगों पर कितना नियंत्रण?
चुनाव आयोगों की स्वतंत्रता को संविधान निर्माताओं ने बहुत अहम माना। डॉ. बीआर अंबेडकर ने चुनाव आयोग को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों जैसा संरक्षण देने की बात कही थी ताकि चुनावी प्रक्रिया में किसी भी तरह का राजनीतिक दबाव न आ सके। इसलिए चुनाव आयोग के फैसलों पर सरकारें सीधे तौर पर आदेश नहीं दे सकतीं। आयोग चुनाव से जुड़े सभी फैसले स्वतंत्र रूप से करता है और चुनावी प्रक्रिया के दौरान सरकारी मशीनरी भी आयोग के नियंत्रण में होती है।अगर राज्य चुनाव आयोग ने सरकार की बात न मानी तो क्या होगा?
1988 के संशोधन के बाद भी यह व्यवस्था बनी हुई है कि चुनाव अधिकारी आयोग के अधीन रहते हैं और सरकारें केवल सुझाव दे सकती हैं, आदेश नहीं। अगर सरकार को लगता है कि आयोग नियमों का उल्लंघन कर रहा है तो वह अदालत का सहारा ले सकती है लेकिन आयोग को सीधे आदेश देना संभव नहीं है।क्या विधानसभा चुनावों में भी होगा बैलेट पेपर का इस्तेमाल?
कर्नाटक में स्थानीय निकाय चुनावों के लिए बैलेट पेपर का इस्तेमाल हो सकता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि विधानसभा चुनावों में भी ईवीएम की जगह बैलेट पेपर आ जाएगा। राज्य चुनाव आयोग अपनी परिस्थितियों के हिसाब से चुनावी उपकरणों का चयन करता है और इस मामले में स्वतंत्र होता है।भारत निर्वाचन आयोग कब देता है निर्देश?
राज्य चुनाव आयोग, भारत निर्वाचन आयोग के निर्देशों के तहत काम करता है। इसलिए जब भी राष्ट्रीय स्तर पर कोई निर्णय लिया जाता है राज्य आयोग उसे लागू करने के लिए बाध्य होता है।यह भी पढ़ें: देशभर में एकसाथ लागू होगा SIR? इस दिन होगी चुनाव आयोग की बड़ी बैठक
इस लेख का उद्देश्य स्पष्ट करना है कि चुनाव आयोगों की स्वतंत्रता संविधान द्वारा सुरक्षित है और सरकारें इन्हें सीधे आदेश नहीं दे सकतीं। कर्नाटक सरकार का बैलेट पेपर पर जोर राजनीतिक बहस का हिस्सा है लेकिन चुनाव आयोगों के कामकाज पर इसका सीधा असर तभी पड़ेगा जब आयोग स्वयं उसे मंजूरी देगा। Ballot Papers for Local Pollsसंबंधित खबरें
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