इस बड़ी वजह से भारत में हर दूसरे दिन होती है मौत





देश की बेटियां आज हर क्षेत्र में अपनी पहचान बना रही हैं। गाँव की पंचायत से लेकर संसद तक, खेल के मैदान से लेकर कॉर्पोरेट दफ्तर तक आज भारतीय महिलाएँ हर जगह अपनी ताकत दिखा रही हैं। शिक्षा हो, राजनीति हो ,या नौकरी पुरुषों का एकाधिकार अब धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। भारत में महिलाओं को मिले कई विशेष अधिकार दूसरों देशों से भिन्न हैं, और यह फर्क सिर्फ कानूनों में ही नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक संदर्भ में भी दिखता है। Women’s Equality Day के मौके पर जानिए, भारत में महिलाओं के अधिकार किस तरह उन्हें गाँव से लेकर शहर तक सशक्त बना रहे हैं। Women’s Equality Day 2025
भारत का संविधान महिलाओं को समान अवसर और अधिकार देता है। अनुच्छेद 14, 15 और 16 के तहत लिंग के आधार पर भेदभाव पर रोक और नौकरी में समान अवसर सुनिश्चित किए गए हैं। खासतौर पर अनुच्छेद 15(3) सरकार को महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान करने की अनुमति देता है। 73वें और 74वें संवैधानिक संशोधनों के बाद पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं के लिए सीटों का अनिवार्य आरक्षण लागू हुआ। यह कदम न केवल भारत में, बल्कि विश्व के बड़े लोकतंत्रों में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को बढ़ाने के सबसे बड़े प्रयासों में गिना जाता है। इससे ग्राम स्तर से लेकर शहरी स्थानीय शासन तक महिलाओं की सक्रिय उपस्थिति सुनिश्चित हुई है।
हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 ने बेटियों को पारंपरिक संपत्ति अधिकार दिए गए है। इससे पारिवारिक संपत्ति में उनकी हिस्सेदारी सुनिश्चित हुई और लंबे समय से चली आ रही सामाजिक परंपराओं को चुनौती मिली। वैश्विक स्तर पर समान उत्तराधिकार की नीतियां मौजूद हैं, लेकिन भारत में इसका सामाजिक और कानूनी प्रभाव विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
Maternity Benefit (Amendment) Act, 2017: औपचारिक क्षेत्र में कामकाजी महिलाओं को 26 सप्ताह तक मातृत्व अवकाश का अधिकार।
POSH Act, 2013: कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोकने के लिए नियोक्ताओं को आंतरिक शिकायत समिति स्थापित करने का दायित्व।
Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005 : घरेलू हिंसा के मामलों में व्यापक राहत, रोकथाम और आश्रय की व्यवस्था।
Criminal Law (Amendment) Act, 2013 : निर्भया कांड के बाद यौन अपराधों की सजा और परिभाषा में कड़ाई।
PCPNDT Act, 1994 : भ्रूण लिंग चयन को रोकने के लिए सख्त नियम, विशेष रूप से भारत में बेटी की संख्या बनाए रखने के लिए।
स्थानीय शासन में अनिवार्य महिला आरक्षण, हिंदू उत्तराधिकार में बदलाव और PCPNDT जैसे कानूनों की सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि भारत में इन्हें वैश्विक संदर्भ में विशिष्ट बनाती है। कानूनों के बावजूद घरेलू हिंसा, दहेज, रोजगार में असमानता और स्त्री हिंसा अभी भी बड़ी चुनौती हैं। संसद में 33% महिला आरक्षण अब तक लागू नहीं हो पाया है। शिक्षा, कार्यस्थल और सार्वजनिक जीवन में वास्तविक समानता अभी दूर की कौड़ी है। Women’s Equality Day 2025
देश की बेटियां आज हर क्षेत्र में अपनी पहचान बना रही हैं। गाँव की पंचायत से लेकर संसद तक, खेल के मैदान से लेकर कॉर्पोरेट दफ्तर तक आज भारतीय महिलाएँ हर जगह अपनी ताकत दिखा रही हैं। शिक्षा हो, राजनीति हो ,या नौकरी पुरुषों का एकाधिकार अब धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। भारत में महिलाओं को मिले कई विशेष अधिकार दूसरों देशों से भिन्न हैं, और यह फर्क सिर्फ कानूनों में ही नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक संदर्भ में भी दिखता है। Women’s Equality Day के मौके पर जानिए, भारत में महिलाओं के अधिकार किस तरह उन्हें गाँव से लेकर शहर तक सशक्त बना रहे हैं। Women’s Equality Day 2025
भारत का संविधान महिलाओं को समान अवसर और अधिकार देता है। अनुच्छेद 14, 15 और 16 के तहत लिंग के आधार पर भेदभाव पर रोक और नौकरी में समान अवसर सुनिश्चित किए गए हैं। खासतौर पर अनुच्छेद 15(3) सरकार को महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान करने की अनुमति देता है। 73वें और 74वें संवैधानिक संशोधनों के बाद पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं के लिए सीटों का अनिवार्य आरक्षण लागू हुआ। यह कदम न केवल भारत में, बल्कि विश्व के बड़े लोकतंत्रों में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को बढ़ाने के सबसे बड़े प्रयासों में गिना जाता है। इससे ग्राम स्तर से लेकर शहरी स्थानीय शासन तक महिलाओं की सक्रिय उपस्थिति सुनिश्चित हुई है।
हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 ने बेटियों को पारंपरिक संपत्ति अधिकार दिए गए है। इससे पारिवारिक संपत्ति में उनकी हिस्सेदारी सुनिश्चित हुई और लंबे समय से चली आ रही सामाजिक परंपराओं को चुनौती मिली। वैश्विक स्तर पर समान उत्तराधिकार की नीतियां मौजूद हैं, लेकिन भारत में इसका सामाजिक और कानूनी प्रभाव विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
Maternity Benefit (Amendment) Act, 2017: औपचारिक क्षेत्र में कामकाजी महिलाओं को 26 सप्ताह तक मातृत्व अवकाश का अधिकार।
POSH Act, 2013: कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोकने के लिए नियोक्ताओं को आंतरिक शिकायत समिति स्थापित करने का दायित्व।
Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005 : घरेलू हिंसा के मामलों में व्यापक राहत, रोकथाम और आश्रय की व्यवस्था।
Criminal Law (Amendment) Act, 2013 : निर्भया कांड के बाद यौन अपराधों की सजा और परिभाषा में कड़ाई।
PCPNDT Act, 1994 : भ्रूण लिंग चयन को रोकने के लिए सख्त नियम, विशेष रूप से भारत में बेटी की संख्या बनाए रखने के लिए।
स्थानीय शासन में अनिवार्य महिला आरक्षण, हिंदू उत्तराधिकार में बदलाव और PCPNDT जैसे कानूनों की सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि भारत में इन्हें वैश्विक संदर्भ में विशिष्ट बनाती है। कानूनों के बावजूद घरेलू हिंसा, दहेज, रोजगार में असमानता और स्त्री हिंसा अभी भी बड़ी चुनौती हैं। संसद में 33% महिला आरक्षण अब तक लागू नहीं हो पाया है। शिक्षा, कार्यस्थल और सार्वजनिक जीवन में वास्तविक समानता अभी दूर की कौड़ी है। Women’s Equality Day 2025