भारत सरकार का बहुत बड़ा फैसला, 58 साल बाद हटा RSS से प्रतिबंध

वर्ष-1966 में लगा था RSS पर प्रतिबंध
आपको बता दें कि भारत सरकार के कार्मिक मंत्रालय ने एक बहुत बड़ा आदेश जारी किया है। भारत सरकार के इस आदेश के तहत केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यक्रमों-गतिविधियों में भाग लेने पर लगा 58 साल पुराना प्रतिबंध हटा दिया है। 7 नवंबर, 1966 को गोवध रोकने के लिए संसद के सामने प्रदर्शन के बाद सरकार ने 30 नवंबर, 1966 को यह प्रतिबंध लगाया था। इस दौरान पुलिस फायरिंग में कई कार्यकर्ता मारे गए थे। कार्मिक मंत्रालय ने यह आदेश 9 जुलाई को जारी किया। कांग्रेस ने इस फैसले की आलोचना की है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पर लिखा कि 4 जून के बाद, पीएम मोदी और संघ के संबंधों में गिरावट देखी जा रही है। मुझे लगता है कि अब नौकरशाही भी दबाव में आ सकती है। भाजपा के आईटी विभाग के प्रमुख अमित मालवीय ने लिखा, मोदी सरकार ने असंवैधानिक आदेश हटा दिया है।कांग्रेस ने जताया विरोध
उधर, केंद्र सरकार के इस फैसले का कांग्रेस ने पुरजोर विरोध किया है. कांग्रेस ने रविवार को केंद्र सरकार की ओर से जारी इस फैसले की तीखी आलोचना की है, जिसमें आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने को लेकर 6 दशक पुरानी पाबंदी को हटा दिया गया है। कांग्रेस महासचिव (संचार) जयराम रमेश ने पर एक पोस्ट में लिखा कि, 'फरवरी 1948 में गांधीजी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने RSS पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसके बाद अच्छे आचरण के आश्वासन पर प्रतिबंध को हटाया गया. इसके बाद भी RSS ने नागपुर में कभी तिरंगा नहीं फहराया. 1966 में, RSS की गतिविधियों में भाग लेने वाले सरकारी कर्मचारियों पर प्रतिबंध लगाया गया था - और यह सही निर्णय भी था। यह 1966 में बैन लगाने के लिए जारी किया गया आधिकारिक आदेश है। वहीं, कांग्रेस के एक अन्य नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन खेड़ा ने भी केंद्र पर हमला बोला. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर निराशा जाहिर करते हुए कहा, "58 साल पहले, केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने को लेकर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन अब मोदी सरकार ने उस आदेश को पलट दिया है। बसपा प्रमुख मायावती ने सरकारी कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाओं में जाने पर लगे प्रतिबंध को हटाने का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि यह निर्णय देशहित से परे और राजनीति से प्रेरित है। यह निर्णय संघ के लोगों का तुष्टिकरण करने वाला है। जिसका मकसद भाजपा सरकार व संघ के बीच लोकसभा चुनाव के बाद बनी दूरी को कम करना है। उन्होंने कहा कि यह निर्णय तुरंत वापस लिया जाना चाहिए। बसपा प्रमुख मायावती ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर कहा कि सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस की शाखाओं में जाने पर 58 वर्ष से जारी प्रतिबंध को हटाने का केन्द्र का निर्णय देशहित से परे, राजनीति से प्रेरित संघ तुष्टीकरण का निर्णय, ताकि सरकारी नीतियों व इनके अहंकारी रवैयों आदि को लेकर लोकसभा चुनाव के बाद दोनों के बीच तीव्र हुई तल्खी दूर हो। सरकारी कर्मचारियों को संविधान व कानून के दायरे में रहकर निष्पक्षता के साथ जनहित व जनकल्याण में कार्य करना जरूरी होता है जबकि कई बार प्रतिबन्धित रहे आरएसएस की गतिविधियाँ काफी राजनीतिक ही नहीं बल्कि पार्टी विशेष के लिए चुनावी भी रही हैं। ऐसे में यह निर्णय अनुचित, तुरन्त वापस हो।मानसून सत्र में NEET पेपर लीक पर हंगामा, शिक्षा मंत्री बोले पेपर लीक के सबूत नहीं
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वर्ष-1966 में लगा था RSS पर प्रतिबंध
आपको बता दें कि भारत सरकार के कार्मिक मंत्रालय ने एक बहुत बड़ा आदेश जारी किया है। भारत सरकार के इस आदेश के तहत केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यक्रमों-गतिविधियों में भाग लेने पर लगा 58 साल पुराना प्रतिबंध हटा दिया है। 7 नवंबर, 1966 को गोवध रोकने के लिए संसद के सामने प्रदर्शन के बाद सरकार ने 30 नवंबर, 1966 को यह प्रतिबंध लगाया था। इस दौरान पुलिस फायरिंग में कई कार्यकर्ता मारे गए थे। कार्मिक मंत्रालय ने यह आदेश 9 जुलाई को जारी किया। कांग्रेस ने इस फैसले की आलोचना की है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पर लिखा कि 4 जून के बाद, पीएम मोदी और संघ के संबंधों में गिरावट देखी जा रही है। मुझे लगता है कि अब नौकरशाही भी दबाव में आ सकती है। भाजपा के आईटी विभाग के प्रमुख अमित मालवीय ने लिखा, मोदी सरकार ने असंवैधानिक आदेश हटा दिया है।कांग्रेस ने जताया विरोध
उधर, केंद्र सरकार के इस फैसले का कांग्रेस ने पुरजोर विरोध किया है. कांग्रेस ने रविवार को केंद्र सरकार की ओर से जारी इस फैसले की तीखी आलोचना की है, जिसमें आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने को लेकर 6 दशक पुरानी पाबंदी को हटा दिया गया है। कांग्रेस महासचिव (संचार) जयराम रमेश ने पर एक पोस्ट में लिखा कि, 'फरवरी 1948 में गांधीजी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने RSS पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसके बाद अच्छे आचरण के आश्वासन पर प्रतिबंध को हटाया गया. इसके बाद भी RSS ने नागपुर में कभी तिरंगा नहीं फहराया. 1966 में, RSS की गतिविधियों में भाग लेने वाले सरकारी कर्मचारियों पर प्रतिबंध लगाया गया था - और यह सही निर्णय भी था। यह 1966 में बैन लगाने के लिए जारी किया गया आधिकारिक आदेश है। वहीं, कांग्रेस के एक अन्य नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन खेड़ा ने भी केंद्र पर हमला बोला. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर निराशा जाहिर करते हुए कहा, "58 साल पहले, केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने को लेकर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन अब मोदी सरकार ने उस आदेश को पलट दिया है। बसपा प्रमुख मायावती ने सरकारी कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाओं में जाने पर लगे प्रतिबंध को हटाने का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि यह निर्णय देशहित से परे और राजनीति से प्रेरित है। यह निर्णय संघ के लोगों का तुष्टिकरण करने वाला है। जिसका मकसद भाजपा सरकार व संघ के बीच लोकसभा चुनाव के बाद बनी दूरी को कम करना है। उन्होंने कहा कि यह निर्णय तुरंत वापस लिया जाना चाहिए। बसपा प्रमुख मायावती ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर कहा कि सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस की शाखाओं में जाने पर 58 वर्ष से जारी प्रतिबंध को हटाने का केन्द्र का निर्णय देशहित से परे, राजनीति से प्रेरित संघ तुष्टीकरण का निर्णय, ताकि सरकारी नीतियों व इनके अहंकारी रवैयों आदि को लेकर लोकसभा चुनाव के बाद दोनों के बीच तीव्र हुई तल्खी दूर हो। सरकारी कर्मचारियों को संविधान व कानून के दायरे में रहकर निष्पक्षता के साथ जनहित व जनकल्याण में कार्य करना जरूरी होता है जबकि कई बार प्रतिबन्धित रहे आरएसएस की गतिविधियाँ काफी राजनीतिक ही नहीं बल्कि पार्टी विशेष के लिए चुनावी भी रही हैं। ऐसे में यह निर्णय अनुचित, तुरन्त वापस हो।मानसून सत्र में NEET पेपर लीक पर हंगामा, शिक्षा मंत्री बोले पेपर लीक के सबूत नहीं
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