UP Elections 2022 इन बड़े और बाहुबली नेताओं को दल बदलने पर भी नहीं मिला टिकट

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UP Elections 2022
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calendar30 Nov 2025 04:41 PM
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UP Elections 2022 : उत्तर प्रदेश में विधानसभा समर शुरु हो गया है। इससे पहले दल बदलने का खेल भी शुरु हो चुका था। समाजवादी पार्टी की ओर से प्रत्याशियों की सूची जारी होने से पहले कई बड़े और बाहुबली नेताओं ने अपनी अपनी पार्टी छोड़कर सपा का दामन थामा था। उन्हीं में से कांग्रेस में बड़े ओहदे पर रहे सहारनपुर के इमरान मसूद और बुलंदशहर के बाहुबली नेता भगवान शर्मा उर्फ गुड्डू पंडित भी शामिल हैं।

पश्चिमी यूपी में होने वाले पहले चरण के मतदान के लिए दलों ने अपने उम्मीदवारों की जो सूची जारी की है उसमे कई बड़े चेहरों के नाम इस सूची से गायब है। इस लिस्ट में इमरान मसूद का नाम भी शामिल हैं जिन्हें सहारनपुर का बड़ा नेता माना जाता है। कांग्रेस छोड़ सपा में शामिल होने वाले इमरान मसूद को सपा ने टिकट नहीं दिया है। इससे पहले इमरान कांग्रेस में थे और उन्हें राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का करीबी माना जाता था। अगला नाम हाजी याकूब कुरैशी का है, जोकि मेरठ में बड़ा चेहरा हैं। वह मुलायम सरकार में मंत्री भी रह चुके है। उनके बेटे इमरान कुरैशी को बसपा ने टिकट दिया था लेकिन बाद में इसे वापस ले लिया गया। सपा में हाजी याकूब कुरैशी की एंट्री शाहिद मंजूर और अतुल प्रधान की वजह से मुश्किल है और राष्ट्रीय लोकदल पहले ही अपने उम्मीदवार घोषित कर चुकी है।

UP Election 2022 : आखिर क्यों नहीं हो सका सपा और भीम आर्मी में गठबंधन? ये है सच्चाई

इसके अलावा मेरठ के बड़े मुस्लिम नेता हाजी शाहिद अखलाक का नाम भी शामिल है। चार दशक से उनका परिवार राजनीति में हैं। शाहिद अखलाक सपा और बसपा दोनों में रह चुके हैं। माना जा रहा था कि वह सपा छोड़ बसपा में जा सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं हुआ और उन्हें सपा ने इस बार टिकट नहीं दिया हैा।

बुलंदशहर के बाहुबली नेता भगवान शर्मा उर्फ गुड्डू पंडित को सपा ने टिकट नहीं दिया है। शामली से मुस्लिम नेता और पूर्व विधायक अब्दुल राव वारिस को भी सपा ने इस बार टिकट नहीं दिया है। इस बार यह सीट राष्ट्रीय लोकदल के खाते में चली गई है। वेस्ट यूपी के अहम जनपद मुजफ्फरनगर में कादिर राणा को बड़ा चेहरा माना जाता है। वह पूर्व सांसद रह चुके हैं और तकरीबन तीन दशक से सक्रिय राजनीतिक में हैं। सपा से पहले एमएलसी, फिर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक दल से विधायक और फिर बसपा से सांसद रहने के बाद बिजनेस के क्षेत्र में कादिर राणा ने कदम रखा। लेकिन बसपा छोड़ सपा में शामिल होने वाले कादिर राणा के लिए यह घाटे का सौदा साबित हुआ है। तीस साल में पहली बार वह पहली बार चुनावी मैदान में नहीं हैं।

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UP Election 2022 : आखिर क्यों नहीं हो सका सपा और भीम आर्मी में गठबंधन? ये है सच्चाई

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UP Election 2022
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 03:17 AM
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UP Election 2022 : वेस्ट यूपी समेत पूरे भारत में एक नया राजनीतिक दल तेजी से उभर रहा है, उसका नाम है भीम आर्मी, आजाद समाज पार्टी। आजाद समाज पार्टी वही है, जिसके संरक्षक और अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद है। चंद्रशेखर को रावण के नाम से भी संबोधित किया जाता है। कुछ समय पहले तक यह चर्चा जोरों पर थी कि वेस्ट यूपी में चंद्रशेखर आजाद और अखिलेश यादव मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ेंगे, लेकिन चुनाव की तारीखों की घोषणा होने के बाद दोनों में बात नहीं बन पाई। आखिर चंद्रशेखर और अखिलेश के बीच गठबंधन क्यों नहीं हो सका।

भीम आर्मी और आजाद समाज पार्टी के सुप्रीमो चंद्रशेखर आजाद का उत्तर प्रदेश के दलित युवाओं के बीच काफी क्रेज है। विशेष रुप से उत्तर प्रदेश के सहारनपुर, मेरठ, अलीगढ़, बुलंदशहर, हाथरस, बिजनौर और आगरा जिलों आजाद के लाखों समर्थक हैं। चंद्रशेखर आजाद स्वयं सहारनपुर से हैं जहां 20 प्रतिशत से अधिक दलित वोट हैं। सहारनपुर जिले में सात विधानसभा सीटें हैं जिन पर चंद्रशेखर का सहयोग निर्णायक साबित हो सकता है। उत्तर प्रदेश में करीब बीस प्रतिशत दलित वोट हैं। ये वोटबैंक मायावती के साथ रहा है। पिछले कुछ सालों में चंद्रशेखर ने मायावती के इस दलित वोटबैंक में सेंध लगा ली है।

योगी, अखिलेश और प्रियंका गांधी की इस राजनीती से यूपी का एक फायदा तो तय है!

ऐसे में अगर समाजवादी पार्टी का गठबंधन चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी के साथ होता तो यूपी में बड़े पैमाने पर दलित वोट सपा के साथ आ सकता था। जाट-दलितों का एक गठजोड़ होने से सपा को चुनाव में काफी फायदा होता।

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चंद्रशेखर आजाद ने पिछले दिनों एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा था कि एक महीने से मेरी लगातार अखिलेश से बात हो रही है। अखिलेश तय कर चुके हैं वे दलितों से गठबंधन नहीं करेंगे। अखिलेश ने मुझे अपमानित किया है। मुझे लगता है कि वे दलितों की लीडरशिप खड़े नहीं होने देना चाहते। मैंने अखिलेश पर जिम्मेदारी छोड़ी थी कि वे गठबंधन में शामिल करें या नहीं। लेकिन उन्होंने आज तक जवाब नहीं दिया।

वो प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर साथ नहीं आ रहे थे। जिस तरह से बीजेपी दलितों के यहां खाना खाकर खेल कर रही हैं। वैसे ही अखिलेश यादव कर रहे हैं। हम चाहते थे कि अखिलेश यादव हमारे मुद्दे रखें लेकिन वह इससे बच रहे थे। इसलिए हमने तय किया है कि हम गठबंधन में नहीं जा रहे हैं।

चंद्रशेखर के आरोपों का सपा मुखिया अखिलेश यादव ने खुद जवाब दिया। कहा था कि उन्होंने चंद्रशेखर को दो सीटें देने की बात कही थी। उसमें एक सीट लोकदल के पास थी। इसके लिए उन्होंने नेताओं से बात की थी। अखिलेश यादव ने कहा कि रालोद नेताओं ने बात मान ली और सहारनपुर की रामपुर मनिहारान सुरक्षित सीट छोड़ दी। इसके बाद ये सीट मैंने चंद्रशेखर को दे दी। साथ ही साथ गाजियाबाद की सीट घोषित नहीं थी, उसे भी चंद्रशेखर को दे दिया। बाद में चंद्रशेखर ने कहा कि मैं चुनाव नहीं लड़ सकता है। संगठन के लोग नाराज हैं। वह इतनी कम सीटों पर नहीं मान रहे हैं। इसके बाद मैंने कहा कि हमारे पास इतनी ही सीटें हैं। इसके बाद कोई सीट नहीं है। फिर चंद्रशेखर वापस चले गए।

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भगोड़े विधायक नहीं, योगी आदित्यनाथ की सबसे बड़ी मुसीबत हैं ये 5 चीजें!

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Yogi Adityanath
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calendar17 Jan 2022 06:49 AM
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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) से ठीक पहले यूपी सरकार के तीन मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान और धर्म सिंह सैनी सहित 14 विधायकों के बीजेपी (BJP) छोड़ने के बाद चुनावी माहौल वर्तमान सरकार के खिलाफ जाता हुआ दिख रहा है। खुद को राजनीतिक पंडित मानने वाले ऐसा दावा कर रहे हैं।

तो क्या यह मान लेना चाहिए कि 2017 में भारतीय जनता पार्टी को मिली बंपर जीत की वजह स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान या धर्म सिंह सैनी जैसे नेता थे? क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) का प्रभाव या अमित शाह (Amit Shah) के चुनावी प्रबंधन का उसमें कोई योगदान नहीं था?

हालांकि, सवाल यह भी उठता है कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और अमित शाह (Amit Shah) को अपनी जीत पर इतना ही भरोसा था तो, इन नेताओं को पार्टी में लेने की जरूरत ही क्यों पड़ी? स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) पांच बार विधायक का चुनाव जीत चुके हैं और छह बार पार्टी बदल चुके हैं। यह देख कर तो कोई गैर-राजनीतिक व्यक्ति भी बता देगा कि अगले चुनाव से पहले वह कहां होंगे।

बीजेपी के अन्य मुख्यमंत्रियों से क्यों अलग हैं योगी चुनाव से ठीक पहले इन नेताओं के पार्टी बदलने से नतीजों पर क्या असर होगा यह तो 10 मार्च को ही पता चलेगा। लेकिन, 2017 के चुनाव परिणाम तो हमारे सामने हैं जो बताते हैं कि आज भले ही योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को बड़ा नेता माना जा रहा है लेकिन उस वक्त किसी को नहीं पता था कि यूपी का सीएम कौन होगा। जाहिर है उस चुनाव में बीजेपी की प्रचंड जीत के पीछे मोदी लहर सबसे बड़ी वजह थी।

इसमें कोई दो राय नहीं कि 2017 के परिणामों के बाद जब योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को यूपी का सीएम बनाया गया तो, बीजेपी को वोट देने वाले भी चौंक गए थे। पिछले पांच सालों में योगी ने एक बात साबित कर दी कि वह किसी की दया पर बनाए गए कठपुतली सीएम नहीं हैं।

उत्तराखंड, गुजरात, हरियाणा या मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में बीजेपी के मुख्यमंत्रियों की तुलना में योगी आदित्यनाथ ने अपनी अलग पहचान बनाई है। पिछले पांच साल में यूपी में गुंडों-माफियाओं के खिलाफ सख्त कार्यवाही, कोविड की पहली लहर के दौरान प्रशासन की सतर्कता के अलावा, योगी ने एक सख्त प्रशासक के तौर पर अपनी छवि बनाई है।

बीजेपी ने तैयार किया एक नया कॉम्बिनेशन इसके अलावा, नरेंद्र मोदी पिछले साढ़े सात साल से बनारस के सांसद और देश के प्रधानमंत्री हैं। इस दौरान वह 30 से ज्यादा बार बनारस का दौरा कर चुके हैं और बनारस में चल रही हर विकास परियोजना पर सीधे पीएमओ की नजर होती है।

साथ ही, उज्ज्वला योजना (Pradhan Mantri Ujjwala Yojana), इज्जत घर (ओडीएफ), प्रधानमंत्री आवास योजना (Pradhan Mantri Ujjwala Yojana), प्रधानमंत्री जन धन योजना (Pradhan Mantri Jan Dhan Yojana), पीएम किसान सम्मान निधि (Pradhan Mantri Jan Dhan Yojana), गरीबों को मुफ्त राशन जैसी योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू करने में इस बात खास ध्यान रखा गया है कि यह जरूरतमंद तक पहुंचे।

प्रधानमंत्री मोदी का यूपी से विशेष लगाव, केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं और योगी आदित्यनाथ की सख्त प्रशासक की छवि के साथ, बीजेपी ने एक नया कॉम्बिनेशन तैयार किया है। यह कॉम्बिनेशन, कई मायनों में अनोखा है।

इन चीजों में मोदी से एक कदम आगे हैं योगी मोदी खुद को फकीर कहते हैं। उन्होंने भले ही शादी की है लेकिन, परिवार से कोई लेना-देना नहीं है। जबकि, योगी आदित्यनाथ ने युवावस्था में ही घर-बार छोड़ दिया था। नरेंद्र मोदी अपनी धार्मिक आस्था का खुलकर सार्वजनिक प्रदर्शन करते हैं लेकिन, योगी आदित्यनाथ को इसकी भी जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि वह गेरुआ वस्त्र पहनते हैं और गोरखनाथ मंदिर के महंत हैं।

यानी, सार्वजनिक जीवन में त्याग और धार्मिक आस्था के मामले में योगी और मोदी की जोड़ी एक परफेक्ट कॉम्बिनेशन है। यह चुनाव इस बात की भी परीक्षा है कि मोदी की तुलना में योगी की छवि बीजेपी के कट्टर समर्थकों सहित अन्य वोटरों को आकर्षित करने में कितना कारगर साबित होती है।

योगी से अलग है मोदी की राजनीति का तरीका मोदी के राजनीतिक जीवन में अमित शाह हमेशा परछाई की तरह मौजूद रहे हैं। योगी आदित्यनाथ के पास इस तरह का कोई सपोर्ट सिस्टम नहीं है। नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर अपने विकास कार्याों को राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित करने के लिए योजनाबद्ध ढंग से काम किया था जिसका आगे चलकर उन्हें काफी लाभ हुआ।

मोदी युवाओं को आकर्षित करने में भी माहिर हैं। वह अपने पहनावे और बॉडी लैंग्वेज के प्रति बेहद सजग रहते हैं और लोगों के साथ सेल्फी खिंचवाने तक से परहेज नहीं करते। उन्हें पता है कि यह चीजें युवाओं को पसंद आती हैं। इस मामले में योगी आदित्यनाथ, मोदी से पिछड़ते नजर आते हैं।

विपक्ष ने किसान आंदोलन से नहीं लिया यह सबक इसके अलावा दूसरी लहर के दौरान यूपी में कोविड मिसमैनेजमेंट और बढ़ती बेरोजगारी ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें योगी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। हालांकि, इसमें कोई दो राय नहीं कि कोविड की दूसरी लहर के दौरान बंगाल से लेकर महाराष्ट्र और केरल से लेकर दिल्ली तक लगभग सभी राज्य सरकारें बुरी तरह फेल हुईं।

यूपी में बेरोजगारी, महंगाई, पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतें, पुलिस कस्टडी में मौतें और यूपी पुलिस की विवादित कार्यशैली ऐसे मुद्दे रहे हैं जिन पर योगी सरकार को आसानी से घेरा जा सकता था। इन मुद्दों पर कांग्रेस (Congress), बीएसपी (BSP) या समाजवादी पार्टी (SP) में से कोई भी पार्टी सड़क पर आंदोलन करती नजर नहीं आई। जबकि, इस दौरान कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठनों ने आंदोलन किया और सरकार को झुकने पर मजबूर भी किया। हालांकि, यूपी में विपक्षी नेता इस बात को समझ नहीं पाये।

अखिलेश और मायावती से आगे निकल गईं प्रियंका सड़क पर आंदोलन करने के मामले में अखिलेश यादव या मायावती की तरह इवेंट पॉलिटिक्स या ट्वीट करने के बजाय, प्रियंका गांधी ज्यादा सक्रीय नजर आईं। यही वजह है कि कई सर्वे यूपी में कांग्रेस के वोट प्रतिश में पांच से दस प्रतिशत तक के उछाल की बात कह रहे हैं। यूपी में महिलाओं को 40% टिकट देने के वादे और 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं' जैसे नारे देकर प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) ने यूपी की राजनीति में कुछ नया करने का साहस भी दिखाया है।

फिलहाल, मीडिया के माध्यम से यह आम धारणा बन रही है कि इस बार यूपी में बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच दो ध्रुवीय मुकाबला होने जा रहा है। इसमें कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी, एआईएमआईएम (AIMIM) और आम आदमी पार्टी (AAP) को सिरे से खारिज किया जा रहा है।

यूपी के मतदाताओं के सामने मोदी-योगी के डबल इंजन की सरकार, अखिलेश का छोटे-छोटे दलों के साथ गठबंधन, प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) का महिला कार्ड, मायावती (Mayawati) का दलित कार्ड, एमआईएम का मुस्लिम कार्ड और 'आप' का मुफ्त बिजली का विकल्प मौजूद है। मतदाता, केवल चुनाव नजदीक आने पर सक्रीय होने वाले नेताओं से प्रभावित होगा या जाति-धर्म के ध्रुवीकरण पर मुहर लगाएगा या मुद्दा कुछ और होगा? इन सवालों के जवाब तो 10 मार्च को ही मिलेंगे।

- संजीव श्रीवास्तव