Monday, 16 June 2025

पर्यावरण संरक्षण के प्रति गंभीर नहीं हैं भारतवासी

Environment :  क्या आपको पता है कि हम भारतीय पर्यावरण संरक्षण (Environmental Protection) के प्रति कितना सचेत है। उत्तर है…

पर्यावरण संरक्षण के प्रति गंभीर नहीं हैं भारतवासी

Environment :  क्या आपको पता है कि हम भारतीय पर्यावरण संरक्षण (Environmental Protection) के प्रति कितना सचेत है। उत्तर है ना के बराबर। अगर हमारे देश में पर्यावरण संरक्षण (Environmental Protection)  को लेकर कानून सख्त न होता तो हम भारतवासी कराह रहे होते। प्रदूषण के कारण होने वाली सांस की बीमारियों से ग्रस्त होकर सारा देश खांस रहा होता। यह कानून ही है जिसके डर से वाहन चालक प्रदूषण प्रमाणपत्र  (Pollution Certificate) बनवा रहे हैं। जेल जाने के डर से पेड़ काटे नहीं जा रहे हैं। कानून नहीं बनता तो नदियों में औद्योगिक कचरे, विषाक्त जल व रसायनिक द्रव्य प्रवाहित किए जा रहे होते।

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हांलाकि चोरी छिपे आज भी नदियां प्रदूषित की जा रही हैं, पेड़ों की कटाई हो रही है। खुल्लेआम पराली जलाए जा रहे हैं। हम पौलिथीन की थैलियों में दुकानदार से सामान लेने में हिचकते नहीं हैं। हमें धन्यवाद देना चाहिए वैसे स्वंयसेवियों और सामाजिक संगठनों को जिनके आंदोलनों व कार्यों के कारण सरकार सक्रिय रही है। पर्यावरण की अनदेखी के कारण ही वैश्विक तापमान में वृद्धि हुई है जिसके परिणाम दुनिया भर में महसूस किए जा रहे हैं। हालांकि, कुछ देश दूसरों की तुलना में अधिक पीडि़त हैं। 2021 की विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार 100 सबसे प्रदूषित शहरों में से 63 शहर भारत में हैं, जिसमें नई दिल्ली को दुनिया में सबसे खराब वायु गुणवत्ता वाली राजधानी (Capital) बताया गया है। शहरों में राजस्थान का भिवाड़ी सबसे प्रदूषित शहर है उसके बाद एनसीआर (NCR) के नगरों का नंबर आता है।

भारतीय संविधान (Indian Constitution) के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने के अधिकार की गारंटी दी गई है। वास्तव में इस मौलिक अधिकार को प्रभावी बनाने के लिए 1986 का अधिनियम बनाया गया है। 1977 में सभी नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों को संविधान में शामिल किया गया, जिसके तहत भारत के प्रत्येक नागरिक को अनुच्छेद 51ए के खंड (जी) में दिए गए प्रावधान के अनुसार पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने का दायित्व सौंपा गया। हम अपने देश की राजधानी और कई अन्य शहरों में मानव जीवन पर पर्यावरण के बड़े पैमाने पर विनाश के गंभीर परिणामों का अनुभव कर रहे हैं। हर साल कम से कम दो महीने के लिए, दिल्ली के निवासियों को वायु प्रदूषण के कारण दम घुटता है।

हवा के अलावा देश के जलमार्ग भी अत्यधिक प्रदूषित हो गए हैं, अनुमान है कि सतही जल का लगभग 70 फीसदी हिस्सा पीने योग्य नहीं है। नदियों और झीलों में अवैध रूप से कच्चा मल, गाद और कचरा डालने से भारत का जल गंभीर रूप से प्रदूषित हो गया है। पाइप योजना का लगभग पूर्ण अभाव और अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली स्थिति को और भी बदतर बना रही है। हर दिन चौंका देने वाला 40 मिलियन लीटर अपशिष्ट जल नदियों और अन्य जल निकायों में प्रवेश करता है। इनमें से पर्याप्त बुनियादी ढाँचे की कमी के कारण केवल एक छोटा सा अंश ही पर्याप्त रूप से उपचारित हो पाता है। प्रदूषित जल मनुष्यों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है। लगभग 40 मिलियन भारतीय टाइफाइड, हैजा और हेपेटाइटिस जैसी जलजनित बीमारियों से पीडि़त हैं और हर साल लगभग 400,000 मौतें होती हैं। जल प्रदूषण फसलों को भी नुकसान पहुंचाता है, क्योंकि सिंचाई के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पानी में संक्रामक बैक्टीरिया और बीमारियाँ उन्हें बढऩे से रोकती हैं। अनिवार्य रूप से, मीठे पानी की जैव विविधता भी गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो जाती है।

भारत में प्लास्टिक संकट दुनिया के सबसे खराब संकटों में से एक है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, भारत में औसतन हर दिन 25,000 टन से ज्यादा प्लास्टिक कचरा निकलता है, जो देश में पैदा होने वाले कुल ठोस कचरे का लगभग 6 फीसदी है। भारत राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर नदी के प्लास्टिक उत्सर्जन के उच्च अनुपात वाले शीर्ष 20 देशों में दूसरे स्थान पर है। सिंधु, ब्रह्मपुत्र और गंगा नदियों को प्लास्टिक प्रवाह के राजमार्ग के रूप में जाना जाता है क्योंकि वे देश में अधिकांश प्लास्टिक मलबे को ले जाती हैं और बहाती हैं। 10 अन्य सबसे प्रदूषित नदियों के साथ, वे वैश्विक स्तर पर लगभग 90 फीसदी प्लास्टिक समुद्र में लीक करती हैं।

जल प्रदूषण के कारण भारत की 16 फीसदी मीठे पानी की मछलियाँ, मोलस्क, ड्रैगन फ्लाई, डैमसेल्लाई और जलीय पौधे विलुप्त होने के खतरे में हैं और एक रिकार्ड के अनुसार देश में मीठे पानी की जैव विविधता में 84 फीसदी की गिरावट आई है।
वनों की कटाई देश में जैव विविधता में गिरावट का एक और प्रमुख कारण है। इस सदी की शुरुआत से, भारत ने अपने कुल वृक्ष क्षेत्र का 19 फीसदी खो दिया है। जबकि 2.8 फीसदी वन वनों की कटाई से काटे गए, अधिकांश नुकसान जंगली आग के परिणामस्वरूप हुआ है, जिसने प्रति वर्ष 18,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक वनों को प्रभावित किया है वनों की कटाई के वार्षिक औसत से दोगुना से भी अधिक।

भारत ने पिछले कुछ वर्षों में औसत तापमान में वृद्धि देखी है। इस वृद्धि के कारण अधिक बार और तीव्र गर्मी की लहरें आती हैं, जिससे मानव स्वास्थ्य, कृषि और जल संसाधन प्रभावित होते हैं। अनियमित वर्षा पैटर्न ग्लोबल वार्मिंग मानसून के पैटर्न को प्रभावित करती है, जिससे अनियमित वर्षा होती है।

इस पर्यावरण दिवस (Environment Day) के अवसर पर पर्यावरण संरक्षण के कुछ तरीके को हम आसानी से अपना सकते हैं। हम फूल के पौधे लगा सकते हैं। मधुमक्खियों की आबादी दुनिया भर में कम होती जा रही है, प्रचुर मात्रा में देशी फूल और पौधे सुनिश्चित करना मधुमक्खियों को भरपूर भोजन और पराग प्रदान करने में मदद करने के लिए महत्वपूर्ण है। मधुमक्खियाँ सभी आकार के जानवरों के लिए खाद्य श्रृंखला को बनाए रखने में मदद करती हैं। खाद खुद बनाएँ, बागवानी के लिए प्राकृतिक खाद का उपयोग करने से स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाने वाले कृत्रिम उर्वरकों और कीटनाशकों की जरूरत खत्म हो जाएगी।

साइकिल चलाएं या सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करें। कार में अकेले चलने के बजाय साइकिल चलाने या सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करके कार्बन उत्सर्जन में कटौती करें। पुन: प्रयोज्य वस्तुओं का उपयोग करें। डिस्पोजेबल वस्तुओं के स्थान पर पुन: प्रयोज्य वस्तुओं जैसे पानी की बोतलें, शॉपिंग बैग और कंटेनरों का उपयोग करके अपशिष्ट को कम करें। अपने नलों की जांच करें व जल संरक्षण और अनावश्यक बर्बादी को रोकने के लिए किसी भी टपकते नल को ठीक कराएं। Environment:
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार व स्तंभकार हैं)

 

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