Article : खतरे की घंटी है मौसम के बदलते तेवर

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calendar29 Nov 2025 07:54 PM
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Article: अमेरिका के नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) के अध्यक्ष रिक स्पिनरेड ने एक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा है कि इस सदी के खत्म होते-होते दुनिया के तकरीबन 36 बड़े शहर समुद्र का जलस्तर बढऩे की वजह से लोगों के रहने लायक नहीं रहेंगे। इनमें न्यूयॉर्क, टोक्यो, लंदन, सिंगापुर, दुबई, ढाका, बैंकॉक जैसे शहरों के साथ ही भारत के तीन शहर चेन्नई, मुंबई और कोलकाता भी शामिल हैं। रिपोर्ट में अनुमान जाहिर किया गया है कि 2050 तक भारत के तीनों शहरों की अधिकतर सडक़ें समुद्री पानी में डूब जाएंगी। पिछली सदी में समुद्र के जलस्तर में औसतन सालाना वृद्धि 1.4 मिलीमीटर थी, जो 2006 से 2015 के बीच 3.6 मिलीमीटर दर्ज की गई।

पिछले साल दिसंबर (December) में जब केरल के तिरुवनंतपुरम में विश्व बैंक (World Bank) ने अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए भारत में भीषण गर्मी (Scorching Heat) को लेकर चेतावनी दी थी, तब शायद ही किसी को आभास होगा कि आने वाले साल में गर्मी अपने प्रचंड रूप में इसी क्षेत्र में दस्तक देगी। बीते 9 मार्च को तिरुवनंतपुरम और कन्नूर जिलों में तापमान ताप सूचकांक 54 डिग्री को छू गया। यह सूचकांक तापमान और आर्द्रता को मिलाकर तय किया जाता है और बताता है कि लोगों को कितनी गर्मी महसूस हो रही है। मतलब, इन क्षेत्रों में लोगों को 54 डिग्री सेल्सियस तापमान के बराबर गर्मी के एहसास से रूबरू होना पड़ा। इस साल यह गर्मी की दस्तक भर है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले दिनों में गर्मी सिर्फ डराएगी नहीं, बल्कि रुलाएगी भी!

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भीषण गर्मी को लेकर इस बार पहले ही अनुमान जाहिर किए जाने लगे थे। बदले मिजाज के साथ गर्मी की दस्तक ने अनुमानों पर मुहर लगाने का काम किया है। गोवा में मार्च के शुरुआती 11 दिनों में ही महादेई वन्य जीव अभ्यारण्य में आग लगने की 48 घटनाएं हो चुकी हैं। हो सकता है कि इनमें से कुछ घटनाओं के पीछे मानवीय भूल हो, लेकिन गोवा में अभूतपूर्व रूप से चल रही गर्म हवाओं को ही इनके लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। पिछले दिनों वहां हालात ऐसे हो गए कि स्कूलों को बंद तक करना पड़ा। गर्मी की यह प्रचंडता एक-दो राज्यों या कुछ विशेष क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं है। मौसम विज्ञान विभाग का दावा है कि इस बार फरवरी महीने का अधिकतम औसत तापमान 146 सालों में सबसे अधिक रहा। वहीं, न्यूनतम औसत तापमान 122 सालों में पांचवें स्थान के तौर पर दर्ज किया गया। विभाग की हाइड्रोमेट और एग्रोमेट सलाहकार सेवा के प्रमुख एससी भान का कहना है कि अप्रैल और मई में बेहद गंभीर हालात का सामना करना होगा।

विश्व बैंक ने बीते दिसंबर में भारत में शीतलन क्षेत्र में जलवायु निवेश के अवसर शीर्षक से जारी रिपोर्ट में दावा किया था कि भारत दुनिया का ऐसा पहला देश होगा, जो भीषण गर्म हवाओं का सामना करेगा। इस रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र अंतर सरकारी पैनल (यूएनआईपीसीसी) के आकलन के हवाले से कहा गया कि सिर्फ अत्यधिक गर्म हवाएं ही नहीं चलेंगी, बल्कि इनके चलने की समयावधि भी बढ़ेगी। जी-20 क्लाइमेट रिस्क एटलस ने भी अपनी 2021 की रिपोर्ट में कहा था कि 2036 से 2065 के बीच भारत में लू चलने की समयावधि 25 गुना तक बढ़ जाएगी। विश्व बैंक की रिपोर्ट में तो यहां तक कहा गया है कि भीषण गर्मी की वजह से 2030 तक देश में तीन करोड़ 40 लाख लोग बेरोजगार हो जाएंगे। करीब 38 करोड़ लोग ऐसे क्षेत्रों में काम करते हैं, जहां का वातावरण गर्म है। बेतहाशा गर्मी से उपजे तनाव के चलते लोगों की उत्पादकता पर नकारात्मक असर पड़ेगा, जो अंतत: नौकरी से हाथ धोने का कारण बनेगा। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) का मानना है कि इस बार कुछ देश या कुछ क्षेत्र नहीं, बल्कि समूची दुनिया भयंकर गर्मी से जूझेगी। इसकी वजह अल-नीनो का सक्रिय होना बताया जा रहा है। अल-नीनो एक प्राकृतिक घटना है, जो उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में प्रशांत महासागर के ऊपर के वातावरण में घटित होती है। इस दौरान महासागर की सतह का तापमान चार-पांच डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है, जो भीषण गर्मी का कारण बनता है। इससे पहले साल 2016 भी अल-नीनो की वजह से सबसे गर्म रहा था। लेकिन, क्या यह अकेला कारण है, जो इस बार लोगों को भीषण गर्मी में झुलसाएगा? अगर, पिछले साल के कार्बन उत्सर्जन के आंकड़ों पर नजर डालें तो स्थिति काफी हद तक साफ हो जाएगी। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के कार्यकारी निदेशक फतिह बिरोल ने विगत दो मार्च को रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि पिछले साल 36.80 गीगाटन कार्बन का उत्सर्जन दर्ज किया गया। तमाम देशों ने अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए कोयले का जमकर इस्तेमाल किया। नतीजतन, उत्सर्जन में 1.6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। इसका परिणाम भीषण गर्मी के रूप में लोगों को भुगतना पड़ेगा।

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मुद्दा सिर्फ गर्मी बढऩे तक ही सीमित नहीं है। बढ़ता प्रदूषण, ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण की कमी जैसे तमाम कारण हैं, जो ग्लोबल वार्मिंग की वजह बन रहे हैं। इसके चलते जलवायु पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। हाल यह है कि एक ही क्षेत्र कभी भीषण गर्मी तो कभी सूखे से जूझ रहा है। केरल में कुछ महीने पहले बारिश-बाढ़ ने जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया, तो अब गर्मी ने डरा दिया है। गर्म होती दुनिया की मुसीबतें यही रुकने वाली नहीं हैं। अमेरिका के नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के अध्यक्ष रिक स्पिनरेड ने एक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा है कि इस सदी के खत्म होते-होते दुनिया के तकरीबन 36 बड़े शहर समुद्र का जलस्तर बढऩे की वजह से लोगों के रहने लायक नहीं रहेंगे। इनमें न्यूयॉर्क, टोक्यो, लंदन, सिंगापुर, दुबई, ढाका, बैंकॉक जैसे शहरों के साथ ही भारत के तीन शहर चेन्नई, मुंबई और कोलकाता भी शामिल हैं। रिपोर्ट में अनुमान जाहिर किया गया है कि 2050 तक भारत के तीनों शहरों की अधिकतर सडक़ें समुद्री पानी में डूब जाएंगी। पिछली सदी में समुद्र के जलस्तर में औसतन सालाना वृद्धि 1.4 मिलीमीटर थी, जो 2006 से 2015 के बीच 3.6 मिलीमीटर दर्ज की गई। यूएनआईपीसीसी का दावा है कि ग्लोबल वार्मिंग से सदी के अंत तक समुद्र का जलस्तर एक से तीन फीट तक बढ़ जाएगा। इसके चलते कम से कम 25 करोड़ लोगों पर बेघर होने का खतरा मंडरा रहा है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के नेचर वॉटर जर्नल में प्रकाशित हालिया अध्ययन बताता है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते ही भीषण गर्मी, सूखा, अत्यधिक बारिश और बाढ़ की समस्या पैदा हो रही है। नासा के वैज्ञानिक रोडेल और बेलिंग ली ने दो उपग्रहों की मदद से 2002 से 2021 तक अत्यधिक बारिश और सूखे की 1056 घटनाओं का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला है।

बहरहाल, गर्मी के बदले हुए तेवरों से यह तो तय है कि इस बार चुनौतियां कुछ ज्यादा हैं। कोरोना के मामले फिर से बढऩे लगे हैं, तो वहीं एच3एन2 इनफ्लुएंजा (H3N2 Influenza) भी पैर पसार रहा है। डायरिया, चिकन पॉक्स, टायफाइड जैसे दर्जनभर रोग गर्मी अपने साथ लेकर आती ही है। ऐसे में, भीषण गर्मी से डरने की नहीं, बल्कि सामना करने की तैयारी में जुटने की जरूरत है। हालांकि, 6 मार्च को गांधीनगर के राजभवन में बैठक कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आला अफसरों को गर्मी से निपटने के लिए तैयार रहने का निर्देश देकर जता दिया है कि सरकार ने भी आंख-कान खुले रखे हैं, लेकिन समस्या का हल एकाध बरस की तैयारी से होने वाला नहीं है। ग्लोबल वार्मिंग रोकने के लिए दूरगामी प्रभाव डालने वाले ठोस निर्णय लेने होंगे। वैश्विक नेताओं को अपने क्षेत्रीय हित एक तरफ रखकर दुनिया को एक बड़े खतरे से बचाने के लिए साथ आना होगा।

जाट गुर्जर एकता की मिसाल था वो युद्ध जिसमें रामप्यारी गुर्जरी ने किया था कमाल

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Article : 2 जीबी डाटा से पेट भर रहे हैं आज बच्चे

Article :  2 जीबी डाटा से पेट भर रहे हैं आज बच्चे
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userचेतना मंच
calendar31 Mar 2023 02:43 PM
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Article : जाने क्या कशिश है इस फोन या टी.वी की स्क्रीन में कि बच्चा (Child) मदहोश हो मम्मी-पापा (Mom-Dad) या जो कोई भी उसका अपना हो, उसके फोन (Phone) के स्क्रीन या टी.वी (T.V.) के स्क्रीन जहाँ से भी वह एक झलक पा सके। वहाँ तक तो वह अपने आप खिसकना-पलटना सीख ही लेता है। पता नहीं कैसे समझदार थे हमारे सीनियर्स जो कि झुनझुना या बच्चे के लिए कुछ स्पेशल रख घंटों ताली पीटते थे। तब जाकर कहीं बच्चा मुस्कुराकर, खिसक कर या चलकर दिखाता था।

ना कि रिश्तों का मर जाना बुरा है। पर क्या उससे भी कहीं बुरा नहीं है, झूठे रिश्तों से जुड़ते और जुड़ते ही जाना? यानि मोबाइल फोन (Mobile Phone) या टी.वी की कहानियों या उनके पात्रों से जुडऩा। आज जैसे ही एक छोटा बच्चा खुद को पलट लेना सीखता है। साथ ही वह फोन या टी. वी की स्क्रीन पर रंग बिरंगी तस्वीरें झाँकने की ट्रेनिंग भी खुद-ब-खुद लेना सीखने लगता है।

जाने क्या कशिश है इस फोन या टी.वी की स्क्रीन (TV Screen) में कि बच्चा मदहोश हो मम्मी-पापा (Mom-Dad) या जो कोई भी उसका अपना हो, उसके फोन के स्क्रीन या टी.वी के स्क्रीन जहाँ से भी वह एक झलक पा सके। वहाँ तक तो वह अपने आप खिसकना-पलटना सीख ही लेता है। पता नहीं कैसे समझदार थे हमारे सीनियर्स जो कि झुनझुना या बच्चे के लिए कुछ स्पेशल रख घंटों ताली पीटते थे। तब जाकर कहीं बच्चा मुस्कुराकर, खिसक कर या चलकर दिखाता था। आज आप थोड़ा सा टी.वी का वॉल्यूम बढ़ाएँ फिर देखिये बच्चा भी जितनी उसकी आयु है उसी के हिसाब से करतब दिखाने शुरू कर देता है।

अब परिस्थितियाँ ही तो हैं जो कि बच्चों का स्वभाव बदल देती हैं। वीर अभिमन्यु (Veer Abhimanyu) जब अपनी माँ के पेट से चक्रव्यूह भेदना सीख कर आ सकता है। तो आज का बच्चा क्यों नहीं नैक फॉर डेटा यूज (कुशलता) लेकर अपनी माँ के पेट से पैदा हो सकता? अब यदि हम कहें कि आज के समय में प्राईओरिटीज बदल रही हैं तो क्या ये भी सही नहीं है कि इंसान के व्यक्तित्व में भी निखार तभी आता है जब कि वो चुनौतियों का सामना करता है। प्राय: देखा गया है कि यदि माँ-पिता दोनों ही वर्किंग हैं और बच्चा आया के हाथों पल रहा है। ऐसे में तो बच्चा पूरा फोन या स्क्रीन का रसिया बनकर ही बडा होता है। क्योंकि अपनों पर तो रौब चल जाता है। पर आया आपके पास नौकरी करने आई है। आपके परिवार का हिस्सा नहीं है वो। तो लगाव भी प्रोफेशनल काइंड ऑफ ही होगा। ऐसे में बहुत ही अच्छा होगा कि आप अपने माता-पिता के लाड़-प्यार में ही बच्चे की परवरिश की चुनौती भी स्वीकार कर लें। माता-पिता चाहे पति के हों या पत्नी के जो भी आपको सूट करें। नहीं तो बच्चे तो वैसे ही बढ़े होंगे जैसेकि आजकल देखने में आ रहे हैं। छोटी सी उम्र में ही मोटा चश्मा, क्रोधी, वीडियो या फोन पर गेम खेलने के एक्सपर्ट यहाँ तक की दोस्त बनाना या उनके साथ खेलना भी उन्हें पसन्द नहीं। मुंह में भोजन का एक टुकडा भी तब तक नहीं लेंगे जब तक कि आँखों के सामने टी.वी या फोन का स्क्रीन न हो। अब ऐसे में आपके ऐसे न निकलेंगे इसमें कोई अतिशयोक्ति है क्या ?

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हम निर्धन तब नहीं होते जब सबके मुक़ाबले हमारे पास सामान नहीं होता या हमारा घर एक कमरे का और लोगों का महल जैसा होता है । हम तो गरीब तब हो जाते हैं । जबकि हमारे पास बहुत बड़ा घर उसमें हर प्रकार का आधुनिक ऐशो आराम का सामान होता है । पर हमारे बच्चे देखने के पहलवान यानी कि आंखों पर मोटा चश्मा । जिम में स्टेरॉयड या शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले पाउडर खा-खाकर एक खोखला शरीर लिए हुए बढ़ रहे हों। जो ना तो माता-पिता की सुनते हैं ना ही अन्य किसी और की सुनना चाहते हैं उनके

अनुसार वे ही सर्वश्रेष्ठ और बुद्धिमान हैं।

सच कहा गया है कि मनुष्य को धोखा। मनुष्य नहीं देता बल्कि उसकी अपनी उम्मीदें धोखा दे जाती हैं। जो कि हम दूसरों से रखते हैं जिंदगी है ही क्या? इच्छाओं का गुलदस्ता ही तो है। जैसे हम सोचते हैं आया या क्रेच हमारा बच्चा बड़ा कर देंगे । लेकिन आया बच्चे को देती हैं ऐडिक्श्न मोबाइल की या टी.वी. की । उसके बाद हम भी जब काम से थके मांदे आते हैं। या कुछ देर खुद को ही सुकून देने के लिए ही सही। हम कुछ देर सोच कर बच्चे के हाथ में मोबाइल या उसके सामने टीवी चला देते हैं। बस यहीं से शुरुआत हो जाती है। हमारी उम्मीदों के लुटने की। बच्चा नाच कर दिखाता है तो हम खुश होते हैं। वहीं बच्चा जब खाना बिना मोबाइल या टीवी स्क्रीन के बिना नहीं निगलता। तब शुरू होती हैं हमारी तमन्नाये मुरझाना या झुकना।

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सच तो यह ही है कि कोई नहीं बिगाड़ता हमारे बच्चों को। अपने बच्चों के पहले शिक्षक तो हम ही हैं। अब यदि बिगाड़ ही दिया है तो सुधारना भी हमें ही है। बच्चों से अच्छा सेल्समैन कोई नहीं होता। रोकर, चीखकर, सर पीट कर अपनी जिद मनवा ही लेते हैं। मां-बाप भी निराश होकर मानने लगते हैं। अब यदि जीवन को संवारना है या कड़े शब्दों में बच्चों को अच्छा भविष्य देना है। उनको एक से दो डाटा यूजर बनने से रोकना है, तो हमें ही संभलना होगा उन्हें । बच्चे डरते भी जल्दी हैं। उन्हें सिर्फ एक या दो वीडियो ऐसे दिखा दें। जिनमें टी वी या अधिक फोन देखने के कारण जिसमें आँखें टेढ़ी हो जाती हैं। या आँखों से खून निकलने लगता है। दिखाएँ। फिर उन्हें क्वालिटी समय दें उनकी ज्यादा सुनें। आप पाएंगे की रिश्ते जगने लगे हैं तथा फोन अब ओंधे मुह पड़ा है। डाटा यूसेज भी कंट्रोल हो ही जाएगा। (लेखिका सामाजिक कार्यकर्ता व चेतना मंच की प्रतिनिधि हैं)

Delhi News – मच्छर भगाने वाली अगरबत्ती ने ली एक ही परिवार के 6 सदस्यों की जान

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Article : बी-टेक छात्रा बेच रही है गोल-गप्पे

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calendar01 Dec 2025 07:51 AM
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अंजना भागी Article :  एनआईटी (NIT) और आईआईएम (IMS) जैसे प्रमुख शिक्षण संस्थानों में पढ़ रहे छात्रों के बारे में पिछले दिनों एक भयानक खबर सामने आयी थी सरकारी तौर पर यह बताया गया कि पिछले 5 सालों में इन प्रमुख शिक्षण संस्थानों में पढऩे वाले 55 छात्रों (55 students) ने आत्महत्या (Suicide) कर ली। इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जिन युवाओं के कंधों पर देश का भविष्य टिका है। वह माता-पिता की महत्वाकांक्षा, प्रतिस्पर्धा के दौर और भविष्य की चिंताओं को लेकर ऐसे भारी मानसिक तनाव में हैं कि उसे मौत को गले लगाना ही आसान रास्ता दिखता है। माता-पिता की महत्वाकांक्षा भी कहीं कभी संतान की बर्बादी का कारण न बन जाए...। होता यूं है कि कभी-कभी जो हम स्वयं नहीं कर पाते हम सोचते हैं कि यदि हम अपने बच्चों पर कड़ी मेहनत करेंगे, खूब तन, मन, धन लगाएंगे। उन पर पूरा ध्यान देंगे। यहाँ तक कि उनके लिये हम सारे रिश्ते-नातों तक को ताक पर रख देंगे। उनके जिम्मे सिर्फ एक ये ही काम छोड़ेंगे पढऩा और पढऩा। तो वे भी कल हमारे बॉस की तरह ऑफिसर बनेंगे। जहां भी हम कार्यरत हैं वहाँ के बॉस जैसे विद्वान हमारे बच्चे भी बनेंगे। हम जो न कर सके। अब हमारे सपनों को हमारे बच्चे उड़ान देंगे।

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बिना यह जाने या समझे कि हमारे बच्चे कितने सक्षम हैं। वह कितना कर सकते हैं। उनकी कैसी क्षमता है। ऐसा प्राय: हर घर में ही देखा जाता है। यदि मैं क्लर्क हूं तो मेरा बेटा ऑफिसर होना चाहिए। आईआईटी इंजीनियर होना चाहिये। उसके लिए हर किस्म की कोचिंग ट्यूशन बच्चे को देने के लिए हम स्वयं को अत्यधिक कड़ी परिस्थितियों से निकलने लगते हैं। बिना यह सोचे जाने कि इसका बच्चे पर कितना दबाव बन रहा है। कहीं हमारा यह बच्चे पर अत्यधिक दबाव उसकी खुशियां या जीवन जीने की महत्वाकांक्षा को ग्रहण की तरह डस ही तो नहीं रहा। जरूर सोचें? मेरी बेटी जिस कोचिंग सेंटर में गणित की ट्यूशन पढऩे जाती थी वहां उसको गणित पढ़ाने के लिए जो युवा आता था वह आईआईटी पास इंजीनियर था। लगभग 2 साल से उसको उसकी चॉयस की नौकरी नहीं मिली थी। अब वह कोचिंग में 4 घंटे के लिए मैथ्स की क्लास लेता था। बच्चों को देखकर ही लगता था कि वह कितना फ्रस्ट्रेटेड है। बारहवीं कक्षा के बच्चों को जीजान से पढ़ाता था घर आकर भी बच्चे खूब पढ़ते थे। लेकिन अपने माता-पिता को कहीं संशय की दृष्टि से भी देखने लगते। कभी-कभी दुखी हो कहने या रोने भी लगते कि हमारा क्या होगा? हमारे इतने विद्वान सर तो हमें ट्यूशन पढ़ा रहे हैं। देश की आबादी 135 करोड़ से ऊपर जा रही है। एक पद हजारों उसके उम्मीदवार। बहुत ही विचारणीय प्रश्न है। कड़ी मेहनत करने वाले युवाओं की यह दशा देख बहुत हताशा होती है। हमारे देश में सदा दो ही तो पार्टी रही हैं। एक कार्यकारिणी जो काम करती है दूसरी अपोजिशन। आज जब अपोजिशन अत्यधिक मंदे हाल में है। तब भी सदन की बैठक स्थगित हो रही हैं। ऐसे में प्रोग्रेस कैसे होगी? तरक्की की उम्मीद कहां से आएगी? या आगे क्या कार्य हो रहा है क्या करना है। उसका कोई विश्लेषण। सदन स्थगित के बाद तो कोई प्रावधान ही नहीं बचता। हमारा युवा अत्यधिक मेहनत करने के बाद भी सुसाइड जैसे निर्णय लेने पर मजबूर हो रहे हैं।

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राज्यमंत्री सुभाष सरकार (Minister of State Subhash Sarkar) ने जब लिखित रूप में राज्यसभा को यह जानकारी दी कि 2018 से 2022 के दौरान 5 सालों में एनआईटी और आईआईएम जैसे प्रमुख शिक्षण संस्थानों में 55 विद्यार्थियों ने आत्महत्या कर ली। यानी कि आईआईटी एनआईटी और भारतीय प्रबंधन संस्थान आईआईएम उन्होंने यह भी कहा दो हजार अ_ारह में ऐसी घटनाओं की संख्या 11 थी। 2019 में 16, 2020 में 52, 2021 में 7 और 2022 में 16 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की। 2023 के इन 3 महीनों में ही अब तक 6 मामले सामने आ चुके हैं। इंजीनियरिंग ग्रेजुएट ‘बी.टेक (B.Tech) पानीपुरी वाली’ 21 साल की इंजीनियरिंग ग्रेजुएट दिल्ली की सडक़ों पर पानी पूरी बेच रही है। अपने पानी पूरी के स्टॉल पर बीटेक पानी पूरी वाली लिखनें में उसका स्वाभिमान तथा व्यक्तित्व अपने आप बोलता है। ‘जनता को स्वस्थ भोजन परोसना’ तापसी का उद्देश्य है। गोलगप्पे खाना किसे पसंद नहीं। वाह तापसी आपके स्टार्ट-अप चुनने पर। लेकिन इस देश की दूर-दर्शिता पर?

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21 वर्षीय बी.टेक स्नातक सुश्री तापसी उपाध्याय (Taapsee Upadhyay) आज अपनी बुलेट मोटर साइकिल द्वारा अपने गोल- गप्पे (Golgappas) के स्टॉल को दिल्ली में जगह-जगह खींच कर ले जाते हुए सभी लोगों का गोल-गप्पे खाने का शौक तथा अपना व्यवसाय कर रही हैं। पानी पूरियां बेच वह देहली की गलियों में बुलेट कारवां की सवारी करती हैं, ‘जनता को स्वस्थ भोजन परोसने’ के उद्देश्य से हवा में तली हुई पूरियां बेचती हैं। लेकिन उनकी स्टॉल का नाम है ‘बीटेक पानी पुरी वाली’। जो भी खाता है ये ही कहता है कि तापसी के गोल गप्पों से आपका पेट भर जाएगा पर मन नहीं। खाने वाले भी हर तरह के होते हैं। अलग-अलग तरह की बातें करते हैं कुछ कहते हैं आप इंजीनियर हो अच्छा लगता है आप गोलगप्पे बेचें? कुछ कहते हैं आप लडक़ी हो अपने घर जाओ घर के काम करो। तैयार आप कर दें फिर घर के किसी आदमी को बेचने भेजें। तापसी कहती हैं जब मैं व्यवस्था करके दे सकती हूँ तो बेच क्यों नहीं सकती। ऐसे में भी दिल्ली में यदि सदन न चलने दिये जाएँगे तो पता नहीं गोल गप्पे (Golgappas) खाने वाले भी कब तक खा पाएंगे। (लेखिका सामाजिक कार्यकर्ता व चेतना मंच की प्रतिनिधि हैं)

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