Heartfelt Tribute : 'हिन्दी संघर्ष' के राष्ट्रीय प्रतीक थे डॉ. वेद प्रताप वैदिक

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Dr. Ved Pratap Vaidik was the national symbol of 'Hindi struggle'
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calendar02 Dec 2025 03:03 AM
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नई दिल्ली। डॉ. वेद प्रताप वैदिक भारत के प्रख्यात लेखक, पत्रकार, विचारक व स्वप्नद्रष्टा रहे हैं। उनके विचार, स्वप्न, लेखन और पत्रकारिता सहज ही हमारे दिलो दिमाग में घर कर जाते हैं। उनकी पहचान यहीं तक सीमित नहीं है। वह हिंदी के प्रखर समर्थक रहे हैं। सच कहें तो डॉ. वेद प्रताप वैदिक हिंदी भाषा के सिर्फ प्रबल समर्थक ही नहीं, समूचा आंदोलन थे, या यूं कहें कि वह हिंदी सत्याग्रही थे। उनका हमारे बीच से यूं अचानक चले जाना गहरी टीस दे गया। बेशक वह आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी काबिलियत और महान शख्सियत हमेशा हमें उनकी याद दिलाती रहेगी।

Heartfelt Tribute

डॉ. वेद प्रताप वैदिक के जानने वाले कहते हैं कि हिंदी को पूरी दुनिया में लोकप्रिय बनाने का जो आंदोलन उन्होंने छेड़ा, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनके जानने वाले तो यहां तक कहते हैं कि भारत में उनके आंदोलन के कारण ही यूपीएससी और कानून की परीक्षाओं के लिए हिंदी भाषा को मान्यता दी गई। दरअसल, डॉ. वैदिक ने दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडी से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। वे भारत के ऐसे पहले विद्वान रहे हैं, जिन्होंने अपना अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर रिसर्च पेपर हिंदी में लिखा। इसी कारण उन्हें जेएनयू से निष्कासित कर दिया गया। साल 1965-67 में इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि संसद में इस पर जबरदस्त हंगामा हुआ। इस मसले पर डॉ. राम मनोहर लोहिया, मधु लिमये, आचार्य कृपलानी, हीरेन मुखर्जी, प्रकाशवीर शास्त्री, अटल बिहारी वाजपेयी, चन्द्रशेखर, भागवत झा आजाद, हेम बरुआ आदि ने वैदिक का समर्थन किया। आखिर, तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गान्धी की पहल पर ‘स्कूल’ के संविधान में संशोधन हुआ और वैदिक को वापस लिया गया। इसके बाद वे हिन्दी-संघर्ष के राष्ट्रीय प्रतीक बन गये।

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डॉ. वैदिक कुछ साथियों का यह भी कहना है कि उन्होंने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ 13 वर्ष की आयु में की थी। हिंदी सत्याग्रही के तौर पर वे 1957 में पटियाला जेल में रहे। डॉ. वेद प्रताप वैदिक की गणना उन लेखकों और पत्रकारों में होती है, जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया। यद्यपि वह रूसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत समेत कई भाषाओं के जानकार थे, लेकिन उनका हिंदी प्रेम गजब का था। हिन्दी को भारत और विश्व मंच पर स्थापित करने की दिशा में वह सदा प्रयत्नशील रहे। भाषा के सवाल पर स्वामी दयानन्द सरस्वती, महात्मा गांधी और डॉ. राम मनोहर लोहिया की परम्परा को आगे बढ़ाने वालों में डॉ. वैदिक सबसे आगे रहे। अंग्रेजी पत्रकारिता के मुकाबले हिन्दी में बेहतर पत्रकारिता का युग आरम्भ करने वालों में डॉ. वैदिक का नाम अग्रणी है। उन्होंने सन् 1958 से ही पत्रकारिता प्रारम्भ कर दी थी।

Heartfelt Tribute

डॉ. वैदिक ने पिछले पांच दशकों तक हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिये अनेक आन्दोलन चलाये। अपने चिन्तन व लेखन से यह सिद्ध किया कि स्वभाषा में किया गया काम अंग्रेजी के मुकाबले कहीं बेहतर हो सकता है। उन्होंने एक लघु पुस्तिका अंग्रेजी में भी लिखी, जिसमें तर्कपूर्ण ढंग से यह बताया कि कोई भी स्वाभिमानी और विकसित राष्ट्र अंग्रेजी में नहीं, बल्कि अपनी मातृभाषा में सारा काम करता है। उनका विचार है कि भारत में अनेकानेक स्थानों पर अंग्रेजी की अनिवार्यता के कारण ही आरक्षण अपरिहार्य हो गया है, जबकि इस देश में इसकी कोई आवश्यकता नहीं है।

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एक पत्रकार, शोध छात्र और वक्ता के रूप में उन्होंने दुनिया के करीब 80 देशों की यात्राएं कीं। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के साथ भी यात्राएं करने का उन्हें मौका मिला। साल 1999 में वे संयुक्त राष्ट्र संघ में भारतीय प्रतिनिधि के तौर पर व्याख्यान देने के लिए भी आमंत्रित किए गए थे। भारतीय विदेश नीति के चिन्तन और संचालन में उनकी भूमिका उल्लेखनीय है। उन्हें विश्व हिंदी सम्मान (2003), महात्मा गांधी सम्मान (2008) सहित कई पुरस्कार और सम्मान से नवाजा गया। देश विदेशकी खबरों से अपडेट रहने लिएचेतना मंचके साथ जुड़े रहें। देशदुनिया की लेटेस्ट खबरों से अपडेट रहने के लिए हमेंफेसबुकपर लाइक करें याट्विटरपर फॉलो करें।
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Holi Special Food: बिना इन व्यंजनों के अधूरी सी लगती है होली जानें होली पर फेमस फूड 

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Holi Special Food
locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 05:58 PM
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    Holi Special Food: होली के आने के साथ ही मौसम में भी होली का रंग भर जाता है. इस खुशी के पल को और भी खुशनुमा बनाने के लिए अगर होली में खाने की बात न की जाए तो यह कुछ अधूरा  सा लग सकता है. ढेर सारे पकवान ओर स्वादिष्ठ मिठाइयों की सौगात लिए आती है होली.

Holi Special Food :

  भारत के हर कोने कोने से होली के रंगों की बौछार के साथ ही स्वाद का अलग ही रंग देखने को मिलता है. होली के समय पर लोग कई तरह के पारंपरिक पकवानों को बनाते है. परिवार के लोग मिलकर इनका स्वाद लेते हैं ओर होली की मस्ती में डूब जाते हैं.

होली के कुछ स्पेशल पारंपरिक फूड 

[caption id="attachment_72354" align="aligncenter" width="414"]Ghujiya Ghujiya[/caption] गुजिया या गुझिया होली का त्यौहार जो और गुजिया की बात न हो तो ऎसा हो नहीं सकता है, कई बार तो होली और गुजिया दोनों एक दूसरे के पूरक ही लगने लगते हैं. स्वाद से भरपूर गुजिया हमें कई रुपों में खाने को मिल जाती है. चीनी की चाशनी में डूबी, चांदी के वर्क में लिपटी गुझिया मन में स्वाद का एक अलग रंग छोड़ती है. मैदे और आटे से बनाई गई इस गुजिया के भीतर खोया, चीनी, मेवा, नारियल, गुड़, किशमिश जैसे चीजें भरी जाती हैं जिसे पारंपरिक रुप से सभी लोग बनाते हैं. लेकिन आज हमें कुछ अलग तरह की गुजिया में बाजार में मिल जाएगी जिसमें से चॉकलेट गुजिया, गोल गुजिया, रबड़ी गुजिया, बूंदी गुजिया, रवा गुजिया  और भी कई तरह के नए रुप इस स्वादिष्ट गुजिया में देखने को मिल जाएंगे. [caption id="attachment_72356" align="aligncenter" width="433"]Dahi Bhalla Dahi Bhalla[/caption] दही भल्ला होली पर बनाई जाने वाली एक अन्य विशेष डिश है दही भल्ला. होली के मौके पर दही भल्ले विशेष रुप से बनते हैं ओर चटपटी चाट के साथ जायका भी दुरुस्त हो जाता है. यह दही भल्ला आइटम बहुत हिट रहती है. दही भल्लों के साथ दही पापड़ी भी बड़े चाव के साथ खाई जाती है जिसे बच्चे से लेकर बूजुर्ग सभी बहुत पसंद करते हैं. [caption id="attachment_72358" align="aligncenter" width="323"]Thandai Thandai[/caption] ठंडाई होली में ठंडाई का अलग ही मस्त रुप देखने को मिलता है. कई जगहों पर भांग वाली ठंडाई की इतनी मांग होती है की सब इसे एक बार तो जरूर चखना चाहते है. ठंडाई को भोग स्वरुप भगवान को भी अर्पित किया जाता है और भोले नाथ को तो भांग वाली ठंडाई का भोग जरुर लगाया जाता है और जिसे प्रसाद के रुप में भक्त भी ग्रहण करते हैं. दूध, मेवों और सुगंधित मसालों से बना यह रसिला मिश्रण मन को मोह लेने वाला होता है. [caption id="attachment_72360" align="aligncenter" width="480"]Malpua Malpua[/caption] मालपुआ  मालपुआ एक बेहद ही स्वाद से भरपूर बेहद पुरानी मिठाई के रुप में जानी जाती है. कुछ कुछ पैनकेक जैसी दिखने वाला यह मालपुआ इंदौर की शान के रुप में भी देखा जाता है. इसे मैदे या आटे के घोल को देसी घी में तल कर चाशनी में डुबो कर तैयार किया जाता है, स्वाद को बढ़ाने के लिए इस पर रबड़ी के साथ चांदी के वर्क की परत भी चढ़ाई जाती है. होली पर मालपुआ का स्वाद मुंह में सतरंगी स्वाद को देने वाला होता है. [caption id="attachment_72361" align="aligncenter" width="321"]Namak Pare Namak Pare[/caption] नमक पारे  होली की एक नमकीन  डिश नमक पारे भी अपने स्वाद और पारंपरिक रुप के कारण आज भी बहुत चाव से खाए जाते हैं. होली पर बनाई जाने वाला ये पकवान नमकीन स्वाद के साथ खस्ता जायका भी देता है. जिस का मजा लोग चाय या कॉफी की चुस्कियों के साथ लेते दिखाई देते हैं. लेखिका (राजरानी शर्मा)
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Holi Special : भारत में कहीं फूल और लड्डू तो कहीं खेली जाती है भस्म और अंगारों वाली होली

Holi
Somewhere in India, flowers and laddoos are played and somewhere Holi with ashes and coals is played
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userचेतना मंच
calendar05 Mar 2023 04:06 PM
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लखनऊ। होली, हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला विशेष त्यौहार है, जिसे बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस वर्ष पूरे देश में होली 8 मार्च (बुधवार) को मनाई जाएगी। कैलेंडर के सबसे बड़े त्योहारों में से एक होली को रंगों का त्योहार भी कहा जाता है। देश में पूर्व से लेकर पश्चिम तक और उत्तीर से लेकर दक्षिण तक अनेकता में एकता का रंग बिखरेनी वाली होली का नाम और रूप अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन भावना एक ही होती है। आज हम आपको होली किन-किन प्रकारों से मनाई जाती है, उनके कुछ रूपों के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं, तो पढ़िए ये पूरी खबर…

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Holi Special

1- फूलों की होली : होली सप्ताह में एकादशी पर उत्तर प्रदेश में मथुरा जिले के बांके बिहारी मंदिर में ताजे फूलों की पंखुड़ियों के साथ फूलों की होली खेली जाती है। वृंदावन कृष्ण शिष्यों द्वारा बड़े उत्साह के साथ सुगंध और फूलों से भरे माहौल में फूलों की होली का प्राकृतिक दृश्य आपको एक अलग दुनिया में ले जाता है। 2- लड्डूमार होली : लड्डूमार होली के भी मान से जानी जाने वाली लड्डुओं की होली मथुरा के वृंदावन और श्री राधारानी के बरसाना में खेली जाती है। इस प्रकार के होली खेलने में रंगों और गुलालों की जगह लोग एक-दूसरे पर लड्डुओं को फेंकते हुए अनोखी होली खेलते हैं। अधिकतर ऐसी अनोखी होली उत्तर प्रदेश के ब्रज क्षेत्र और राजस्थान के कई हिस्सों में देखने को मिलती है। 3- लट्ठमार होली : उत्तर प्रदेश के मथुरा और वृंदावन में उस युग की परंपरा का पालन किया जाता है, जब भगवान श्रीकृष्ण अपने दोस्तों संग राधा और उसके दोस्तों के साथ होली खेलने के लिए बरसाना जाते थे। इनके द्वारा किए गए हंगामे से बौखलाकर गोपियां, कृष्ण और उनके साथियों को मारने के लिए बांस की छड़ें उठाती थीं। इसका उद्देश्य सिर्फ उन्हें अपने गांव से भाग जाने के लिए डराना होता था। आज भी नंदगांव के पुरुष, महिलाओं के साथ होली खेलने के लिए बरसाना आते हैं और उसी परंपरा के अंतर्गत लट्ठमार होली खेली जाती है। 4- भस्म वाली होली : उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में रंग और गुलाल के साथ श्मशान में चिता की भस्म से भी होली खेली जाती है। जलती चिताओं के बीच होली का ये अद्भुत और अनोखा रंग पूरे विश्वे में सिर्फ काशी में ही देखने को मिलता है। हर साल रंगभरी एकादशी के दिन महादेव के भक्तं ये होली काशी के महाश्मशान हरिश्चंरद्र और मणिकर्णिका घाट पर खेलते हैं। 5- बैठकी होली : उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले की बैठकी होली को 150 वर्ष से भी अधिक पुरानी बताई जाती है। यह होली पौष माह के पहले रविवार से शुरू होती है। अल्मोड़ा में देर रात तक कलाकार, रंगकर्मी, होली गायक एवं स्थानीय लोग बैठकी होली के रंग में रंगे रहते हैं। इस बैठकी होली की खासियत है कि यह शास्त्रीय रागों पर गायी जाती है और इसमें जमने वाली महफिल देखने लायक होती है। 6- खड़ी होली : उत्तराखंड के कुमाऊं जिले में मनाई जाने वाली खड़ी होली का अपना ही रंग है। सरोवर नगरी नैनीताल में मां नंदा देवी के मंदिर में होला-होली गायन किया जाता है। होली के गीतों को गाते हुए होल्यारे पहाड़ में अपने रंग में नजर आएंगे। यहां खड़े होकर बीच में ढोल और मंजीरे के साथ एक गोल घेरे में होली के गीत गाये जाते हैं। 7- महिलाओं की होली : उत्तखंड के कुमाऊं जिले में महिलाओं की होली का अपना ही आकर्षण है, जिसमें स्वांग भी शामिल है। बैठकी होली में जहां शास्त्रीय राग में होली के गीत सुनने को मिलते हैं तो वहीं, खड़ी होली में ढोल और मंजीरे के साथ गोल घेरे में अलग अंदाज में खड़ी होली गायी जाती है। अगर आपको उत्तराखंड की होली देखनी है तो इस बार आप अल्मोड़ा की महिलाओं की होली को देख सकते हैं।

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Holi Special

8- थारुओं की होली : उत्तराखंड में ऊधमसिंह नगर जिले के खटीमा में अपने आप में अनूठी थारू जनजाति की होली दो हिस्सों में खेली जाती है। थारू समाज के लोग यहां जिंदा होली और मरी होली खेलते हैं। जिंदा होली : जिंदा होली को खिचड़ी होली भी कहते हैं। थारू समाज की खड़ी होली में पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी घर-घर जाकर होली के गीत गाती हैं और साथ में नाचती हैं। यह होली होलिका दहन तक मनाई जाती है। मरी होली : थारू समाज द्वारा मरी होली होलिका हदन के बाद मनाई जाती है। मान्यता है जिन गांवों में आपदा या बीमारियों से मौत हो जाती थी, उस गांव के लोग होली का त्योहार होलिका दहन के बाद मनाना शुरू करते हैं। पूर्वजों के दौर से चली आ रही इस परंपरा को आज भी थारू समाज के लोग वैसे ही मनाते आ रहे हैं। 9- भारत-नेपाल सीमा की अनूठी होली : भारत-नेपाल सीमा से सटे बहराइच, बलरामपुर, श्रावस्ती, और लखीमपुर खीरी के दर्जनों गांवों में थारू जनजातियों की बहुलता है। इस समाज में होली बसंत पंचमी से ही शुरू होती है और होली के दिन तक चलती रहती है। थारुओं की मस्तीप होली दहन की पूर्व संध्या पर देखने वाली रहती है। थारू रंग-बिरंगे परिधान में अपने-अपने गांवों में परंपरागत तरीके से होली का त्योहार मनाते हैं। इनमें महिलाएं भी पीछे नहीं रहती है। गाते-बजाते थारू युवा गांव के तीन चक्कर लगाकर गांव के मुखिया के दरवाजे पर पहुंचकर पहले सरसों भूनकर बनाए गए विशेष लेप (बुकवा) मुखिया को लगाते हैं। मुखिया उन्हें खाने-पीने के सामान के साथ रुपये भी देते हैं। इसके बाद मस्त टोली गांव के दूसरे ओर चल पड़ती है और रास्ते में जो भी मिलता है, उसे दक्षिणा देता है। गुरु के दरबार में होली का समापन होता है। 10- माखन चोर होली : महाराष्ट्र राज्य में मनाई जाने वाली रंगपंचमी या माखन चोर होली भी अपने आप में बेहद खास और अनूठी है। फाल्गुन पूर्णिमा से पहले पांचवें दिन मनाया जाने वाला यह आनंद अंतहीन लगता है। भगवान श्रीकृष्ण अपने साथियों के साथ आस-पड़ोस से माखन चुराते थे और इनसे माखन सुरक्षित रखने के लिए महिलाएं इसे घरों के सबसे ऊंचे कक्षों में छिपा देती थीं। उस समय से चली आ रही इस परंपरा का पालन मुंबई और कृष्ण लीला के नाम पर महाराष्ट्र के कई शहरों में किया जाता है। इन दृश्योंर को जीवंत रखने के लिए हर साल पंडालों में बर्तन तोड़े जाते हैं। मटकों को बड़ी ऊंचाई पर लटकाया जाता है और फिर लड़के बड़ी संख्या में पिरामिड बनाते हैं। प्रशिक्षित लड़के उन पर चढ़ जाते हैं, जबकि महिलाएं उन्हें पानी और रंग छिड़ककर मटके तक पहुंचने से रोकती हैं। इस अंतहीन लड़ाई के नजारे बड़े शहरों में घिसी-पिटी जिंदगी में उत्साह और आनंद लाते हैं। 11- रॉयल होली : राजस्थान के जयपुर में सिटी पैलेस के राजघराने हर साल अपने कॉन्डोमिनियम में एक भव्य समारोह का आयोजन करते हैं। यह विदेशी पर्यटकों और स्थानीय लोगों के बीच होली का उत्साह बढ़ाता है। जयपुर में हर साल इस त्यौहार के दौरान भारी भीड़ उमड़ती है, क्योंकि यह वह समय होता है जब लोग शाही परिवार को रंगों से सराबोर करते हैं। होली का शानदार भव्य उत्सव जयपुर में महोत्सव आगंतुकों के दिलों में अमिट यादें उकेरता है। 12- बसंत उत्सव : श्री चैतन्य महाप्रभु की जयंती के रूप में चिह्नित दिन पर पश्चिम बंगाल में होली का विशेष महत्व है। विद्वानों और लेखकों की यह भूमि शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय में रंगों के त्योहार को गीत, नृत्य और भजनों के साथ मनाती है। कोलकाता जिसकी स्थापना महान रवींद्र नाथ टैगोर ने की थी। अगर आप उग्रता से डरते हैं तो पश्चिम बंगाल में होली मनाने के एक उदार और शालीन तरीके के लिए यह एक विकल्प हो सकता है। 13- होला मोहल्ला : सिख गुरु गोबिंद सिंह द्वारा चिन्हित होला मोहल्ला एक ऐसा त्यौहार है, जो सामान्य से बाहर है और होली के एक दिन बाद मनाया जाता है। पंजा‍ब (Punjab) के आनंदपुर साहिब में होला मोहल्ला सबसे बड़ा त्योहार है। सिख पुरुषों के साहस और वीरता को श्रद्धांजलि देते हुए इसे एक ऐसे आयोजन के रूप में मनाया जाता है, जिसमें शाम को रंगों से खेलने की सामान्य परंपरा के बाद मार्शल आर्ट, मॉक फाइट और स्टंट का प्रदर्शन किया जाता है। गुरुद्वारे में पूरे दिन लंगर (भोजन) के लिए एक विशाल व्यवस्था की जाती है। एक दिन की मौज-मस्ती और मस्ती का आयोजन चरण गंगा के पार एक कांटे पर खुले मैदान में किया जाता है। 14- बिहार की होली : बिहार राज्य में होली अच्छी फसल और भूमि की उर्वरता को चिन्हित करने के अलावा होलिका पर प्रह्लाद की पौराणिक कथा के महत्व के लिए मनाया जाता है। फाल्गुन पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर गाय के गोबर के उपले, ताजा फसल से अनाज और होलिका के पेड़ की लकड़ी डालकर अलाव जलाया जाता है। बिहार में होली को नए साल की शुरुआत के रूप में चिह्नित किया जाता है, इसलिए लोग अपने जीवन में सकारात्मकता और समृद्धि लाने के लिए अपने घरों को साफ करते हैं। रंग बिखेरने के अलावा अंदर लोग बिहार मिट्टी का उपयोग भी करते हैं। लोग इस त्योहार के दौरान मूड को मस्तालने के लिए नशीले भांग का सेवन करते हैं। वे गाते हैं, नाचते-हंसते हैं और त्योहार की सच्ची भावना का आनंद लेते हैं। 15- कामन पंडिगई : तमिलनाडु राज्य में होली का महत्व अलग है, क्योंकि यह माना जाता है कि यह इस शुभ दिन पर था कि उनके श्रद्धेय भगवान कामदेव (प्रेम के देवता) को भगवान शिव ने वापस जीवन में लाया था। रंग लगाने की सामान्य परंपरा के विपरीत यहां लोग इस विश्वास के साथ कामदेव को चंदन चढ़ाते हैं कि इससे उनका दर्द कम होगा। गीत गाए जाते हैं, जो कामदेव की पत्नी रति के दु:ख को दर्शाते हैं। 16- मंजुल कुली : केरल राज्य में होली को ‘मंजुल कुली’ के नाम से जाना जाता है। लोग यहां पहले दिन गोसरीपुरम थिरुमा के कोंकणी मंदिर जाते हैं, और रंगों को पूरी तरह से छोड़कर पानी व हल्दी से होली खेलते हैं। रंगों का त्योहार पारंपरिक लोक गीत गाकर मनाया जाता है, जो वास्तव में सुंदर और शांत हैं। होली खेलने का यह सूक्ष्म तरीका अपने आप में अनूठा है। 17- शिगमो : गोवा के पंजिम में ‘शिगमो’ के नाम से जानी जाने वाली होली को सड़कों पर एक विशाल जुलूस के साथ मनाया जाता है। इनमें नृत्य मंडलियों द्वारा प्रदर्शन और कलाकारों द्वारा लघु नाटकों में पौराणिक कथाओं का सांस्कृतिक चित्रण शामिल है। गोवा के लोग इस जीवंत उत्सव में आकर्षण जोड़ने के लिए अपनी नावों को पौराणिक विषयों से सजाते हैं। गोवा में हर त्यौहार कार्निवाल होता है। 18- योसांग : मणिपुर राज्य में होली ‘योसांग’ नाम से जानी जाती है। यह पांच दिवसीय उत्सव है और भगवान पाखंगबा को श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ शुरू होता है। सूरज ढलने के बाद लोग झोपड़ी जलाने के लिए इकट्ठा होते हैं और उसके बाद गांव के बच्चे चंदा लेने के लिए पड़ोस में जाते हैं। दूसरे और तीसरे दिन, स्थानीय बैंड मंदिरों में प्रदर्शन करते हैं, जबकि लड़कियां दान मांगती हैं। अंतिम दो दिन वे हैं, जब वे रंगों और पानी से खेलते हैं और लोगों के दिलों में रंगीन छाप छोड़ जाते हैं। 19- अंगारों की होली : राजस्थान के उदयपुर जिले के बलीचा नाम के एक गांव में अंगारों की होली मनाई जाती है। यह आदिवासी समुदाय का गांव हैं, जहां आदिवासी समाज होलिका दहन के दूसरे दिन सुबह ऐसी होली खेलते हैं। इस दौरान जलते हुए अंगारों पर दौड़ते हुए प्रदर्शन करके अपनी वीरता और साहस का परिचय देते हैं। आज भी होली के पावन अवसर पर अंगारों पर चलकर और नाच-गाना के साथ इस तरह की होली खेलते हैं। 20- पत्थरों वाली होली : राजस्थान के बाड़मेर और जैसलमेर में छोटे-छोटे पत्थरों से एक-दूसरे पर मारते हुए होली का पर्व मनाते हैं। होली के दिन कई टोली बनाकर संगीत और ढोल नगाड़ों के साथ एक जगह इकट्ठा होकर एक-दूसरे पर छोटे-छोटे कंकड़, पत्थर फेंकना शुरू कर देते हैं, जिससे कि अगला व्यक्ति बचने के लिए ढाल रूपी पगड़ी पहनकर या भागकर बचाव करते हैं और इसका भरपूर आनंद लेते हैं। 21- उपलों के राख की होली : राजस्थान के ही डूंगरपुर क्षेत्र में ईंधन के रूप में प्रयोग किये जाने वाले गोबर से बने उपले जिसे ‘कंडा’ भी कहते हैं को जलाकर, उसकी राख को एक-दूसरे पर डालते हुए होली का त्योहार मनाते हैं। इस दौरान रंगों की जगह राख का प्रयोग किया जाता है। देश विदेशकी खबरों से अपडेट रहने लिएचेतना मंचके साथ जुड़े रहें। देशदुनिया की लेटेस्ट खबरों से अपडेट रहने के लिए 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