हमारी इतिहास की किताबें वीरों और रणबांकुरों की गाथाओं से भरी पड़ी हैं। उनमें गुर्जर वीरों की गाथाएं रोंगटे खड़े कर देती हैं। उन्हीं किताबों के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में यह बात दर्ज है कि मराठा स्वराज की स्थापना छत्रपति शिवाजी महाराज के पराक्रम से हुई थी। उन्होंने महाराष्ट्र को वास्तव में एक महान राष्ट्र और सैकड़ों वीरों के बलिदान से बनाया था। हर वीर की रगों में महाराजा के प्रति वफादारी और स्वराज्य की तड़प झलकती थी। इन सैकड़ों रणबांकुरों की वीरता की साक्षी मिट्टी का कण-कण है। उन वीरों में एक अदम्य साहसी योद्धा थे प्रतापराव गुर्जर। स्वराज्य की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीरों में शुमार प्रतापराव गुर्जर की स्मृति के बिना महाराष्ट्र का इतिहास अधूरा है। 24 फरवरी उनके अदम्य साहस और बलिदान को याद करने का दिन है। देश के ऐसे वीर सपूत को शत-शत नमन।
Gurjar Veer
शिरवाडकर उर्फ कुसुमगराज द्वारा लिखित और लता मंगेशकर द्वारा स्वरबद्ध किया गया एक गीत सुनकर मराठों की वीरता का ज्वलंत इतिहास आंखों के सामने नुमाया हो जाता है। 24 फरवरी 1674 वह दिन था, जब जनरल प्रतापराव गुर्जर और छह सरदारों ने शौर्य का प्रदर्शन करते हुए अपने प्राणों की आहूति दे दी थी।
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प्रतापराव गुर्जर का जन्म उनके पैतृक गांव रायगढ़ जिले के मानगांव तालुका में तम्हाने उर्फ गोरेगांव में हुआ था। प्रतापराव गुर्जर का मूल नाम कदतोजी था। शिव राय की सेना में एक शिलेदार के रूप में काम करते हुए वह अपने पराक्रम और दृढ़ संकल्प के बल पर स्वराज्य के नेता बन गए। कदतोजी के पराक्रम को देखकर उन्हें ‘प्रतापर्व’ की उपाधि से विभूषित किया गया।
उमराणी के युद्ध में प्रतापराव गुर्जर से संरक्षण प्राप्त बहलोल खां ने स्वराज्य में एक बार फिर शोर मचाना शुरू कर दिया था। उसी दौरान महाराज का राज्याभिषेक समारोह निकट आ रहा था। महाराज ने प्रतापराव गुर्जर को इस सामग्री के साथ एक पत्र भेजा कि ‘बहलोल खान स्वराज्य वापस आ रहे हैं। उन्हें सूचना दी जाए कि वह हमें अपना चेहरा न दिखाएं।’
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पत्र के हाथ में आते ही प्रतापराव गुर्जर का खून खौलने लगा। उन्हें अपने प्राणों से भी प्यारा छत्रपति शिवाजी महाराज की आज्ञा का पालन करना था। एक दिन, जब वह अपने छह प्रमुखों के साथ टहलने जा रहे थे, तभी उन्होंने महसूस किया कि बहलोल खान पास में है। उस दिन महाशिवरात्रि थी। इसलिए सेना की प्रतीक्षा किए बिना प्रतापराव गुर्जर ने छह सरदारों के साथ बहलोल खान की ओर कूच कर दिया। इस समय उनके साथ सरदार विसाजी बल्लाल, दीपाजी राउतराव, विठ्ठल पिलाजी अत्रे, कृष्णाजी भास्कर, सिद्धि हिलाल, विठोजी थे। इन सात लोगों ने अपने युद्ध कौशल से बहलोल खान की सेना के छक्के छुड़ा दिए। लेकिन, नीयति को कुछ और ही मंजूर था। आखिर, परमवीर प्रतापराव गुर्जर अपने साथी सभी छह सरदारों के साथ वीरगति को प्राप्त हो गए। प्रतापराव गुर्जर बेशक आज हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन उनकी वीरगाथाएं आज भी हमारे भीतर जीवंत हैं और हमें प्रेरणा देती हैं।
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