Political News- अगर ममता बनर्जी भवानीपुर हारीं तो क्या होगा

नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में 30 सितंबर को तीन सीटों के लिए हुए उपचुनाव में आज ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) की किस्मत का फैसला हो जाएगा। बंगाल में हुए विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी नंदीग्राम से चुनाव लड़ी थीं जहां उन्हें भारतीय जनता पार्टी के सुवेंदु अधिकारी ने करारी शिकस्त दी थी। उसके बाद ममता बनर्जी ने भवानीपुर (Bhavanipur) से किस्मत आजमाने का फैसला किया था। जिसका परिणाम आज आ जाएगा। भवानीपुर के अलावा, मुर्शिदाबाद जिले की समसेरगंज सीट और जांगीपुर सीट के उपचुनाव के नतीजे भी आज ही घोषित कर दिए जाएंगे। जानकारी के अनुसार मतों की गिनती का काम शुरू हो चुका है। इस दौरान शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए भारी संख्या में पुलिस और अर्द्धसैनिक बल तैनात कर दिए गए हैं।
चुनावी अखाड़े में किस्मत आजमा रहीं राज्य की मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सुप्रीमो ममता बनर्जी (Mamta banarjee) के लिए यह उपचुनाव बेहद अहम है क्योंकि मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिए उन्हें यहां से हर हाल में जीतना होगा। टीएमसी के साथ राज्य में मुख्य विपक्षी भाजपा यहां से अपनी-अपनी जीत के दावे कर रही हैं। तृणमूल कांग्रेस ने दावा किया है कि ममता को यहां 50 हजार वोटों से जीत मिलेगी। उधर, भाजपा भी मैदान मारने का दावा कर रही है। भाजपा ने ममता के खिलाफ प्रियंका टिबरेवाल को मैदान में उतारा है। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि भवानीपुर में भाजपा बहुत अच्छी टक्कर देगी। उन्होंने पार्टी की जीत की उम्मीद जताई है।
भवानीपुर (Bhavanipur) हार के बाद ममता बनर्जी का क्या होगा? इसी बीच बंगाल के सियासी हलकों में यह चर्चा भी हो रही है कि अगर ममता बनर्जी भवानीपुर उपचुनाव हार जाती हैं तो क्या होगा? इस बात की भी बहुत अधिक संभावना है कि ममता बनर्जी (Mamta banarjee) उपचुनाव हारने वाली इतिहास की तीसरी मुख्यमंत्री बन सकती हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में चुनाव के बाद हुई हिंसा को ध्यान में रखते हुए, चीजें उनके पक्ष में नहीं दिख रही हैं। नियम के मुताबिक ममता बनर्जी को सरकार बनने के छह महीने के अंदर विधायक बनना होगा। संविधान के अनुच्छेद 164 के अनुसार, एक मंत्री जो लगातार छह महीने की अवधि के लिए राज्य के विधानमंडल का सदस्य नहीं है, उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री नहीं रह सकता है। ऐसे में अगर ममता उपचुनाव हार जाती हैं तो उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना होगा और टीएमसी को सत्ता में बने रहने के लिए विधायक दल का नया नेता चुनना होगा। अगर टीएमसी किसी और को विधायक दल का नेता नहीं चुनती है तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो सकता है।
क्या एक बार फिर बंगाल में दोहराया जाएगा इतिहास? 1970 में, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह उपचुनाव हार गए थे और बाद में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। इसके बाद 2009 में, झारखंड के पूर्व सीएम शिबू सोरेन भी उपचुनाव में हार गए थे। सोरेन की हार के परिणामस्वरूप राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ममता त्रिभुवन नारायण सिंह या शिबू सोरेन की तरह इतिहास दोहराएंगी, जो मुख्यमंत्री रहते हुए उपचुनाव चुनाव हार गए थे।
सुवेंदु अधिकारी से हार गई थीं ममता 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में, ममता बनर्जी (Mamta banarjee) नंदीग्राम सीट से भाजपा के सुवेंदु अधिकारी से हार गई थीं, जिसके परिणाम को कलकत्ता उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है। ममता बनर्जी ने अधिकारी के चुनाव को तीन आधारों पर शून्य घोषित करने की मांग की है- भ्रष्ट आचरण, धर्म के आधार पर वोट मांगना और बूथ पर कब्जा करना। उन्होंने दोबारा मतगणना की उनकी याचिका को खारिज करने के चुनाव आयोग के फैसले पर भी सवाल उठाया है।
भवानीपुर गुजराती बाहुल्य क्षेत्र : भवानीपुर में 70 प्रतिशत से अधिक गैर-बंगाली हैं और यहां गुजराती आबादी की बहुलता है, यही ममता बनर्जी के लिए चिंता की सबसे बड़ी बात है।
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राज्य में विधान परिषद का न होना भी बन सकता है ममता की राह का रोड़ा : यदि राज्य में विधान परिषद होता तो विधान परिषद के सदस्य के रूप में ममता को चुना जा सकता था। जैसे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ भी शपथ लेने के वक्त किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे। बाद में दोनों विधान परिषद के सदस्य बने। लेकिन पश्चिम बंगाल में विधान परिषद नहीं है जिसकी वजह से ममता की राह कठिन है। इसलिए उनके लिए भवानीपुर उपचुनाव जीतना बेहद जरूरी है। आजादी के बाद 5 जून 1952 को बंगाल में 51 सदस्यों वाली विधान परिषद का गठन किया गया था। बाद में 21 मार्च 1969 को इसे खत्म कर दिया गया था। ऐसे में ममता को मुख्यमंत्री बने रहने के लिए छह महीने के भीतर किसी सीट से विधानसभा चुनाव जीतना अनिवार्य है। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के साथ भी यही समस्या आई थी। चूंकि राज्य में विधानसभा चुनाव होने में एक साल बचा था इसलिए उपचुनाव की संभावना बहुत कम रह गई रही थी और राज्य में विधान परिषद नहीं होने के कारण यहां से भी उनके चुन कर आने का विकल्प नहीं था। लिहाजा उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। बता दें कि ममता बनर्जी (Mamta banarjee)के लिए टीएमसी पार्टी के विजयी उम्मीदवार शोभंदेब चट्टोपाध्याय ने इस सीट से इस्तीफा दे दिया था ताकि मुख्यमंत्री 30 सितंबर को चुनाव लड़ सकें। यह सीट 21 मई से खाली है।
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नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में 30 सितंबर को तीन सीटों के लिए हुए उपचुनाव में आज ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) की किस्मत का फैसला हो जाएगा। बंगाल में हुए विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी नंदीग्राम से चुनाव लड़ी थीं जहां उन्हें भारतीय जनता पार्टी के सुवेंदु अधिकारी ने करारी शिकस्त दी थी। उसके बाद ममता बनर्जी ने भवानीपुर (Bhavanipur) से किस्मत आजमाने का फैसला किया था। जिसका परिणाम आज आ जाएगा। भवानीपुर के अलावा, मुर्शिदाबाद जिले की समसेरगंज सीट और जांगीपुर सीट के उपचुनाव के नतीजे भी आज ही घोषित कर दिए जाएंगे। जानकारी के अनुसार मतों की गिनती का काम शुरू हो चुका है। इस दौरान शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए भारी संख्या में पुलिस और अर्द्धसैनिक बल तैनात कर दिए गए हैं।
चुनावी अखाड़े में किस्मत आजमा रहीं राज्य की मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सुप्रीमो ममता बनर्जी (Mamta banarjee) के लिए यह उपचुनाव बेहद अहम है क्योंकि मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिए उन्हें यहां से हर हाल में जीतना होगा। टीएमसी के साथ राज्य में मुख्य विपक्षी भाजपा यहां से अपनी-अपनी जीत के दावे कर रही हैं। तृणमूल कांग्रेस ने दावा किया है कि ममता को यहां 50 हजार वोटों से जीत मिलेगी। उधर, भाजपा भी मैदान मारने का दावा कर रही है। भाजपा ने ममता के खिलाफ प्रियंका टिबरेवाल को मैदान में उतारा है। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि भवानीपुर में भाजपा बहुत अच्छी टक्कर देगी। उन्होंने पार्टी की जीत की उम्मीद जताई है।
भवानीपुर (Bhavanipur) हार के बाद ममता बनर्जी का क्या होगा? इसी बीच बंगाल के सियासी हलकों में यह चर्चा भी हो रही है कि अगर ममता बनर्जी भवानीपुर उपचुनाव हार जाती हैं तो क्या होगा? इस बात की भी बहुत अधिक संभावना है कि ममता बनर्जी (Mamta banarjee) उपचुनाव हारने वाली इतिहास की तीसरी मुख्यमंत्री बन सकती हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में चुनाव के बाद हुई हिंसा को ध्यान में रखते हुए, चीजें उनके पक्ष में नहीं दिख रही हैं। नियम के मुताबिक ममता बनर्जी को सरकार बनने के छह महीने के अंदर विधायक बनना होगा। संविधान के अनुच्छेद 164 के अनुसार, एक मंत्री जो लगातार छह महीने की अवधि के लिए राज्य के विधानमंडल का सदस्य नहीं है, उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री नहीं रह सकता है। ऐसे में अगर ममता उपचुनाव हार जाती हैं तो उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना होगा और टीएमसी को सत्ता में बने रहने के लिए विधायक दल का नया नेता चुनना होगा। अगर टीएमसी किसी और को विधायक दल का नेता नहीं चुनती है तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो सकता है।
क्या एक बार फिर बंगाल में दोहराया जाएगा इतिहास? 1970 में, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह उपचुनाव हार गए थे और बाद में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। इसके बाद 2009 में, झारखंड के पूर्व सीएम शिबू सोरेन भी उपचुनाव में हार गए थे। सोरेन की हार के परिणामस्वरूप राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ममता त्रिभुवन नारायण सिंह या शिबू सोरेन की तरह इतिहास दोहराएंगी, जो मुख्यमंत्री रहते हुए उपचुनाव चुनाव हार गए थे।
सुवेंदु अधिकारी से हार गई थीं ममता 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में, ममता बनर्जी (Mamta banarjee) नंदीग्राम सीट से भाजपा के सुवेंदु अधिकारी से हार गई थीं, जिसके परिणाम को कलकत्ता उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है। ममता बनर्जी ने अधिकारी के चुनाव को तीन आधारों पर शून्य घोषित करने की मांग की है- भ्रष्ट आचरण, धर्म के आधार पर वोट मांगना और बूथ पर कब्जा करना। उन्होंने दोबारा मतगणना की उनकी याचिका को खारिज करने के चुनाव आयोग के फैसले पर भी सवाल उठाया है।
भवानीपुर गुजराती बाहुल्य क्षेत्र : भवानीपुर में 70 प्रतिशत से अधिक गैर-बंगाली हैं और यहां गुजराती आबादी की बहुलता है, यही ममता बनर्जी के लिए चिंता की सबसे बड़ी बात है।
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