By : Anuradha Audichya, 16 August, Gadar 2
Gadar : 1947 में हुए भारत और पाकिस्तान के बंटवारे में केवल सरहदों पर ही लकीरें नहीं खींची बल्कि कई अनमोल रिश्ते भी इसकी भेंट चढ़ गए। बंटवारे के कई सालों बाद तक भी कुछ लोगों की जिंदगी में ऐसी उथल-पुथल रही कि उन्होंने जीने की इच्छा ही छोड़ दी। ऐसी ही एक बेमिसाल प्रेम कहानी है 55 साल के रिटायर्ड फ़ौजी बूटा सिंह और 20 वर्ष की ज़ैनब की कहानी।
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इस प्रेम कहानी की शुरुआत तब हुई ज़ब कुछ दंगाई ज़ैनब को अपने साथ लेकर जा रहे थे और बूटा सिंह ने उन्हें कुछ पैसे देकर ज़ैनब को छुड़ाया। इसके बाद ज़ैनब बूटा सिंह के साथ ही हिंदुस्तान में रहने लगी और दोनों में काफी नजदीकियां भी आयीं। हिंदुस्तान में ही ज़ैनब ने दो बेटियों को भी जन्म दिया जिनके नाम उन्होंने तनवीर और दिलवीर रखे।
दिसंबर 1947 का वो दिन ज़ब बिखर गयी ज़ैनब और बूटा सिंह की जिंदगी
कहते हैं कि ज़ब मोहब्बत सच्ची हो तो अक्सर अधूरी रह जाया करती है। कुछ ऐसा ही मोड़ ज़ैनब और बूटा सिंह की प्रेम कहानी में भी आया। सब कुछ बेहतर चल रहा था कि दिसंबर 1947 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक Inter Dominient Treaty साइन की गयी। इस सन्धि के तहत उन सभी औरतों और लड़कियों को अपने मुल्क वापस लौटना था जिन्हें दंगाइयों के द्वारा अग़वा किया गया था।
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परिणामस्वरूप ज़ैनब को भी पाकिस्तान वापस जाने की यह शर्त पूरी करनी पड़ी। दोनों बेटियों में से एक को ज़ैनब अपने साथ पाकिस्तान (नूपूर) गांव ले गयी जहाँ उसका परिवार रहता था। बताते हैं कि ज़ैनब से उसकी इच्छा पूछे बिना ही उसे रवाना कर दिया गया था।
बूटा सिंह ने लांघी सरहद
अपने प्यार और परिवार को बचाने के लिए बूटा सिंह ने अपना धर्म तक परिवर्तित कर लिया और इस्लाम अपना कर वो पाकिस्तान पहुंचे। लेकिन यहाँ पर ज़ैनब की शादी किसी और से तय कर दी गयी थी। सारी आशाओं पर पानी फिरता देख बूटा सिंह ने कई मिन्नतें की लेकिन ज़ैनब के घर वालों ने उन्हें गाँव से बाहर कर दिया।
आखिरी इच्छा भी नहीं की गयी पूरी
पूरी तरह से टूट चुके बूटा सिंह ने अपनी बेटी का हाथ थामा और देश वापस आने के लिए चल दिए। शहादरा रेलवे स्टेशन पर पहुंच कर अचानक उन्होंने एक ट्रेन के आगे कूदकर अपनी जान दे दी। उनकी बेटी को तो कोई चोट नहीं आयी लेकिन बूटा सिंह की मौत हो गयी। ज़ब उनकी आखिरी चिट्ठी को पढ़ा गया तो उसमें लिखा था कि वे चाहते हैं कि उनकी लाश को ज़ैनब के गाँव में ही दफन कर दिया जाए। लेकिन ज़ैनब के परिवार वालों ने यह भी नहीं माना।
अंत में लाहौर के सबसे बड़े कब्रिस्तान मियानी साहिब में उन्हें दफन किया गया और लैला मजनू, रोमियो जूलियट के जैसे एक पन्ना ज़ैनब और बूटा सिंह की प्रेम कहानी के नाम से भी मोहब्बत की किताबों में हमेशा के लिए दर्ज हो गया।