Holi Special : जानिए कितने बजे होलिका दहन का है शुभ मुर्हूत, 8 पॉइंट्स में समझें पूजन कब और कैसे करें

Holika
Know at what time is the auspicious time for Holika Dahan, understand when and how to worship in 8 points
locationभारत
userचेतना मंच
calendar30 Nov 2025 06:24 PM
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लखनऊ। प्रेम, प्यार और रंगों का त्योहार होली आने वाला है। इसको लेकर तैयारियां जोरों-शोरों से की जा रही है। होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन लोग अपने गिले-शिकवे दूर कर एक दूसरे को गले से लगा लेते हैं। गुलाल, अबीर लगाते हैं। होली का त्योहार फागुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है। इस साल होली का त्यौहार 8 मार्च को मनाया जाएगा और इससे एक दिन पहले सात मार्च यानी मंगलवार को होलिका दहन होगा। बता दें कि फाल्गुन पूर्णिमा तिथि में प्रदोष काल में होलिका दहन होती है। ऐसे में इस साल होलिका दहन 7 को है।

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Holi Special

होलिका दहन 2023 मुहूर्त : 7 मार्च को होलिका दहन का मुहूर्त शाम को 6 बजकर 24 मिनट से रात 8 बजकर 51 मिनट तक है। इस दिन होलिका दहन का कुल समय 2 घंटे 27 मिनट तक है। इस समय में होलिका पूजा होगी और फिर होलिका में आग लगाई जाएगी। होलिका दहन के दिन 7 मार्च को भद्रा सुबह 5 बजकर 15 मिनट तक है। ऐसे में प्रदोष काल में होलिका दहन के समय भद्रा का साया नहीं रहेगा। होलिका दहन के अगले दिन होली का त्यौहार मनाया जाएगा। ऐसे में इस साल होली का त्योहार 8 मार्च दिन बुधवार को मनाया जाएगा। 8 मार्च को चैत्र कृष्ण प्रतिपदा तिथि शाम 7 बजकर 42 मिनट तक है। इस विधि से करें होलिका पूजन : 1- सात मार्च की शाम शुभ मुहूर्त में पूजा की थाली में ऊपर बताई गई चीजें रखें और साथ में एक पानी से भरा लोटा भी लें। होली पूजन के स्थान पर पहुंचकर पहले स्वयं पर और बाद पूजन सामग्री पर जल छिड़कें। 2- इसके बाद हाथ में पानी, चावल, फूल एवं कुछ दक्षिणा (पैसे) लेकर नीचे लिखा मंत्र बोलें- ऊं विष्णु: विष्णु: विष्णु: श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया अद्य दिवसे नल नाम संवत्सरे संवत् 2079 फाल्गुन मासे शुभे शुक्लपक्षे पूर्णिमायां शुभ तिथि मंगलवासरे–गौत्र (अपने गौत्र का नाम लें) उत्पन्ना–(अपना नाम बोलें) मम इह जन्मनि जन्मान्तरे वा सर्वपापक्षयपूर्वक दीर्घायुविपुलधनधान्यं शत्रुपराजय मम् दैहिक दैविक भौतिक त्रिविध ताप निवृत्यर्थं सदभीष्टसिद्धयर्थे प्रह्लादनृसिंहहोली इत्यादीनां पूजनमहं करिष्यामि।

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3- इसके बाद हाथ में फूल व चावल लेकर भगवान गणेश का ध्यान करें और ये मंत्र बोलें-ऊं गं गणपतये नम: आह्वानार्र्थे पंचोपचार गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।। अब ये फूल और चावल श्रीगणेश को समर्पित करते हुए पूजा स्थान पर रख दें। 4- इसके बाद भगवान नृसिंह का ध्यान करते हुए चावल व फूल हाथ में लेकर ये मंत्र बोलें- ऊं नृसिंहाय नम: आह्वानार्थे पंचोपचार गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।। फूल और चावल पूजा स्थान पर चढ़ा दें। 5- इसके बाद भक्त प्रह्लाद को याद करते हुए हाथ में चावल व फूल लें और ये मंत्र बोलकर इन्हें भी पूजा स्थान पर चढ़ा दें- ऊं प्रह्लादाय नम: आह्वानार्थे पंचोपचार गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि। 6- अब नीचे लिखा मंत्र बोलते हुए होली के सामने दोनों हाथ जोड़कर खड़े हो जाएं तथा अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए निवेदन करें- असृक्पाभयसंत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै: अतस्त्वां पूजयिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव:। 7- अंत में चावल, फूल, साबूत मूंग, साबूत हल्दी, नारियल एवं बड़कुले (भरभोलिए) होली के समीप छोड़ें। कच्चा सूत उस पर बांधें और फिर हाथ जोड़ते हुए होली की तीन, पांच या सात परिक्रमा करें। परिक्रमा के बाद लोटे में भरा पानी वहीं चढ़ा दें। 8- इस तरह होलिका की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और हर काम में सफलता मिलने के योग भी बनते हैं। होली का महत्व : आचार्य राजेन्द्र तिवारी ने बताया कि हमारे देश में होलिका दहन की परंपरा प्राचीनकाल से चली आ रही है। इससे एक पौराणिक कथा जुड़ी है। कहते हैं कि एक समय हिरणकश्यप नाम का असुर था। वो चाहता था कि सब लोग उसे भगवान मानें, लेकिन उसका पुत्र भक्त प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। जो हिरणकश्यप को पसंद नहीं था। असुर की बहन होलिका को वरदान था कि वो अग्नि में नहीं जल सकती। हिरणकश्यप ने अपने पुत्र को मारने की इच्छा से होलिका को प्रह्लाद के साथ अग्निकुंड में बैठने को कहा लेकिन प्रह्लाद की भक्ति में इतना असर था कि उस अग्नि में होलिका जल गई और प्रह्लाद बच गया। तभी से हर साल होली से पहले होलिका दहन किया जाता है। देश विदेशकी खबरों से अपडेट रहने लिएचेतना मंचके साथ जुड़े रहें। देशदुनिया की लेटेस्ट खबरों से अपडेट रहने के लिए हमेंफेसबुकपर लाइक करें याट्विटरपर फॉलो करें।
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लखनऊ। प्रेम, प्यार और रंगों का त्योहार होली आने वाला है। इसको लेकर तैयारियां जोरों-शोरों से की जा रही है। होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन लोग अपने गिले-शिकवे दूर कर एक दूसरे को गले से लगा लेते हैं। गुलाल, अबीर लगाते हैं। होली का त्योहार फागुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है। इस साल होली का त्यौहार 8 मार्च को मनाया जाएगा और इससे एक दिन पहले सात मार्च यानी मंगलवार को होलिका दहन होगा। बता दें कि फाल्गुन पूर्णिमा तिथि में प्रदोष काल में होलिका दहन होती है। ऐसे में इस साल होलिका दहन 7 को है।

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होलिका दहन 2023 मुहूर्त : 7 मार्च को होलिका दहन का मुहूर्त शाम को 6 बजकर 24 मिनट से रात 8 बजकर 51 मिनट तक है। इस दिन होलिका दहन का कुल समय 2 घंटे 27 मिनट तक है। इस समय में होलिका पूजा होगी और फिर होलिका में आग लगाई जाएगी। होलिका दहन के दिन 7 मार्च को भद्रा सुबह 5 बजकर 15 मिनट तक है। ऐसे में प्रदोष काल में होलिका दहन के समय भद्रा का साया नहीं रहेगा। होलिका दहन के अगले दिन होली का त्यौहार मनाया जाएगा। ऐसे में इस साल होली का त्योहार 8 मार्च दिन बुधवार को मनाया जाएगा। 8 मार्च को चैत्र कृष्ण प्रतिपदा तिथि शाम 7 बजकर 42 मिनट तक है। इस विधि से करें होलिका पूजन : 1- सात मार्च की शाम शुभ मुहूर्त में पूजा की थाली में ऊपर बताई गई चीजें रखें और साथ में एक पानी से भरा लोटा भी लें। होली पूजन के स्थान पर पहुंचकर पहले स्वयं पर और बाद पूजन सामग्री पर जल छिड़कें। 2- इसके बाद हाथ में पानी, चावल, फूल एवं कुछ दक्षिणा (पैसे) लेकर नीचे लिखा मंत्र बोलें- ऊं विष्णु: विष्णु: विष्णु: श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया अद्य दिवसे नल नाम संवत्सरे संवत् 2079 फाल्गुन मासे शुभे शुक्लपक्षे पूर्णिमायां शुभ तिथि मंगलवासरे–गौत्र (अपने गौत्र का नाम लें) उत्पन्ना–(अपना नाम बोलें) मम इह जन्मनि जन्मान्तरे वा सर्वपापक्षयपूर्वक दीर्घायुविपुलधनधान्यं शत्रुपराजय मम् दैहिक दैविक भौतिक त्रिविध ताप निवृत्यर्थं सदभीष्टसिद्धयर्थे प्रह्लादनृसिंहहोली इत्यादीनां पूजनमहं करिष्यामि।

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3- इसके बाद हाथ में फूल व चावल लेकर भगवान गणेश का ध्यान करें और ये मंत्र बोलें-ऊं गं गणपतये नम: आह्वानार्र्थे पंचोपचार गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।। अब ये फूल और चावल श्रीगणेश को समर्पित करते हुए पूजा स्थान पर रख दें। 4- इसके बाद भगवान नृसिंह का ध्यान करते हुए चावल व फूल हाथ में लेकर ये मंत्र बोलें- ऊं नृसिंहाय नम: आह्वानार्थे पंचोपचार गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।। फूल और चावल पूजा स्थान पर चढ़ा दें। 5- इसके बाद भक्त प्रह्लाद को याद करते हुए हाथ में चावल व फूल लें और ये मंत्र बोलकर इन्हें भी पूजा स्थान पर चढ़ा दें- ऊं प्रह्लादाय नम: आह्वानार्थे पंचोपचार गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि। 6- अब नीचे लिखा मंत्र बोलते हुए होली के सामने दोनों हाथ जोड़कर खड़े हो जाएं तथा अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए निवेदन करें- असृक्पाभयसंत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै: अतस्त्वां पूजयिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव:। 7- अंत में चावल, फूल, साबूत मूंग, साबूत हल्दी, नारियल एवं बड़कुले (भरभोलिए) होली के समीप छोड़ें। कच्चा सूत उस पर बांधें और फिर हाथ जोड़ते हुए होली की तीन, पांच या सात परिक्रमा करें। परिक्रमा के बाद लोटे में भरा पानी वहीं चढ़ा दें। 8- इस तरह होलिका की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और हर काम में सफलता मिलने के योग भी बनते हैं। होली का महत्व : आचार्य राजेन्द्र तिवारी ने बताया कि हमारे देश में होलिका दहन की परंपरा प्राचीनकाल से चली आ रही है। इससे एक पौराणिक कथा जुड़ी है। कहते हैं कि एक समय हिरणकश्यप नाम का असुर था। वो चाहता था कि सब लोग उसे भगवान मानें, लेकिन उसका पुत्र भक्त प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। जो हिरणकश्यप को पसंद नहीं था। असुर की बहन होलिका को वरदान था कि वो अग्नि में नहीं जल सकती। हिरणकश्यप ने अपने पुत्र को मारने की इच्छा से होलिका को प्रह्लाद के साथ अग्निकुंड में बैठने को कहा लेकिन प्रह्लाद की भक्ति में इतना असर था कि उस अग्नि में होलिका जल गई और प्रह्लाद बच गया। तभी से हर साल होली से पहले होलिका दहन किया जाता है। देश विदेशकी खबरों से अपडेट रहने लिएचेतना मंचके साथ जुड़े रहें। देशदुनिया की लेटेस्ट खबरों से अपडेट रहने के लिए हमेंफेसबुकपर लाइक करें याट्विटरपर फॉलो करें।
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Holi Special : भगोरिया हाट,जहां लड़का-लड़की भाग कर करते हैं शादी

Bhagoria
Folk Festival Bhagoriya Haat A Festival
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 04:34 AM
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 होली का ....  मादक उल्लास जब चरम पर था....शिव विवाह के साथ ही मन को मथते मन्मथ ने अनंग होकर भी अपने पंचशर चला ही दिये। प्रकृति के माध्यम से टेसू के फूल जंगलों के मध्य पत्र हीन वृक्ष पर जब खिले तो उसके साथ सेमल भी फूल उठा।  अब काम देव जागृत थे और नवसृजन के पथ पर बढ़ने के लिये उन्मुक्त रति के साथ विचरण करते। ऐसे में घने जंगलों के बीच निवास करते आदिवासियों पर उनका प्रभाव कैसे नहीं पड़ता।

Holi Special

भगोरिया होली का ही एक रूप है, जिसे वह महोत्सव के रूप में मनाते हैं। मध्य प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र के मालवा-निमाड़ अंचल के खरगौन धार, झाबुआ और बड़वानी ऐसे ही क्षेत्र हैं, जहां पर भील-भिलाला जाति इसे उत्सव के रूप में मनाते हुये सांस्कृतिक परम्पराओं का निर्वहन‌ कर अनुष्ठान के रूप में अपने देवी देवताओं का मनाते हुये पूजन कर उनकी सामूहिक रूप से गीत-संगीत और नृत्य के द्वारा उनको प्रसन्न कर अपना आभार प्रकट करते हैं।

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लोक पर्व :

यह एक ऐसा लोक पर्व है, जो जीवन को जीवंतता प्रदान कर जीवन जीने के सही अर्थ को समझाता है यह जीवन में प्रेम के महत्व को दर्शाता प्रेम का उत्सव है। प्रेम है तो जीने की उमंग है। उसके प्रवाह में तरंगित होता मन अपने आप ही गीत-संगीत और नृत्य के उल्लास में प्रवाहित हो जाता है। मादर की थाप पर तान भरती बांसुरी की लय पर गूंजता हृदय का गान किसे उद्वेलित नहीं करेगा। ऐसे ही आनन्द के क्षणों में अपने भावी जीवन साथी का चुनाव कर उनके प्रति अपने प्रेम को प्रदर्शित करते नवयुवक और युवतियां एक दूसरे के साथ बिना किसी रोकटोक के उन्मुक्त हो समूह में नृत्य करते हैं और अंत में सूर्य ढलने के पहले ही मौका पाते ही एक दूसरे के साथ भाग जाते हैं। कहीं छिपने के लिये और तब उनके परिवार वाले उन्हें ढूंढ़कर उनकी पसंद को अपनी स्वीकृति प्रदान कर उनका विवाह करते हैं। इस विवाह में लड़के वालों को दण्ड स्वरूप लड़की वालों को सामूहिक भोज देना पड़ता है। तभी वह अपनी अनुमति देते हैं। युवक-युवती द्वारा अपना जीवन साथी स्वयं चुनकर भाग जाने के कारण ही इसका नाम भगोरिया पड़ा

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कथा :

एक कथा के अनुसार भगोर के राजा ने इस क्षेत्र पर विजय प्राप्त की थी। बाद में उसने अपने सैनिकों को इस शर्त के साथ कि होली के पूर्व के हाट मेले में वह अपनी पसंद की युवती को पान के रूप में प्रेम प्रस्ताव दे सकते हैं। उस युवती के द्वारा प्रस्ताव को स्वीकार कर लेने पर ही वह उसके साथ भागर कहीं छिप सकते हैं। जब तक कि उनके घरवाले उन्हें खोजकर उनका विवाह नहीं करते। भगोरिया आदिवासी अंचल की ऐसी सामाजिक व्यवस्था है, जिसमें समाज के मूल्य जुड़े हैं।

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कहने को यह हाट बाजार हैं, पर आम हाट बाजारों से अलग। इन हाट बाजारों में कल की चिंता किये वगैर उन्मुक्त होकर आज को जीते हैं। आदिवासी पूरी साज सज्जा के साथ सज संवर कर पूरे परिवार के साथ उन्मुक्त होकर उपस्थित होता है। इन्द्रधनुष के सात रंग भी इनके चटक प्राकृतिक रंगों के सामने सभी रंग फीके ‌जीवन को जीवंतता के साथ जीना कोई इनसे सीखे।

भगोरिया केवल एक महोत्सव ही नहीं, वरन उनकी सांस्कृतिक संस्कृति के संवर्धन का साधन है। मादक महुये के नशे में मदमस्त इनका अपना रूप देखने लायक होता है। उस समय यह स्वयं अपने मन के राजा होते हैं, जो निडर है, किसी से नहीं डरता।

-  उषा सक्सेना

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