गले लगी, रोई और अब... फांसी के साए में मां-बेटी की अधूरी कहानी

Nimisha Priya : केरल की नर्स निमिषा प्रिया, जिन्हें यमन में अपने व्यवसायिक साझेदार की हत्या के आरोप में मृत्युदंड दिया गया था, की फांसी पर फिलहाल रोक लगा दी गई है। यह राहत ऐसे समय आई है जब उनका परिवार—विशेष रूप से उनकी मां प्रेमा कुमारी—पिछले कई वर्षों से इस सजा को टालने और बेटी को भारत लाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है। प्रेमा कुमारी अप्रैल 2024 में विशेष अनुमति लेकर यमन पहुंचीं और अब तक केवल दो बार अपनी बेटी से मिल सकी हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि "जब तक बेटी साथ नहीं होगी, मैं यमन से नहीं लौटूंगी।
कुछ घंटे पहले टली फांसी
निमिषा को 16 जुलाई को फांसी दी जानी थी, लेकिन अंतिम समय में न्यायिक और कूटनीतिक प्रयासों से इसे टाल दिया गया। उनकी सजा को लेकर भारत में अदालत से लेकर सामाजिक मंचों तक हलचल तेज़ है। सामाजिक कार्यकर्ता सैमुअल जेरोम, जो पिछले सात वर्षों से इस मामले में सक्रिय हैं, के प्रयासों से वर्ष 2020 में ‘सेव निमिषा प्रिया एक्शन काउंसिल’ का गठन हुआ। इसी के तहत उनके जीवन की रक्षा हेतु धन जुटाने और ब्लड मनी (दिय्या) की प्रक्रिया चलाई जा रही है।
12 वर्षों बाद जब मां-बेटी की आंखें मिलीं
BBC तमिल को दिए साक्षात्कार में प्रेमा कुमारी ने अपनी बेटी से पहली मुलाक़ात का ज़िक्र करते हुए बताया - वह तीन लोगों के साथ आई थी, सबने एक जैसे कपड़े पहन रखे थे। जैसे ही मेरी नज़र उस पर पड़ी, वह दौड़कर मुझसे लिपट गई और फूट-फूटकर रोने लगी। यह दृश्य मैं जीवन भर नहीं भूल सकती।” इस मुलाक़ात से पहले, जेल प्रशासन के माध्यम से निमिषा ने एक संक्षिप्त संदेश भेजा था, जिसमें उन्होंने परिवार का हालचाल पूछा, लेकिन फांसी के निर्णय का कोई उल्लेख नहीं किया।
दिल्ली उच्च न्यायालय में इस मामले की सुनवाई के दौरान वकील सुभाष चंद्रन के.आर. ने केंद्र सरकार से यह आग्रह किया कि वह यमन के साथ कूटनीतिक चैनलों के ज़रिए हस्तक्षेप करे। इस पर अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने अदालत को सूचित किया कि यमन पर नियंत्रण हूती विद्रोहियों का है, जिन्हें भारत मान्यता नहीं देता। ऐसे में भारत सरकार की क्षमता सीमित है और वह पर्दे के पीछे से प्रयास कर रही है ताकि स्थिति और न बिगड़े।
बता दें कि यमन में शरिया कानून लागू है, जिसके तहत पीड़ित परिवार ब्लड मनी (दिय्या) स्वीकार कर अपराधी को क्षमा कर सकता है। निमिषा को बचाने के लिए अब तक भारतीय दूतावास के माध्यम से 40,000 डॉलर दिए जा चुके हैं। वहीं, महदी के परिजनों को 10 लाख डॉलर (करीब ₹8.6 करोड़) की पेशकश की गई है, ताकि वह क्षमा देने पर विचार कर सकें।
कैसे शुरू हुई ये त्रासदी ?
निमिषा प्रिया की यात्रा शुरू होती है वर्ष 2008 में, जब वह केरल के पलक्कड़ से यमन नौकरी करने जाती हैं। वहां एक सरकारी अस्पताल में उन्हें नर्स की नौकरी मिलती है। 2011 में वह शादी के लिए भारत लौटती हैं और फिर पति के साथ यमन लौट आती हैं। 2012 में बेटी के जन्म के बाद आर्थिक संकट बढ़ता है। 2014 में पति भारत लौट जाते हैं और निमिषा अकेले यमन में रहकर काम करती हैं। इसी दौरान वह स्थानीय नागरिक तलाल अब्दो महदी के संपर्क में आती हैं और साथ मिलकर एक क्लिनिक खोलती हैं।
निमिषा के वकील के अनुसार, साझेदारी के कुछ समय बाद महदी ने उनके साथ शारीरिक शोषण शुरू कर दिया और व्यवसाय के दस्तावेज़ों में हेरफेर कर क्लिनिक को अपना घोषित कर दिया। उनके पासपोर्ट पर भी कब्ज़ा कर लिया ताकि वह देश छोड़कर न जा सकें। जब निमिषा ने सना पुलिस से शिकायत की, तो महदी ने एक चाल चलते हुए उनकी शादी की तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ कर उन्हें अपनी पत्नी बताकर जेल भिजवा दिया।
छह दिन की कैद के बाद वह रिहा हुईं, लेकिन उत्पीड़न का सिलसिला जारी रहा। निमिषा ने पासपोर्ट वापस लेने के लिए महदी को बेहोशी की दवा दी, लेकिन वह नशे का आदी था, जिससे दवा असर नहीं कर पाई। दूसरी बार अधिक मात्रा देने पर उसकी मौत हो गई। घबराकर निमिषा ने शव के टुकड़े किए और उन्हें एक टैंक में फेंक दिया। कुछ सप्ताह बाद महदी के शव के अवशेष मिले और निमिषा को सऊदी-यमन सीमा से गिरफ्तार कर लिया गया। 2020 में उन्हें यमन की अदालत ने फांसी की सजा सुनाई। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट और फिर राष्ट्रपति से गुहार की गई, लेकिन 2023 और 2024 में दोनों स्तरों पर याचिका खारिज कर दी गई। Nimisha Priya
Nimisha Priya : केरल की नर्स निमिषा प्रिया, जिन्हें यमन में अपने व्यवसायिक साझेदार की हत्या के आरोप में मृत्युदंड दिया गया था, की फांसी पर फिलहाल रोक लगा दी गई है। यह राहत ऐसे समय आई है जब उनका परिवार—विशेष रूप से उनकी मां प्रेमा कुमारी—पिछले कई वर्षों से इस सजा को टालने और बेटी को भारत लाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है। प्रेमा कुमारी अप्रैल 2024 में विशेष अनुमति लेकर यमन पहुंचीं और अब तक केवल दो बार अपनी बेटी से मिल सकी हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि "जब तक बेटी साथ नहीं होगी, मैं यमन से नहीं लौटूंगी।
कुछ घंटे पहले टली फांसी
निमिषा को 16 जुलाई को फांसी दी जानी थी, लेकिन अंतिम समय में न्यायिक और कूटनीतिक प्रयासों से इसे टाल दिया गया। उनकी सजा को लेकर भारत में अदालत से लेकर सामाजिक मंचों तक हलचल तेज़ है। सामाजिक कार्यकर्ता सैमुअल जेरोम, जो पिछले सात वर्षों से इस मामले में सक्रिय हैं, के प्रयासों से वर्ष 2020 में ‘सेव निमिषा प्रिया एक्शन काउंसिल’ का गठन हुआ। इसी के तहत उनके जीवन की रक्षा हेतु धन जुटाने और ब्लड मनी (दिय्या) की प्रक्रिया चलाई जा रही है।
12 वर्षों बाद जब मां-बेटी की आंखें मिलीं
BBC तमिल को दिए साक्षात्कार में प्रेमा कुमारी ने अपनी बेटी से पहली मुलाक़ात का ज़िक्र करते हुए बताया - वह तीन लोगों के साथ आई थी, सबने एक जैसे कपड़े पहन रखे थे। जैसे ही मेरी नज़र उस पर पड़ी, वह दौड़कर मुझसे लिपट गई और फूट-फूटकर रोने लगी। यह दृश्य मैं जीवन भर नहीं भूल सकती।” इस मुलाक़ात से पहले, जेल प्रशासन के माध्यम से निमिषा ने एक संक्षिप्त संदेश भेजा था, जिसमें उन्होंने परिवार का हालचाल पूछा, लेकिन फांसी के निर्णय का कोई उल्लेख नहीं किया।
दिल्ली उच्च न्यायालय में इस मामले की सुनवाई के दौरान वकील सुभाष चंद्रन के.आर. ने केंद्र सरकार से यह आग्रह किया कि वह यमन के साथ कूटनीतिक चैनलों के ज़रिए हस्तक्षेप करे। इस पर अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने अदालत को सूचित किया कि यमन पर नियंत्रण हूती विद्रोहियों का है, जिन्हें भारत मान्यता नहीं देता। ऐसे में भारत सरकार की क्षमता सीमित है और वह पर्दे के पीछे से प्रयास कर रही है ताकि स्थिति और न बिगड़े।
बता दें कि यमन में शरिया कानून लागू है, जिसके तहत पीड़ित परिवार ब्लड मनी (दिय्या) स्वीकार कर अपराधी को क्षमा कर सकता है। निमिषा को बचाने के लिए अब तक भारतीय दूतावास के माध्यम से 40,000 डॉलर दिए जा चुके हैं। वहीं, महदी के परिजनों को 10 लाख डॉलर (करीब ₹8.6 करोड़) की पेशकश की गई है, ताकि वह क्षमा देने पर विचार कर सकें।
कैसे शुरू हुई ये त्रासदी ?
निमिषा प्रिया की यात्रा शुरू होती है वर्ष 2008 में, जब वह केरल के पलक्कड़ से यमन नौकरी करने जाती हैं। वहां एक सरकारी अस्पताल में उन्हें नर्स की नौकरी मिलती है। 2011 में वह शादी के लिए भारत लौटती हैं और फिर पति के साथ यमन लौट आती हैं। 2012 में बेटी के जन्म के बाद आर्थिक संकट बढ़ता है। 2014 में पति भारत लौट जाते हैं और निमिषा अकेले यमन में रहकर काम करती हैं। इसी दौरान वह स्थानीय नागरिक तलाल अब्दो महदी के संपर्क में आती हैं और साथ मिलकर एक क्लिनिक खोलती हैं।
निमिषा के वकील के अनुसार, साझेदारी के कुछ समय बाद महदी ने उनके साथ शारीरिक शोषण शुरू कर दिया और व्यवसाय के दस्तावेज़ों में हेरफेर कर क्लिनिक को अपना घोषित कर दिया। उनके पासपोर्ट पर भी कब्ज़ा कर लिया ताकि वह देश छोड़कर न जा सकें। जब निमिषा ने सना पुलिस से शिकायत की, तो महदी ने एक चाल चलते हुए उनकी शादी की तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ कर उन्हें अपनी पत्नी बताकर जेल भिजवा दिया।
छह दिन की कैद के बाद वह रिहा हुईं, लेकिन उत्पीड़न का सिलसिला जारी रहा। निमिषा ने पासपोर्ट वापस लेने के लिए महदी को बेहोशी की दवा दी, लेकिन वह नशे का आदी था, जिससे दवा असर नहीं कर पाई। दूसरी बार अधिक मात्रा देने पर उसकी मौत हो गई। घबराकर निमिषा ने शव के टुकड़े किए और उन्हें एक टैंक में फेंक दिया। कुछ सप्ताह बाद महदी के शव के अवशेष मिले और निमिषा को सऊदी-यमन सीमा से गिरफ्तार कर लिया गया। 2020 में उन्हें यमन की अदालत ने फांसी की सजा सुनाई। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट और फिर राष्ट्रपति से गुहार की गई, लेकिन 2023 और 2024 में दोनों स्तरों पर याचिका खारिज कर दी गई। Nimisha Priya







