Baisakhi 2022 : इस साल कब बैसाखी पर्व, जानें इसे कैसे और क्यों मनाते हैं?

Baisakhi
Baisakhi 2022
locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 12:24 PM
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Baisakhi 2022 : बैसाखी (Baisakhi 2022) सौर मास का प्रथम दिन होता है। इस दिन गंगा स्नान करना बहुत ही फलदायी माना जाता है। बैसाखी (Baisakhi 2022) के दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। इसलिए इसे मेष संक्रांति भी कहते हैं। ये त्योहार इस साल 14 अप्रैल 2022 को मनाया जाएगा। हिंदुओं, सिखों और बौद्ध धर्म के लोगों के लिए ये त्योहार खास होता है। मुख्य तौर पर पंजाब और हरियाणा में बैसाखी पर्व मनाया जाता है। इसकी शुरुआत भी भारत के पंजाब प्रांत से हुई थी। इसे पर्व को रबी फसलों की कटाई से जोड़कर देखा जाता है।

Baisakhi 2022

बैसाखी के दिन गेहूं, तिलहन, गन्ने आदि की फसल की कटाई शुरू होती है। इस दिन पंजाब का नृत्य भांगड़ा और गिद्दा किया जाता है। शाम के समय लोग आग के पास इकट्ठा होकर नई फसल की खुशियाँ मनाते हैं। इस दिन सुबह 4 बजे गुरु ग्रंथ साहिब को कक्ष से बाहर लाया जाता है और दूध और जल से प्रतीकात्मक स्नान करवाने के बाद तख्त पर बैठाया जाता है। फिर किताब को पढ़ा जाता है और सिख धर्म के अनुयायी ध्यानपूर्वक गुरू की वाणी को सुनते हैं। इस दिन जगह-जगह लंगर का आयोजन किया जाता है। बैसाखी पर दिनभर गुरु गोविंद सिंह और पंच प्यारों के सम्मान में कीर्तन गाए जाते हैं।

बैसाखी पर्व के दिन किसान प्रचुर मात्रा में उपजी फसल के लिए भगवान का धन्यवाद करते हैं और अपनी समृद्धि की प्रार्थना करते हैं। सिख धर्म में श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा बनाए गए खालसा पंथ की शुरुआत भी इसी दिन से ही हुई थी। इस दिन सिख धर्म के लोग गुरुद्वारों को सजाते हैं और जुलूस निकालते हैं।

भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में बैसाखी को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जैसे, उत्तराखंड में इसे बिखोती के रूप में जाना जाता है। केरल में इसे विशु कहा जाता है और असम में इसे “बोहाग बिहू” कहा जाता है। बंगाल में इसे पाहेला बेशाख के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा तमिल में इसे पुत्थांडु और बिहार में जुर्शीतल के नाम से जाना जाता है।

बैसाखी मनाने की परंपरा ऐसा कहा जाता है कि गुरु तेग बहादुर (सिखों के नवें गुरु) औरंगज़ेब से युद्ध करते हुए शहीद हो गये थे। तेग बहादुर उस समय मुगलों द्वारा हिन्दुओं पर किए जाने अत्याचार के ख़िलाफ़ लड़ रहे थे। तब उनकी मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र गुरु गोबिन्द सिंह अगले गुरु हुए। सन् 1650 में पंजाब मुगल आतताइयों, अत्याचारियों और भ्रष्टाचारियों का दंश झेल रहा था, यहाँ समाज में लोगों के अधिकारों का हनन खुलेआम हो रहा था और न ही लोगों को कहीं न्याय की उम्मीद नज़र आ रही थी। ऐसी परिस्थितियों में गुरू गोबिन्द सिंह ने लोगों में अत्याचार के ख़िलाफ़ लड़ने, उनमें साहस भरने का बीडा़ उड़ाया। उन्होंने आनंदपुर में सिखों का संगठन बनाने के लिए लोगों का आवाह्न किया। और इसी सभा में उन्होंने तलवार उठाकर लोगों से पूछा कि वे कौन बहादुर योद्धा हैं जो बुराई के ख़िलाफ शहीद हो जाने के लिए तैयार हैं। तब उस सभा में से पाँच योद्धा निकलकर सामने आए और यही पंच प्यारे कहलाए जो खालसा पंथ का नाम दिया गया।

पाँच ‘क’ पाँच लोगों का समूह (पंच प्यारे) पाँच ‘क’ के भी प्रतीक माने जाते हैं जिनमें कंघा, केश, कड़ा, कच्छा और कृपाण हैं।

पंच प्यारे का नाम 1. भाई दया सिंह 2. भाई धर्म सिंह 3. भाई हिम्मत सिंह 4. भाई मुखाम सिंह 5. भाई साहेब सिंह

बैसाखी मनाने का ढंग

बैसाखी मुख्य रूप से या तो किसी गुरुद्वारे या फिर किसी खुले क्षेत्र में मनाई जाती है, जिसमें लोग भांगड़ा और गिद्दा डांस करते हैं। नीचे इस पर्व को मनाने के बारे में बताया गया है:

1. लोग तड़के सुबह उठकर गुरूद्वारे में जाकर प्रार्थना करते हैं। 2. गुरुद्वारे में गुरुग्रंथ साहिब जी के स्थान को जल और दूध से शुद्ध किया जाता है। 3. उसके बाद पवित्र किताब को ताज के साथ उसके स्थान पर रखा जाता है। 4. फिर किताब को पढ़ा जाता है और अनुयायी ध्यानपूर्वक गुरू की वाणी सुनते हैं। 5. इस दिन श्रद्धालुयों के लिए विशेष प्रकार का अमृत तैयार किया जाता है जो बाद में बाँटा जाता है। 6. परंपरा के अनुसार, अनुयायी एक पंक्ति में लगकर अमृत को पाँच बार ग्रहण करते हैं। 7. अपराह्न में अरदास के बाद प्रसाद को गुरू को चढ़ाकर अनुयायियों में वितरित की जाती है। 8. अंत में लोग लंगर चखते हैं।

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Baisakhi 2022 : बैसाखी (Baisakhi 2022) सौर मास का प्रथम दिन होता है। इस दिन गंगा स्नान करना बहुत ही फलदायी माना जाता है। बैसाखी (Baisakhi 2022) के दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। इसलिए इसे मेष संक्रांति भी कहते हैं। ये त्योहार इस साल 14 अप्रैल 2022 को मनाया जाएगा। हिंदुओं, सिखों और बौद्ध धर्म के लोगों के लिए ये त्योहार खास होता है। मुख्य तौर पर पंजाब और हरियाणा में बैसाखी पर्व मनाया जाता है। इसकी शुरुआत भी भारत के पंजाब प्रांत से हुई थी। इसे पर्व को रबी फसलों की कटाई से जोड़कर देखा जाता है।

Baisakhi 2022

बैसाखी के दिन गेहूं, तिलहन, गन्ने आदि की फसल की कटाई शुरू होती है। इस दिन पंजाब का नृत्य भांगड़ा और गिद्दा किया जाता है। शाम के समय लोग आग के पास इकट्ठा होकर नई फसल की खुशियाँ मनाते हैं। इस दिन सुबह 4 बजे गुरु ग्रंथ साहिब को कक्ष से बाहर लाया जाता है और दूध और जल से प्रतीकात्मक स्नान करवाने के बाद तख्त पर बैठाया जाता है। फिर किताब को पढ़ा जाता है और सिख धर्म के अनुयायी ध्यानपूर्वक गुरू की वाणी को सुनते हैं। इस दिन जगह-जगह लंगर का आयोजन किया जाता है। बैसाखी पर दिनभर गुरु गोविंद सिंह और पंच प्यारों के सम्मान में कीर्तन गाए जाते हैं।

बैसाखी पर्व के दिन किसान प्रचुर मात्रा में उपजी फसल के लिए भगवान का धन्यवाद करते हैं और अपनी समृद्धि की प्रार्थना करते हैं। सिख धर्म में श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा बनाए गए खालसा पंथ की शुरुआत भी इसी दिन से ही हुई थी। इस दिन सिख धर्म के लोग गुरुद्वारों को सजाते हैं और जुलूस निकालते हैं।

भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में बैसाखी को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जैसे, उत्तराखंड में इसे बिखोती के रूप में जाना जाता है। केरल में इसे विशु कहा जाता है और असम में इसे “बोहाग बिहू” कहा जाता है। बंगाल में इसे पाहेला बेशाख के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा तमिल में इसे पुत्थांडु और बिहार में जुर्शीतल के नाम से जाना जाता है।

बैसाखी मनाने की परंपरा ऐसा कहा जाता है कि गुरु तेग बहादुर (सिखों के नवें गुरु) औरंगज़ेब से युद्ध करते हुए शहीद हो गये थे। तेग बहादुर उस समय मुगलों द्वारा हिन्दुओं पर किए जाने अत्याचार के ख़िलाफ़ लड़ रहे थे। तब उनकी मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र गुरु गोबिन्द सिंह अगले गुरु हुए। सन् 1650 में पंजाब मुगल आतताइयों, अत्याचारियों और भ्रष्टाचारियों का दंश झेल रहा था, यहाँ समाज में लोगों के अधिकारों का हनन खुलेआम हो रहा था और न ही लोगों को कहीं न्याय की उम्मीद नज़र आ रही थी। ऐसी परिस्थितियों में गुरू गोबिन्द सिंह ने लोगों में अत्याचार के ख़िलाफ़ लड़ने, उनमें साहस भरने का बीडा़ उड़ाया। उन्होंने आनंदपुर में सिखों का संगठन बनाने के लिए लोगों का आवाह्न किया। और इसी सभा में उन्होंने तलवार उठाकर लोगों से पूछा कि वे कौन बहादुर योद्धा हैं जो बुराई के ख़िलाफ शहीद हो जाने के लिए तैयार हैं। तब उस सभा में से पाँच योद्धा निकलकर सामने आए और यही पंच प्यारे कहलाए जो खालसा पंथ का नाम दिया गया।

पाँच ‘क’ पाँच लोगों का समूह (पंच प्यारे) पाँच ‘क’ के भी प्रतीक माने जाते हैं जिनमें कंघा, केश, कड़ा, कच्छा और कृपाण हैं।

पंच प्यारे का नाम 1. भाई दया सिंह 2. भाई धर्म सिंह 3. भाई हिम्मत सिंह 4. भाई मुखाम सिंह 5. भाई साहेब सिंह

बैसाखी मनाने का ढंग

बैसाखी मुख्य रूप से या तो किसी गुरुद्वारे या फिर किसी खुले क्षेत्र में मनाई जाती है, जिसमें लोग भांगड़ा और गिद्दा डांस करते हैं। नीचे इस पर्व को मनाने के बारे में बताया गया है:

1. लोग तड़के सुबह उठकर गुरूद्वारे में जाकर प्रार्थना करते हैं। 2. गुरुद्वारे में गुरुग्रंथ साहिब जी के स्थान को जल और दूध से शुद्ध किया जाता है। 3. उसके बाद पवित्र किताब को ताज के साथ उसके स्थान पर रखा जाता है। 4. फिर किताब को पढ़ा जाता है और अनुयायी ध्यानपूर्वक गुरू की वाणी सुनते हैं। 5. इस दिन श्रद्धालुयों के लिए विशेष प्रकार का अमृत तैयार किया जाता है जो बाद में बाँटा जाता है। 6. परंपरा के अनुसार, अनुयायी एक पंक्ति में लगकर अमृत को पाँच बार ग्रहण करते हैं। 7. अपराह्न में अरदास के बाद प्रसाद को गुरू को चढ़ाकर अनुयायियों में वितरित की जाती है। 8. अंत में लोग लंगर चखते हैं।

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hanuman janmotsav 2022 कब है श्री हनुमान जन्मोत्सव, जानें शुभ मुहूर्त, महत्व और सब कुछ

Hanuman ji
hanuman janmotsav 2022
locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 01:34 PM
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hanuman janmotsav 2022 : वैदिक पंचांग के अनुसार श्री राम भक्त भगवान हनुमान जी का जन्मोत्सव (hanuman janmotsav) इस बार चैत्र पूर्णिमा 16 अप्रैल, 2022 को पड़ रही है। खास बात ये है कि इस दिन शनिवार भी पड़ रहा है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार शनिवार का दिन भगवान हनुमान जी की पूजा के लिए शुभ माना गया है। हर साल ये पावन पर्व चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन आता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान हनुमान जी का जन्म हुआ था। कहते हैं कि इनकी पूजा से सभी कष्ट दूर होने के साथ शनि पीड़ा से भी मुक्ति मिलती है। आइए जानते हैं हनुमान जी की पूजा का शुभ मुहूर्त, जन्मकथा और महत्व…

hanuman janmotsav 2022

ज्योतिष पंचांग के अनुसार, इस साल चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि 16 अप्रैल दिन शनिवार को 02 बजकर 25 मिनट पर शुरु हो रही है। इसके साथ ही पूर्णिमा तिथि का समापन उसी दिन देर रात 12 बजकर 24 मिनट पर हो रहा है। वहीं सूर्योदय के समय पूर्णिमा तिथि 16 अप्रैल को प्राप्त हो रही है, ऐसे में हनुमान जन्मोत्सव 16 अप्रैल को मनाया जाएगा। इस दिन ही व्रत रखा जाएगा और हनुमान जी का जन्म उत्सव मनाया जाएगा।

इन शुभ योगों में मनाया जाएगा हनुमान जन्मोत्सव पंचांग के अनुसार इस बार की हनुमान जन्मोत्सव रवि योग, हस्त एवं चित्रा नक्षत्र में मनाया जाएगा। आपको आपको बता दें कि 16 अप्रैल को हस्त नक्षत्र सुबह 08:40 बजे तक है, उसके बाद से चित्रा नक्षत्र आरंभ होगा। साथ ही इस दिन रवि योग प्रात: 05:55 बजे से शुरु हो रहा है और इसका समापन 08:40 बजे हो रहा है।

हनुमान जन्मोत्सव का महत्व धार्मिक मान्यता है कि हनुमान जन्मोत्सव के अवसर पर विधि विधान से बजरंगबली की पूजा अर्चना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है, लेकिन ध्यान रहे हनुमान जी की पूजा करते समय राम दरबार का पूजन अवश्य करें। क्योंकि माना जाता है कि राम जी की पूजा के बिना हनुमान जी की पूजा अधूरी रहती है और पूजा का फल नहीं मिलता है।