देवउठनी एकादशी कब है, जाने शुभ मुहूर्त,पूजा विधि और पारण का समय

पंचांग के अनुसार, साल में कुल 24 एकादशी तिथियां पड़ती हैं। इन्हीं में से एक है देव उठनी एकादशी

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Dev Uthani Ekadashi 2023
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 04:29 AM
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Dev Uthani Ekadashi 2023 हमारे सनातन धर्म मे एकादशी का बहुत महत्त्व है । पंचांग के अनुसार, साल में कुल 24 एकादशी तिथियां पड़ती हैं। इन्हीं में से एक है देव उठनी एकादशी। धार्मिक ग्रंथों में यह एकादशी बहुत महत्व की मानी गई है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा पाठ का विधान है । इन दिन भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति के लिए भक्त व्रत भी करतें है। देवउठनी एकादशी को प्रबोधनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस बार देव उठनी एकादशी 23 नवंबर को मनायी जायेगीं ।

कब होती है देवउठनी एकादशी:

दीवाली के ग्यारहवें दिन पड़ने वाली एकादशी को देवउठनी एकादशी कहतें है । इस दिन से सभी मांगलिक कार्य शुरु हो जातें है । देश भर मे शादियों के सीजन की शुरुआत हो जाती है । धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन समस्त सृष्टि के संचालक भगवान विष्णु और समस्त देव गण चार महीने के बाद जागते हैं और इसे ग्यारस या देवउठनी एकादशी कहतें है । मान्यता है कि देवउठनी एकादशी का व्रत रखने से जातक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है और मृत्यु के बाद स्वर्ग की प्राप्ति होती है।देवउठनी एकादशी के अगले दिन भगवान शालीग्राम और माता तुलसी का भी विवाह कराया जाता है। इस दिन पूजा के समय व्रती को देवउठनी एकादशी व्रत कथा सुनने से पुण्य का फल कई गुना बढ़ जाता है। देवोत्थान एकादशी से पूर्णिमा तक भगवान शालिग्राम एवं तुलसी माता का विवाहोत्सव का पर्व मनाया जाता है।

व्रत और पूजा विधि:

इस शुभ दिन पर साधक व्रत रखते हैं और बड़ी श्रद्धा के साथ भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। कार्तिक का पूरा  महीना भगवान विष्णु को समर्पित होता है । • इस दिन प्रातः काल स्नान करने के बाद उसके बाद उगते हुए सूर्य देवता को अर्घ्य देना चाहिए। स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिये । •घर के आंगन मे भगवान विष्णु के पैरों की आकृति बनानी चाहिये । चौकी पर भगवान विष्णु की फोटो स्थापित करे। •चंदन ,हल्दी कुमकुम से तिलक लगाएं । घी का दीपक जलाये,प्रसाद चढ़ाएं पुष्प अर्पित करे। •प्रसाद मे तुलसी दल जरुर चढ़ाएं । तुलसी के पेड़ के साथ आवले की भी पूजा करे। •श्री हरी विष्णु की प्रतिमा के समक्ष शंख और घंटियां बजाकर उनके जागने का आह्वान करें। •भगवान हरि को लड्डू और गन्ना, सिंघाड़ा जैसे मौसमी फल अर्पित करें.। •व्रत कथा पढ़े भोग लगाकर आरती करें और प्रसाद वितरण करे।

देवउठनी एकादशी शुभ मुहूर्त:

हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार यह एकादशी 22 नंबर की रात से 11 बज कर 3 मिनट से शुरु होकर दूसरे दिन यानी की 23 नवंबर को रात्रि 9 बज कर 1 मिनट पर खत्म होगी। देवउठनी एकादशी की शुरुआत 23 नवंबर दिन गुरुवार को होगी।व्रत का पारण 24 नवंबर की सुबह 6 बजे से लेकर 8 बजकर 13 मिनट तक चलेगा। Dev Uthani Ekadashi 2023 व्रत के लिये इस दिन सिद्धि योग ब्रह्म मुहूर्त से लेकर सुबह 11 बजकर 55 मिनट तक है। वहीं, रवि योग सुबह 6 बजकर 50 मिनट से 5 बजकर 16 मिनट तक रहेगा। इसके अलावा, सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण पूरे दिन के लिए होगा। ऐसे में पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 7 बजकर 41 मिनट से 8 बजकर 52 मिनट तक का है। इस शुभ मुहूर्त मे पूजा करने से विशेष लाभ होगा

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पंचांग के अनुसार, साल में कुल 24 एकादशी तिथियां पड़ती हैं। इन्हीं में से एक है देव उठनी एकादशी

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Dev Uthani Ekadashi 2023
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Dev Uthani Ekadashi 2023 हमारे सनातन धर्म मे एकादशी का बहुत महत्त्व है । पंचांग के अनुसार, साल में कुल 24 एकादशी तिथियां पड़ती हैं। इन्हीं में से एक है देव उठनी एकादशी। धार्मिक ग्रंथों में यह एकादशी बहुत महत्व की मानी गई है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा पाठ का विधान है । इन दिन भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति के लिए भक्त व्रत भी करतें है। देवउठनी एकादशी को प्रबोधनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस बार देव उठनी एकादशी 23 नवंबर को मनायी जायेगीं ।

कब होती है देवउठनी एकादशी:

दीवाली के ग्यारहवें दिन पड़ने वाली एकादशी को देवउठनी एकादशी कहतें है । इस दिन से सभी मांगलिक कार्य शुरु हो जातें है । देश भर मे शादियों के सीजन की शुरुआत हो जाती है । धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन समस्त सृष्टि के संचालक भगवान विष्णु और समस्त देव गण चार महीने के बाद जागते हैं और इसे ग्यारस या देवउठनी एकादशी कहतें है । मान्यता है कि देवउठनी एकादशी का व्रत रखने से जातक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है और मृत्यु के बाद स्वर्ग की प्राप्ति होती है।देवउठनी एकादशी के अगले दिन भगवान शालीग्राम और माता तुलसी का भी विवाह कराया जाता है। इस दिन पूजा के समय व्रती को देवउठनी एकादशी व्रत कथा सुनने से पुण्य का फल कई गुना बढ़ जाता है। देवोत्थान एकादशी से पूर्णिमा तक भगवान शालिग्राम एवं तुलसी माता का विवाहोत्सव का पर्व मनाया जाता है।

व्रत और पूजा विधि:

इस शुभ दिन पर साधक व्रत रखते हैं और बड़ी श्रद्धा के साथ भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। कार्तिक का पूरा  महीना भगवान विष्णु को समर्पित होता है । • इस दिन प्रातः काल स्नान करने के बाद उसके बाद उगते हुए सूर्य देवता को अर्घ्य देना चाहिए। स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिये । •घर के आंगन मे भगवान विष्णु के पैरों की आकृति बनानी चाहिये । चौकी पर भगवान विष्णु की फोटो स्थापित करे। •चंदन ,हल्दी कुमकुम से तिलक लगाएं । घी का दीपक जलाये,प्रसाद चढ़ाएं पुष्प अर्पित करे। •प्रसाद मे तुलसी दल जरुर चढ़ाएं । तुलसी के पेड़ के साथ आवले की भी पूजा करे। •श्री हरी विष्णु की प्रतिमा के समक्ष शंख और घंटियां बजाकर उनके जागने का आह्वान करें। •भगवान हरि को लड्डू और गन्ना, सिंघाड़ा जैसे मौसमी फल अर्पित करें.। •व्रत कथा पढ़े भोग लगाकर आरती करें और प्रसाद वितरण करे।

देवउठनी एकादशी शुभ मुहूर्त:

हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार यह एकादशी 22 नंबर की रात से 11 बज कर 3 मिनट से शुरु होकर दूसरे दिन यानी की 23 नवंबर को रात्रि 9 बज कर 1 मिनट पर खत्म होगी। देवउठनी एकादशी की शुरुआत 23 नवंबर दिन गुरुवार को होगी।व्रत का पारण 24 नवंबर की सुबह 6 बजे से लेकर 8 बजकर 13 मिनट तक चलेगा। Dev Uthani Ekadashi 2023 व्रत के लिये इस दिन सिद्धि योग ब्रह्म मुहूर्त से लेकर सुबह 11 बजकर 55 मिनट तक है। वहीं, रवि योग सुबह 6 बजकर 50 मिनट से 5 बजकर 16 मिनट तक रहेगा। इसके अलावा, सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण पूरे दिन के लिए होगा। ऐसे में पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 7 बजकर 41 मिनट से 8 बजकर 52 मिनट तक का है। इस शुभ मुहूर्त मे पूजा करने से विशेष लाभ होगा

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क्या आधुनिक युग में दिया जा सकता है श्राप ? मिलेगा कैसा फल

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Shrap ka Mahtav
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userचेतना मंच
calendar30 Nov 2025 05:12 PM
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Shrap ka Mahtav : आपने रामायण और महाभारत आदि पौराणिक ग्रंथों में श्राप ​दिए जाने और उसके फलिभूत होने के बारे में तो बहुत पढ़ा होगा। रामायण में श्रवण कुमार के पिता ने दशरथ को श्राप दिया था, जिस कारण दशरथ मृत्यु के समय पुत्र वियोग में तड़पे थे। महाभारत में भगवान परशुराम ने कर्ण को श्राप दिया था, जिस कारण कर्ण युद्धभूमि में अपनी सभी शक्तियों को भूल गए थे। लेकिन सवाल यह है कि क्या कलियुग यानि कि वर्तमान समय में श्राप दिया जा सकता है और वर्तमान में उसका क्या फल भुगतना पड़ सकता है।

Shrap ka Mahtav

कलियुग में श्राप दिए जाने को लेकर हिन्दुओं के प्रसिद्ध ग्रंथ विष्णु पुराण में विस्तार से बताया गया है। विष्णु पुराण के बारे में जानकारी देते हुए महामंडलेश्वर संत कमल किशोर कहते हैं कि चार कालखंड हैं। सतयुग, त्रेतायुग, द्वारयुग और कलियुग। सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग बीत चुके हैं और वर्तमान में कलियुग चल रहा है। कलियुग को लेकर विष्णु पुराण में काफी उल्लेख मिलता है।

संत कमल किशोर बताते हैं कि कलियुग में जैसे जैसे समय गुजरेगा, वैसे वैसे ही मानव अधिक पापी होता चला जाएगा। इसलिए कलियुग में किसी को भी श्राप देना अनुचित है क्योंकि कलियुग में कोई भी मनुष्य पूर्ण‌तया: श्रेष्ठ नहीं है। सभी मनुष्यों ने कभी ना कभी मन, ‌वचन, कर्म से किसी ना किसी को चोट पहुंचाई है।

शास्त्रों के अनुसार, झूठ बोलना भी पाप की श्रेणी में आता है। कलियुग में मनुष्य के कर्महीन होने के कारण उनके द्वारा कही गई बातें सच नहीं होती हैं। कर्महीन होने के कारण मनुष्य के तपोबल में कमी आई है, जिसके कारण कलियुग में किसी पर भी श्राप का असर नहीं होता है।

कलियुग में बढ़ रहा पाप

पौराणिक शास्त्रों के अनुसार कलियुग का प्रारंभ आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व माना जाता है और इसकी अवधि कई लाख वर्ष है। ग्रंथों के अनुसार, पहले ऋषि-महात्मा के पास अपार शक्तियां होती थीं, जिनका वे दुरूपयोग नहीं करते थे, इसलिए उनके द्वारा दिया गया श्राप का असर भी होता था, लेकिन कलियुग में पाप अपने चरम पर है, जिसके कारण श्राप का कोई असर नहीं होता है।

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