ISRO’s Explosion : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपने भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों को अधिक कुशल और शक्तिशाली बनाने के लिए सेमी-क्रायोजेनिक प्रोपल्शन सिस्टम के विकास की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। इसरो के लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स सेंटर द्वारा विकसित किया जा रहा यह नया इंजन देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकता है।
सेमी-क्रायोजेनिक इंजन : क्या है खास?
इसरो ने बताया कि 2,000 (किलो न्यूटन) क्षमता वाला सेमी-क्रायोजेनिक इंजन वर्तमान कोर लिक्विड स्टेज की जगह लेगा और भविष्य के लॉन्च वाहनों के बूस्टर स्टेज को भी शक्ति देगा। यह इंजन लिक्विड आॅक्सीजन और मिट्टी के तेल (केरोसिन) का इस्तेमाल करता है, जो इसे अधिक कुशल और सुरक्षित बनाता है।
सेमी-क्रायोजेनिक प्रोपल्शन के प्रमुख लाभ
पेलोड क्षमता में वृद्धि : इस इंजन की मदद से भारत के प्रक्षेपण यान पहले की तुलना में अधिक भार वहन कर सकेंगे, जिससे बड़े और भारी उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजना आसान होगा।
अधिक दक्षता : लिक्विड हाइड्रोजन की तुलना में केरोसिन अधिक घना होता है, जिससे कम मात्रा में अधिक ऊर्जा प्राप्त होती है, और इंजन की कार्यक्षमता बढ़ती है।
गैर-विषाक्त और सुरक्षित ईंधन : मौजूदा हाइड्रोजन-आॅक्सीजन इंजन के विपरीत, इसमें इस्तेमाल किया जाने वाला ईंधन कम ज्वलनशील और आसान हैंडलिंग वाला है।
नए पीढ़ी के लॉन्च व्हीकल्स के लिए उपयुक्त : यह इंजन भविष्य के गगनयान, चंद्रयान, मंगलयान और गहरे अंतरिक्ष अभियानों के लिए अधिक उपयुक्त होगा।
अंतरिक्ष अभियानों में क्या बदलाव आएंगे?
पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान के लिए उपयोग : सेमी-क्रायोजेनिक इंजन का उपयोग भारत के भविष्य के रियूजेबल लॉन्च व्हीकल में भी किया जा सकता है, जिससे लॉन्चिंग की लागत में भारी कमी आएगी।
मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशनों के लिए अनुकूल : यह प्रौद्योगिकी गगनयान मिशन के लिए भी सहायक होगी, क्योंकि इसमें सुरक्षित और स्थिर प्रणोदन प्रणाली की जरूरत होती है।
गहरे अंतरिक्ष अन्वेषण की नई संभावनाएं : अधिक शक्तिशाली इंजन के साथ, भारत चंद्रमा, मंगल और अन्य ग्रहों के लिए भारी पेलोड मिशन भेज सकेगा।
भविष्य की दिशा में बढ़ता कदम
इसरो जल्द ही एससी120 और एससी 2000 इंजन के विभिन्न परीक्षणों को अंजाम देगा। यदि ये परीक्षण सफल होते हैं, तो यह भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि होगी। इससे भारत की लॉन्च क्षमता और स्वदेशी तकनीक को मजबूती मिलेगी, जिससे देश एक वैश्विक अंतरिक्ष महाशक्ति बनने की दिशा में एक और कदम आगे बढ़ाएगा।
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