अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) को सर्व सिद्ध मुहूर्त भी माना जाता है, क्योंकि इस दिन पर कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य बिना शुभ मुहूर्त देखे किया जा सकता है। इसके साथ ही इस दिन पर सोने-चांदी के साथ-साथ नई चीजों की खरीदारी करना भी शुभ माना जाता है। ऐसा करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और साधक पर अपनी दया दृष्टि बनाए रखती हैं।
Akshaya Tritiya :
अक्षय तृतीया का दिन भगवान विष्णु और धन की देवी मां लक्ष्मी को समर्पित होता है। इस दिन खरीदारी करने का विशेष महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि जो भी इस शुभ दिन पर खरीदारी करते हैं, उनके धन में वृद्धि होती है और साथ ही घर में धन-धान्य हमेशा बना रहता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस दिन दान किए बिना खरीददारी शुभ नहीं मानी जाती है।
ऐसा माना जाता है कि अक्षय तृतीया पर अपनी क्षमता के अनुसार दान जरूर करना चाहिए। ऐसा करने से कभी न खत्म होने वाला पुण्य प्राप्त होता है और साथ ही जीवन में अच्छे बदलाव देखने को मिलते हैं। इसलिए अक्षय तृतीया पर कुछ भी खरीदने से पहले दान जरूर करें। अक्षय तृतीया पर जरूरतमंदों की मदद करना बेहद शुभ माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन गरीबों को पानी, छाता, घड़ा, गुड़, सत्तू, चप्पल और खाट आदि चीजों का दान करने से आर्थिक तंगी दूर हो जाती हैं। साथ ही कर्ज से छुटकारा मिलता है ।
लोक कथाएँ
अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) की अनेक व्रत कथाएँ प्रसिद्घ हैं। ऐसी ही एक कथा के अनुसार स्कंद पुराण और भविष्य पुराण में उल्लेख है कि वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को रेणुका के गर्भ से भगवान विष्णु ने परशुराम रूप में जन्म लिया। कोंकण और चिप्लून के परशुराम मंदिरों में इस तिथि को परशुराम जयन्ती बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। दक्षिण भारत में परशुराम जयन्ती को विशेष महत्व दिया जाता है। परशुराम जयन्ती होने के कारण इस तिथि में भगवान परशुराम के आविर्भाव की कथा भी सुनी जाती है। इस दिन परशुराम जी की पूजा करके उन्हें अर्घ्य देने का बड़ा माहात्म्य माना गया है। सौभाग्यवती स्त्रियाँ और क्वारी कन्याएँ इस दिन गौरी-पूजा करके मिठाई, फल और भीगे हुए चने बाँटती हैं, गौरी-पार्वती की पूजा करके धातु या मिट्टी के कलश में जल, फल, फूल, तिल, अन्न आदि लेकर दान करती हैं। मान्यता है कि इसी दिन जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय भृगुवंशी परशुराम का जन्म हुआ था। एक कथा के अनुसार परशुराम की माता और विश्वामित्र की माता के पूजन के उपरान्त प्रसाद देते समय ऋषि ने प्रसाद परिवर्तित कर दे दिया था। जिसके प्रभाव से परशुराम ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे और क्षत्रिय पुत्र होने पर भी विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाए। उल्लेख है कि सीता स्वयंवर के समय परशुराम जी अपना धनुष बाण श्री राम को समर्पित कर संन्यासी का जीवन बिताने अन्यत्र चले गए। अपने साथ एक परशु रखते थे तभी उनका नाम परशुराम पड़ा।
एक अन्य कथा के अनुसार प्राचीनकाल में एक धर्मदास नामक वैश्य था। उसका देव और ब्राह्मणों के प्रति बहुत श्रद्धा थी। इस व्रत के माहात्म्य को सुनने के पश्चात उसने इस पर्व के आने पर गंगा में स्नान करके विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की, व्रत के दिन स्वर्ण, वस्त्र तथा दिव्य वस्तुएँ ब्राह्मणों को दान में दी। अनेक रोगों से ग्रस्त तथा वृद्ध होने पर भी उसने उपवास करके धर्म-कर्म और दान पुण्य किया। यही वैश्य दूसरे जन्म में कुशावती का राजा बना। कहते हैं कि अक्षय तृतीया के दिन किए गए दान व पूजन के कारण वह बहुत धनी प्रतापी बना। वह इतना धनी और प्रतापी राजा था कि त्रिदेव तक उसकी सभा में अक्षय तृतीया के दिन ब्राह्मण का वेष धारण करके उसके महायज्ञ में सम्मिलित होते थे। अपनी श्रद्धा और भक्ति का उसे कभी घमण्ड नहीं हुआ और महान वैभवशाली होने पर भी वह धर्म मार्ग से विचलित नहीं हुआ। माना जाता है कि यही राजा आगे चलकर राजा चंद्रगुप्त के रूप में जन्मा। Akshaya Tritiya
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