Hindi News भगवान तथा देवी-देवताओं के मंदिर हमेशा से आस्था का केन्द्र रहे हैं। इन मंदिरों में कुछ ऐसे भी मंदिर हैं जो किसी महापुरूष अथवा संत की समाधी पर बने हैं। ऐसा ही एक मंदिर है “मंगलगिरी” का मंदिर। बाबा मंगलगिरी की समाधी पर बने “मंगलगिरी मंदिर” के दर्शन मात्र से ही भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। आज हम आपको “मंगलगिरी मंदिर” की पूरी जानकारी दे रहे हैं।
कहां है मंगलगिरी का मंदिर
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भारत के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के गढ़ी नौआबाद गांव में मंगलगिरी का मंदिर है। भारत की राजधानी दिल्ली से लगभग 125 किमी दूर यूपी के मुजफ्फरनगर जिले में स्थित है गढ़ी नौआबाद गांव। गढ़ी नौआबाद गांव मुजफ्फरनगर जिले की बुढ़ाना तहसील का गांव है। इसी गांव के दक्षिण पूर्वी छोर पर स्थित है “मंगलगिरी मंदिर” गढ़ी नौआबाद समेत आसपास के ग्रामीणों की मान्यता है कि “मंगलगिरी मंदिर” के दर्शन मात्र से ही भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
मंगलगिरी का इतिहास
गढ़ी नौआबाद के ग्रामीण बताते हैं कि लगभग 150 वर्ष पूर्व गांव के पास स्थित एक विशाल बाग में एक साधु महाराज आए थे। इन साधु महाराज के साथ एक बछड़ा (बैल)भी था। इन साधु महाराज का नाम मंगलदास था। साधु महाराज रात-दिन जंगल में तपस्या में लीन रहते थे। गांव के लोग जो भी भिक्षा के रूप में उन्हें प्रदान कर देते थे वे उसी को ग्रहण कर लेते थे। मंगलदास इतने बड़े सिद्ध पुरूष थे कि उनके मुख से जो भी बात निकल जाती थी वह सत्य होती थी। गांव के किसानों को वह समय से पहले ही बता देते थे कि कब वर्षा होगी अथवा कब सूखा पड़ेगा। इस प्रकार बाबा मंगलदास का नाम धीरे-धीरे स्वामी मंगलगिरी पड़ गया था। ग्रामीण उनसे इतना प्यार करते थे कि उनके स्वर्गवासी हो जाने के बाद ग्रामीणों ने उनकी तपस्या स्थली पर ही उनकी समाधी बना दी। इस समाधी पर पूजा-अर्चना करने वाले जो भी मन्नत मांगते थे वह पूर्ण होती थी। धीरे-धीरे समाधी स्थल पर आस्था बढ़ती चली गई। ग्रामीणों ने चंदा एकत्र करके समाधी स्थल पर एक मंदिर बना दिया। उस मंदिर का नाम है “मंगलगिरी मंदिर”।
बाबा का चमत्कारी बैल
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बाबा मंगलगिरी के साथ रहने वाला बछड़ा धीरे-धीरे बैल बन गया। जब वह बैल हल व कोल्हू में जोतने लायक हो गया तो किसान अपनी खेती का कार्य कराने के लिए बाबा से मांगकर उस बैल को ले जाने लगे। उस समय सभी ग्रामीण आश्चर्यचकित रह जाते थे जब वे देखते थे कि बाबा का बैल उतना ही काम करता है जितना बाबा ने बोला है। दरअसल जब कोई किसान बाबा से बैल मांगने जाता था तो वह कहता था कि मुझे अपना दो बीघे खेत जोतना है अथवा मुझे गन्ने के कोल्हू में दो कुंडी (गन्ने के रस को भरे जाने वाला बर्तन) रस निकालना है। बाबा किसान को बैल दे देते थे। किसान द्वारा बैल लाते समय जितना काम करने की बात किसान ने बोली होती थी। उतना काम होने के बाद बैल काम बंद कर देता था। उसके बाद कोई कुछ भी करे बाबा का वह बैल टस से मस नहीं होता था। बताते हैं कि बाबा के स्वर्गवासी होते ही बैल ने भी अपने प्राण अपनी मर्जी से त्याग दिए थे। ऐसा था मंगलगिरी बाबा का यह चमत्कारी बैल। बाबा की समाधी के पास ही ग्रामीणों ने उस बैल की भी समाधी बनाई हुई है।
कब होती है बाबा मंगल गिरी की पूजा
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गढ़ी नौआबाद गांव के कई भक्त तो हर रोज ही बाबा की पूजा अर्चना करने के बाद ही अपने दिन की शुरूआत करते है, लेकिन हर मंगलवार के दिन बाबा की पूजा करने का बड़ा ही महत्व है। हर मंगलवार के दिन सैंकड़ों की संख्या में श्रद्धालु बाबा के दर्शन करने के बाद अपनी मनोकामना मांगते है। होली और दीपावली के दिन तो दिल्ली समेत पूरे देश से हजारों श्रद्धालु बाबा मंगलगिरी की पूजा करने के लिए गढ़ी नौआबाद गांव में आते है।
क्या बताते है ग्रामीण
ग्रामीणों का कहना है कि बाबा के आशीर्वाद और कृपा से गांव गढ़ी नौआबाद और आस पास के गांवों में कभी कोई भी आपदा नहीं आई है और ना ही किसानों की फसलों को कभी कोई नुकसान हुआ है। सच्चे मन से मांगी गई हर एक मनोकामना को बाबा मंगल गिरी कुछ ही दिनों में पूर्ण करते है। एक ग्रामीण का कहना है कि इस समाधी स्थल पर मनोकामना मांगने पर इस्लाम धर्म को मानने वाले लोगों का भी उद्धार बाबा मंगल गिरी ने किया है। वहीं बाबा के इस धाम पर हर वर्ष एक जागरण और भंडारे का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें आस-पास के सभी गांवों से हजारों श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करने के लिए आते है। ये भंडारा सुबह से शुरू होने के बाद देर शाम तक जारी रहता है। ग्रामीणों का कहना है कि पहले बाबा मंगल गिरी मंदिर बहुत छोटा था, होली और दीपावली के दिन श्रद्धालुओं की संख्या अधिक होने के कारण बाबा की समाधी के दर्शन करने में बड़ी कठिनाई होती थी, कुछ श्रद्धालु तो बिन दर्शन के ही वापस लौट जाते थे। इस समस्या को देखते हुए मंदिर का विस्तार किया गया है।
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कैसे जाएं बाबा मंगल गिरी के धाम
अगर आपको बाबा मंगल गिरी के दर्शन करने के लिए गांव गढ़ी नौआबाद जाना है, तो उसके बारे में हम आपको पूरी जानकारी देंगे। दिल्ली की तरफ से अपने वाहन से आने वाले श्रद्धालुओं को बागपत होते हुए बड़ौत और बड़ौत से बुढ़ाना कस्बे से होते हुए गांव गढ़ी नौआबाद बाबा मंगल गिरी के धाम पर पहुंच सकते हैं। अगर कोई भी श्रद्धालु रेलगाड़ी से बाबा के धाम आना चाहता है, तो दिल्ली से ट्रेन लेकर शामली आने के बाद बस द्वारा गढ़ी नौआबाद पहुंच सकता है। नोएडा और गाजियाबाद की तरफ से अपने वाहन से आने वाले श्रद्धालुओं को मेरठ बाइपास होते हुए खतौली जाना होगा। जिसके बाद बुढ़ाना से गांव गढ़ी नौआबाद बाबा के दर्शन के लिए जा सकते है। ट्रेन से जाने वाले श्रद्धालुओं को खतौली या मुजफ्फरनगर से बस सेवा लेनी होगी। जिसके बाद आप बाबा मंगल गिरी धाम आसानी से पहुंच सकते है। वहीं हरियाणा की तरफ से अपने वाहनों से आने वाले श्रद्धालुओं को शामली से होकर आना होगा। हरियाणा की तरफ से बस से आने वाले श्रद्धालुओं को भी शामली से होकर ही बाबा मंगल गिरी के दर्शन के लिए आना होगा। इस तरफ से अभी कोई रेल सेवा उपलब्ध नहीं है। धीरे-धीरे ‘मंगलगिरी मंदिर’ देश भर के भक्तों के बीच अपनी विशिष्टï पहचान बना रहा है।Hindi News
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