Significance Of Yagyas : भारतीय सभ्यता में यज्ञ तथा हवन करने का प्रचलन बहुत पुराना है। यूं भी कह सकते हैं कि भारतीय सभ्यता जितनी सनातन (पुरानी) है उतना ही पुराना इतिहास है यज्ञ और हवन का। यज्ञ अथवा हवन करने से प्राणी को बहुत बड़ा पुण्य प्राप्त होता है। यही कारण है कि भारतीय सभ्यता के सभी ऋषि मुनि यज्ञ तथा हवन खुद भी करते थे और अपने भक्तों से भी यज्ञ तथा हवन कराते थे। हम आपको बताएंगे कि 100 यज्ञ करने से जितना फल अथवा पुण्य मिलता है उतना ही पुण्य किसी पीडि़त गरीब व्यक्ति की सेवा करने से कैसे मिलता है ?
Significance Of Yagyas
100 यज्ञों का फल
क्या होता है यज्ञ
आपको एक या दो नहीं 100 हवन अथवा यज्ञ का फल कैसे मिलेगा ? इस बात को समझने के लिए आप इस कहानी को ध्यान से पढ़ें और विचार करें कि जब पूर्व में राजा महाराजाओं को यह कार्य करने से 100 यज्ञों का फल मिल सकता है तो फिर भला आपको यह कार्य करने से 100 हवन तथा यज्ञ का पुण्य क्यों नहीं मिलेगा। पूरी कहानी नीचे दी गई है।Spiritual News in Hindi
यज्ञ करें अथवा सेवा ? Significance Of Yagyas
एक बार महाराजा पुरंजय ने राजसूय यज्ञ का आयोजन किया। उन्होंने दूर-दूर के ऋषि-मुनियों को आमंत्रित किया। प्रजा की सुख-समृद्धि के उद्देश्य से आयोजित यज्ञ में विधि-विधान से आहुतियां दी जाने लगीं। यज्ञ की पूर्णाहुति देने का दिन आया। वेद मंत्रों की ध्वनि से वातावरण गूंज रहा था। अचानक एक किसान के रोने की आवाज सुनाई दी। वह कह रहा था, ‘डाकुओं ने मेरी संपत्ति लूट ली। मेरी गाय छीनकर ले गए। राजा तुरंत लुटेरों को पकडक़र मेरी संपत्ति वापस दिलाएं।’ पंडितों ने कहा, ‘इस व्यक्ति को पकडक़र दूर ले जाओ। यदि राजा पूर्णाहुति किए बिना उठ गए, तो देवता कुपित हो उठेंगे।’ राजा किसान की करुण आवाज सुनकर द्रवित हो उठे। वह पूर्णाहुति किए बिना उठे तथा बोले, मेरा पहला काम प्रजा का संकट दूर करना है।’ ऋषि-मुनियों ने देखा कि साक्षात यज्ञ भगवान कह रहे हैं, ‘आज राजा की परीक्षा थी कि वह अपनी प्रजा के प्रति कर्तव्य का पालन करते हैं या नहीं। प्रजापालक राजा परीक्षा में सफल हुए। उन्हें एक नहीं, सौ यज्ञों का फल मिलेगा। Significance Of Yagyas
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