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Dharma & Spiritual: कामना के अनुरूप करें देवताओं की उपासना!

 विनय संकोची

श्रीमद्भगवद्गीता(Shrimad Bhagwat Geeta ) में भगवान श्रीकृष्ण (Lord Krishna)स्वयं अपने श्रीमुख से कहते हैं-

यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति।
तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम्।।

अर्थात् – ‘उन कामी पुरुषों में से जो-जो सकाम भक्त जिस-जिस देवता के स्वरूप का श्रद्धा और भक्तियुक्त होकर अर्चन-पूजन करना चाहता है, उस-उस भक्त की देवता विषयक उस श्रद्धा को मैं अचल स्थिर कर देता हूँ।’ अभिप्राय यह कि जो पुरुष पहले स्वभाव से ही प्रवृत्त हुआ जिस श्रद्धा द्वारा जिस देवता के स्वरूप का पूजन करना चाहता है ,उस पुरुष की उसी श्रद्धा को मैं स्थिर कर देता हूँ।

जीव भगवान का ही अंश है। भगवान एक ओर तो उसकी कामनाओं की पूर्ति करते हैं तथा दूसरी ओर उसे इस सांसारिक प्रपंच से मुक्ति भी दिलाते हैं। अतः उन्होंने भूर्भुवः स्व: आदि उर्ध्व लोकों तथा अतल, वितल, सुतल आदि निम्न लोकों के मध्य में जीव लोक को प्रतिष्ठित किया है और इन लोकों की उत्तरोत्तर ऊर्ध्वगामी अथवा अधोगामी अवस्थिति से मानव को बताया है कि वह यदि अच्छा कर्म करेगा तो देवत्व को प्राप्त करेगा अथवा निंदित कर्म करेगा तो अधोलोकगामी ही होगा। अतः देवोपासना आदि सात्विक कर्मों के द्वारा आत्म-कल्याण की प्राप्ति करनी चाहिए।

भारतीय जीवन में देवताओं का महत्वपूर्ण स्थान है। उपनिषदों के अनुसार देवताओं की संख्या तैंतीस कोटि मानी गई है, जो उनकी महिमा का प्रतिपादक है। अथर्ववेद कहता है – ‘जिस परमात्मा के अंग-प्रत्यंग में तैंतीस देवता अवयव रूप से विभक्त होकर विद्यमान हैं, उन तैंतीस देवताओं को ब्रह्मवेत्ता ज्ञानी पुरुष ही जानते हैं।

‘विष्णु पुराण’ में सभी देवता, समस्त मनु तथा सप्त ऋषि, मनुपुत्र और इंद्र भगवान विष्णु की विभूति हैं, ऐसा बताया गया है। देवता अनुग्रह करने, इच्छापूर्ति करने और दंड देने में समर्थ हैं। मानव अपने उत्कृष्ट कर्मों से देवत्व प्राप्त कर सकता है। सौ अश्वमेध यज्ञ करने वाला व्यक्ति इंद्र पद प्राप्त कर लेता है।

श्रीमद्भागवत में विभिन्न कामनाओं के उद्देश्य से विभिन्न देवताओं की उपासना का उल्लेख मिलता है। ब्रह्म तेज के इच्छुक को बृहस्पति की, इंद्रिय शक्ति के इच्छुक को इंद्र की, संतति कामी को प्रजापतियों की, लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए माया देवी की, तेज के लिए अग्नि की, धन के लिए वासुओं की और वीरता प्राप्ति के लिए रुद्रों की, प्रचुर धन की कामना करने वाले को अदिति की, स्वर्गकामी को अदिति पुत्र देवताओं की, राज्यकामी को विश्वेदेवों की तथा प्रजा को स्वानुकूल बनाने की इच्छा रखने वाले को साध्य देवताओं की, दीर्घायुकामी को अश्विनी कुमारों की, पुष्टिकामी को पृथ्वी, की प्रतिष्ठकामी को पृथ्वी और आकाश की आराधना करनी चाहिए।

इसके अतिरिक्त सौंदर्यकामी को गंधर्वों की, सुभागा पत्नी के लिए उर्वशी अप्सरा की और सबका स्वामी बनने के लिए ब्रह्मा जी की, यज्ञकामी को यज्ञपुरुष की, कोशकामी को वरूण की, विद्याकामी को भगवान शंकर की तथा पति-पत्नी में प्रेम बनाए रखने के लिए भगवती पार्वती की, धर्म संपादन के उद्देश्य पूर्ति को भगवान विष्णु की, वंश परंपरा की रक्षा के लिए पितरों की, बाधाओं से बचने के लिए यक्षों की और बलवान बनने के लिए मरुद्गनों की, राज्य के लिए मन्वंतराधिप देवों की, भोग प्राप्ति के लिए चंद्रमा की और निष्कामता प्राप्ति के लिए भगवान नारायण की उपासना करनी चाहिए। उदार बुद्धि वाले मोक्षकामी पुरुष को तो चाहे वो सलाम हो अथवा निष्काम भक्ति पूर्वक एकमात्र भगवान पुरुषोत्तम की आराधना करनी चाहिए।

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