Saturday, 23 November 2024

भारत में खूब होती थी कामदेव की पूजा, मिली है अनोखी मूर्ति

Kamdev News : काम यानि रति क्रिया जिसे अंग्रेजी भाषा में (Sex) का नाम दिया है। काम कहें अथवा सेक्स…

भारत में खूब होती थी कामदेव की पूजा, मिली है अनोखी मूर्ति

Kamdev News : काम यानि रति क्रिया जिसे अंग्रेजी भाषा में (Sex) का नाम दिया है। काम कहें अथवा सेक्स यह विषय हमेशा से ही मानव जाति की रूचि का विषय रहा है। जिस प्रकार विभिन्न देवी-देवता तथा भगवान हुए हैं। वैसे ही सेक्स के भी देवता का नाम तमाम धर्म ग्रंथों में वर्णित है। सेक्स यानि काम के देवता का नाम कामदेव (Kamdev ) था। भगवान शिव द्वारा काम (Sex) के देवता कामदेव (Kamdev ) को भस्म करने की कहानी तो पूरे भारत में प्रचलित है। इन्हीं कामदेव (Kamdev ) की भारत में खूब पूजा होती थी। कामदेव की पूजा के इतिहास (History) को समझने के लिए हम आपको भारत के पहाड़ी क्षेत्र उत्तराखंड ले चलते हैं।

कामदेव को पूजते थे पहाड़ के लोग

सेक्स के देवता कामदेव की पूजा की कहानी जानने के लिए हम आपको पहाड़ की तरफ ले आए हैं। यहां घुमावदार रास्तों पर चलते हुए कई बार लगता है कि बस, अब आगे नहीं जा सकते। सामने एक पहाड़ रास्ता रोके खड़ा है, लेकिन जब आगे बढ़ते हैं तो वह सामने से हटता दिखता है, एक नया रास्ता दिखाते हुए। हिमालय की दुनिया, जो रहस्य, रोमांच, मिथक और किस्सों से भरी पड़ी है।
इसी दुनिया का हिस्सा है कत्यूरी घाटी। उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में पड़ती है यह जगह। कभी यह इलाका कत्यूरी राजवंश की राजधानी हुआ करता था। तब इसका नाम था कार्तिकयपुरम। कत्यूरी राजाओं ने घाटी के पास ही गोमती नदी के किनारे एक शहर बसाया, बैजनाथ। शिव, गणेश, पार्वती, कुबेर, सूर्य और ब्रह्मा के मंदिर है यहां। कत्यूरी वंश की शुरुआत को लेकर एक असमंजस है। कुछ जानकारी बताती है कि इनकी जड़े कभी हिमालय पर राज करने वाले कुणिन्द राजवंश से निकलीं, जबकि एक जानकारी इन्हें शकों से जोड़ती है। आठवीं शताब्दी के मध्य से लेकर अगले करीब चार सौ बरसों तक कत्यूरी राजाओं ने उत्तराखंड पर शासन किया। इस दरम्यान उन्होंने बैजनाथ के मंदिरों जैसे तोहफे दिए, जो उनकी पहचान बन गए। उसी समय की एक मूर्ति इस पहचान को नई रोशनी में दिखाती है।

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बैजनाथ के पास ही एक गांव है गढ़सेर। यहां मंदिरों के खंडहरों में खुदाई के दौरान 1984 में एक मूर्ति मिली। दुर्लभ और इकलौती। यह मूर्ति थी कामदेव की। ग्रीन स्टोन से बनी। इसमें कामदेव को चतुर्भुज यानी चार हाथों वाला दर्शाया गया है। पूरे खिले हुए कमल के फूल पर बैठे हैं वह। उनके एक हाथ में पुष्प शर है यानी फूलों का बाण, एक में उनका खास धनुष है फूलों या गन्ने का बना हुआ और एक में फूल। एक हाथ में वह ध्वज थामे हैं, जिस पर मगरमच्छ अंकित है।

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कामदेव के दोनों ओर त्रिभंग मुद्रा में दो स्त्रियां खड़ी हैं और आसन के पास है घोड़े जैसे मुख वाला एक जीव। ये सारे चिह्न मत्स्य पुराण में दर्शाए गए कामदेव से मिलते हैं। माना जाता है कि मूर्ति में जो दो स्त्रियां दिख रही हैं, वे उनकी पत्नी रति और प्रीति होगी। यह मूर्ति इसलिए चौंकाती है, क्योंकि कामदेव से जुड़ी कथाएं तो बहुत है, उनसे जुड़े उत्सव भी मनाए जाते हैं, लेकिन उनकी बहुत मूर्तियां नहीं मिलती और न ही मंदिर। इस खोज से जुड़े भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के पूर्व डीजी राकेश तिवारी के मुताबिक, ‘यह मूर्ति नौवीं से 10वीं शताब्दी के बीच की हो सकती है। जहां यह मिली, वहां मंदिरों के अवशेष हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि हजार साल पहले उत्तराखंड में कामदेव की पूजा होती थी।’

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