MP News : मध्यप्रदेश के पर्यटन स्थल खजुराहो में मतंगेश्वर महादेव मंदिर-अपने आप में सबसे पवित्र माने जाने वाला मंदिर है जहां श्रद्धालु भक्तों की सदा भीड़ लगी रहती है । आप को जान कर हैरानी होगी इस मंदिर का शिवलिंग हर वर्ष एक इंच ऊपर और उतना ही जमीन के नीचे बढ़ता है । इस समय इसकी ऊंचाई 19फीट ऊपर और इतनी ही जमीन के अंदर । इसीलिए इसे जाग्रत शिवलिंग कहा जाता है ।
अद्भुत ही ये जाग्रत शिवलिंग
बुंदेलखंड की भूमि पर विश्व पटल की धरोहर प्रसिद्ध मंदिरों को अपने आप में समेटे इसका गौरव पूर्ण इतिहास है । इस क्षेत्र का प्राचीन नाम दशार्ण ,जैजोक भुक्ति जुझौती और खर्जूर वाहो है । महाभारत में द्रुपदपुत्र शिखण्डी की पत्नी यहां की राजकुमारी थी । यहां की भूमि पहाड़ी क्षेत्र और शुष्क कठोर होने के कारण विकट परिस्थितियों की मार झेलते हुये जुझती थी इसलिए यहां के लोग जुझौतिया कहलाये । आज भी कुछ ब्राह्मणों को इस क्षेत्र का होने के कारण उन्हें जुझौतिया ब्राह्मण कहा जाता है । खजुराहो में खजूर के पेड़ बहुतायत से होने के कारण ही इसका खजुराहो नाम पड़ा । इसके नगर द्वार पर दोनों ओर पहले दो खजूर के पेड़ स्वागत करते लगे थे । जो धूप में सोने जैसे चमकने के कारण इसका नाम खर्जूरआहो था जो बाद में खजुराहो हुआ । यशोवर्मन की राजधानी रहा यह क्षेत्र अपनी वास्तु शिल्प कला और मंदिरों में उत्कीर्ण मैथुनीय मूर्तियों के कारण अधिक चर्चित और विश्वप्रसिद्ध रहा । यहां का मतंगेश्वर मंदिर भी इसीलिए ही अपनी विशेषताओं के कारण अधिक प्रसिद्ध है ।
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मतंगेश्वर मंदिर के शिव लिंग की कथा :-
प्राचीन काल में मतंग मुनि शिव जी के परम भक्त थे कुछ लोग तो उन्हें शिव जी का अंशावतार भी मानते हैं । इस क्षेत्र के वीरान जंगलों में उन्होंने तपस्या करते हुये शिव जी को प्रसन्न किया । महादेव ने प्रसन्न होकर उन्हें मरकत मणि प्रदान करते हुये कहा कि जिसके पास भी यह मणि रहेगी, जहां पर यह मणि रहेगी वहां कभी अकाल नही पड़ेगा । धन धान्य और सुख वैभव की कमी नही रहेगी । जो इच्छा हो वह यह मणि पूरी करेगी । मतंग मुनि उस मणि को पाकर बहुत प्रसन्न हुये । अब वह जहां भी जाते उस राज्य में कोई कमी नही रहती ।सभी उन्हें बड़े आदर और सम्मान के साथ अपने पास रखना चाहते । उस समय खजुराहो में उनके बड़े भाई राज्यवर्द्धन की मृत्यु के बाद हर्ष वर्द्धन का राज्य था । हर्ष वर्द्धन बहुत ही न्याय प्रिय, जनता का पुत्रवत् पालन करने वाले अपने समय के सबसे शक्तिशाली राजा थे । वह प्रयागराज के कुम्भ के मेले में गरीब अनाथ एवं साधु संतों को अपना सर्वस्व दान करने के बाद अपनी बहिन राज्य श्री से वस्त्र मांग कर पहनते थे । उनकी दानप्रियता और जनता के प्रति उनका प्रेम पूर्ण व्यवहार देख कर मतंग मुनि ने वह मणि उन्हें सौंप दी । राजा हर्ष वर्द्धन को देते हुये उन्होंने कहा कि यह मणि जो भी तुम मांगोगे वह देगी पर इसका दुरुपयोग कभी मत करना । यह शिव जी का वरदान है । दुरुपयोग से क्रुद्ध होकर महादेव रुष्ट होकर विनाश भी कर सकते हैं । हर्ष वर्द्धन उस मणि को पाकर प्रसन्न हुये । उनके राज्य में कभी अकाल नही पड़ा । धन धान्य से भरपूर उनका राज्य सब ओर से विकसित हुआ । अपने अंत समय उन्होंने सोचा मैं यह मणि किसको दूं । जिसको भी नही दूंगा वही अप्रसन्न हो जायेगा यह सोच कर उस मणि को मैं किसी को नही देता अपने राज्य को ही समर्पित करता हूं ।कहते हुये उसे आदर और सम्मान के साथ जमीन में गड़वा दिया । वहां एक पूजा स्थल के रूप में मंदिर का निर्माण करवाया । अब वह मणि जितनी जमीन के नीचे बढ़ती उतनी ही ऊपर । हर वर्ष एक इंच बढ़ते हुये आज वह ज्योतिर्मय जीवित शिवलिंग अपने बढ़ने के कारण प्रसिद्ध है । इसके साथ ही यह भी कहाजाता है कि यहां पर जो भी सच्चे मन से मन्नौती मांगता है भगवान उसकी इच्छा अवश्य पूरी करते है । बसंत पंचमी से शिवरात्रि तक यहां विशाल मेला लगता है । आज यह शिवलिंग अपनी विशालता के कारण विश्व प्रसिद्ध है । कहते हैं कि जिस दिन भी यह शिवलिंग मंदिर की छत को छू लेगा उसी दिन प्रलय आ जायेगी । यह शिवलिंग उन्नीस फीट ऊपरऔर उतना ही नीचे जमीन के अंदर है । इसकी विशेषता यही है कि जितना यह ऊपर बढ़ता है उतना ही नीचे । मरकत मणि उसका आधार है । मतंग मुनि के द्वारा प्राप्त होने के कारण इस शिवलिंग और मंदिर दोनों का ही नाम मतंगेश्वर महादेव है ।MP News
उषा सक्सेना
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