Wednesday, 18 June 2025

निर्जला एकादशी 2025: बिना जल के व्रत, मिलेगा सालभर का पुण्य !

Nirjala Ekadashi 2025 : निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi 2025) हिंदू पंचांग की सबसे कठिन लेकिन फलदायी व्रतों में से एक…

निर्जला एकादशी 2025: बिना जल के व्रत, मिलेगा सालभर का पुण्य !

Nirjala Ekadashi 2025 : निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi 2025) हिंदू पंचांग की सबसे कठिन लेकिन फलदायी व्रतों में से एक मानी जाती है। इस बार यह व्रत 6 और 7 जून 2025 को दो दिनों तक मनाया जाएगा। एकादशी तिथि 6 जून की रात 2:15 बजे से शुरू होकर 7 जून सुबह 4:47 बजे तक है। उदया तिथि के अनुसार 6 जून को व्रत रखना उचित माना गया है, जबकि कुछ वैष्णव परंपराएं इसे 7 जून को भी मानती हैं। इस विशेष दिन का धार्मिक, आत्मिक और सामाजिक महत्व अत्यधिक है।

निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi 2025) का महत्व

‘निर्जला’ का अर्थ है ‘बिना जल के’। इस दिन उपवासी न केवल अन्न बल्कि जल का भी त्याग करते हैं। यह व्रत भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित होता है। शास्त्रों में वर्णन है कि इस दिन व्रत रखने से वर्षभर की सभी एकादशियों का पुण्यफल प्राप्त होता है। यह आत्मसंयम, भक्ति और तपस्या का प्रतीक माना जाता है, जिसमें श्रद्धालु अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखते हुए प्रभु के चरणों में समर्पित होते हैं।

क्या करें और क्या नहीं

व्रतधारी को इस दिन निर्जल रहना होता है। पूजा, जप, ध्यान और धार्मिक ग्रंथों का पाठ करना अत्यंत शुभ माना गया है। गर्मी के कारण जल व शरबत का दान विशेष पुण्यदायी है। व्रतधारियों को तामसिक भोजन (लहसुन, प्याज, मांस आदि), झूठ, क्रोध, निंदा और आलस्य से बचना चाहिए। शारीरिक श्रम से परहेज करें ताकि शरीर निर्जल अवस्था में भी स्थिर रह सके।

पूजा विधि और संकल्प

व्रत से एक दिन पहले सात्विक भोजन करें और जल का सेवन बढ़ा दें। व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर भगवान विष्णु के समक्ष व्रत का संकल्प लें। पूजा में तुलसी, पंचामृत, दीप, धूप, नैवेद्य आदि का उपयोग करें। विष्णु सहस्रनाम, गीता का पाठ और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें। पूजा के अंत में जरूरतमंदों को दान करें।

भीमसेनी एकादशी की कथा

इस व्रत की कथा महाभारत के भीमसेन से जुड़ी है। वे खाने-पीने में रुचि रखते थे और नियमित एकादशी व्रत नहीं कर पाते थे। ऋषि वेदव्यास ने उन्हें केवल ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी का निर्जला व्रत रखने को कहा। भीम ने कठिन प्रयासों से यह व्रत रखा, तभी से इसे ‘भीमसेनी एकादशी’ भी कहा जाता है। यह व्रत आज भी हजारों भक्त पूरी श्रद्धा से निभाते हैं। Nirjala Ekadashi 2025 :

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