Saturday, 23 November 2024

अबूझ मुहूर्त बसंत पंचमी के दिन इस एक स्त्रोत से मिलेगा पूजा का संपूर्ण फल 

Basant Panchami : हर साल आने वाली बसंत पंचमी अपनी विशेष स्थिति के कारण अत्यंत ही महत्पूर्ण दिवस के रुप…

अबूझ मुहूर्त बसंत पंचमी के दिन इस एक स्त्रोत से मिलेगा पूजा का संपूर्ण फल 

Basant Panchami : हर साल आने वाली बसंत पंचमी अपनी विशेष स्थिति के कारण अत्यंत ही महत्पूर्ण दिवस के रुप में पूजनीय मानी गई है. बसंत पंचमी के इस अबूझ मुहूर्त समय यदि कर लिया जाए इस एक स्त्रोत का पाठ तो विद्या की देवी सरस्वती की कृपा को पाकर मूढ़ भी बन सकता है ज्ञानी.  बसंत पंचमी के दिन को मुहूर्त शास्त्र अनुसार अत्यंत विशेष मुहूर्त के रुप में स्थान पाता है.

Basant Panchami 2024: क्यों है ये अबूझ मुहूर्त  ?

इस दिन पर हर तरह के शुभ एवं मांगलिक कार्यों को करना वृद्धि एवं शुभता का प्रतीक बनता है. इस दिन को अबूझ मुहूर्त के रुप में भी विशेष कहा गया है. बसंत पंचमी का दिन देवी सरस्वती की पूजा एवं ज्ञान की प्राप्ति का अमूल्य समय है. इस दिन किया जाने वाला पूजन ज्ञान विद्या मेधा शक्ति की वृद्धि का समय होता है. इस समय के दौरान किए जाने वाले कार्य धार्मिक क्रिया कलापों से व्यक्ति अपने ज्ञान को आलौकित कर पाने में सक्षम होता है.

Basant Panchami का पौराणिक महत्व

बस्म्त पंचमी के दिन को देवी सरस्वती के अवतरण से भी संबंधित माना गया है. इसी कारण इस शुभ दिन भक्त  देवी सरस्वती की पूजा करते हैं. विद्या संबंधित संस्थानों में ज्ञान, बुद्धि और विद्या की देवी माता सरस्वती का पूजन प्रथम रुप में किया जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सरस्वती के आगमन के साथ ही ज्ञान क अप्रकार सृष्टि को प्रकाशित करता है.

बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती स्त्रोत का पाठ दूर करता है हर प्रकार का अज्ञान

14 फरवरी 2024 को वसन्त पञ्चमी का त्यौहार बुधवार के दिन मनाया जा रहा है. बसंत पंचमी तिथि का प्रारम्भ 13 फरवरी, 2024 को दोपहर 14:41 से आरंभ होगा इसके अलावा बसंत पंचमी  तिथि की समाप्ति 14 फरवरी 2024 को 12:09 पर होगी. बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती पूजा के लिए मुहूर्त का समय सुबह 07:01 से 12:35 तक रहने वाला है. इस शुभ दिन पर यदि देवी स्त्रोत कर लिया जाए तो छात्रों को मिलता है इसका विशेष लाभ. जागृत होती है बौद्धिक क्षमता.

॥ श्री सरस्वती स्तोत्रम् ॥
या कुन्देन्दु-तुषारहार-धवलाया शुभ्र-वस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकराया श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत-शङ्कर-प्रभृतिभिर्देवैःसदा पूजिता
सा मां पातु सरस्वती भगवतीनिःशेषजाड्यापहा॥1॥
दोर्भिर्युक्ता चतुर्भिःस्फटिकमणिमयीमक्षमालां दधाना
हस्तेनैकेन पद्मं सितमपिच शुकं पुस्तकं चापरेण।
भासा कुन्देन्दु-शंखस्फटिकमणिनिभाभासमानाऽसमाना
सा मे वाग्देवतेयं निवसतुवदने सर्वदा सुप्रसन्ना॥2॥
आशासु राशी भवदंगवल्लि भासैवदासीकृत-दुग्धसिन्धुम्।
मन्दस्मितैर्निन्दित-शारदेन्दुंवन्देऽरविन्दासन-सुन्दरि त्वाम्॥3॥
शारदा शारदाम्बोजवदना वदनाम्बुजे।
सर्वदा सर्वदास्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात्॥4॥
सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृ-देवताम्।
देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जनाः॥5॥
पातु नो निकषग्रावा मतिहेम्नः सरस्वती।
प्राज्ञेतरपरिच्छेदं वचसैव करोति या॥6॥
शुद्धां ब्रह्मविचारसारपरमा-माद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्पाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थितां
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥7॥
वीणाधरे विपुलमंगलदानशीले
भक्तार्तिनाशिनि विरिंचिहरीशवन्द्ये।
कीर्तिप्रदेऽखिलमनोरथदे महार्हे
विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम्॥8॥
श्वेताब्जपूर्ण-विमलासन-संस्थिते हे
श्वेताम्बरावृतमनोहरमंजुगात्रे।
उद्यन्मनोज्ञ-सितपंकजमंजुलास्ये
विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम्॥9॥
मातस्त्वदीय-पदपंकज-भक्तियुक्ता
ये त्वां भजन्ति निखिलानपरान्विहाय।
ते निर्जरत्वमिह यान्ति कलेवरेण
भूवह्नि-वायु-गगनाम्बु-विनिर्मितेन॥10॥
मोहान्धकार-भरिते हृदये मदीये
मातः सदैव कुरु वासमुदारभावे।
स्वीयाखिलावयव-निर्मलसुप्रभाभिः
शीघ्रं विनाशय मनोगतमन्धकारम्॥11॥
ब्रह्मा जगत् सृजति पालयतीन्दिरेशः
शम्भुर्विनाशयति देवि तव प्रभावैः।
न स्यात्कृपा यदि तव प्रकटप्रभावे
न स्युः कथंचिदपि ते निजकार्यदक्षाः॥12॥
लक्ष्मिर्मेधा धरा पुष्टिर्गौरी तृष्टिः प्रभा धृतिः।
एताभिः पाहि तनुभिरष्टभिर्मां सरस्वती॥13॥
सरसवत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नमः।
वेद-वेदान्त-वेदांग-विद्यास्थानेभ्य एव च॥14॥
सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने।
विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोस्तु ते॥15॥
यदक्षर-पदभ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत्।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि॥16॥

॥ इति श्रीसरस्वती स्तोत्रम् संपूर्णं ॥

एस्ट्रोलॉजर  राजरानी 

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