Wednesday, 27 November 2024

यूं ही नहीं हुआ राम से बड़ा राम का नाम, आप भी जान लीजिए राम के सारे गुण एक नजर में

[ प्रवीणा अग्रवाल ] Ram Mandir : भारतवर्ष में हर वर्ष हर गली, मोहल्ले, शहर-गांव में रामलीला का मंचन अत्यंत…

यूं ही नहीं हुआ राम से बड़ा राम का नाम, आप भी जान लीजिए राम के सारे गुण एक नजर में

[ प्रवीणा अग्रवाल ]

Ram Mandir : भारतवर्ष में हर वर्ष हर गली, मोहल्ले, शहर-गांव में रामलीला का मंचन अत्यंत हर्षोल्लास से किया जाता है। हर दर्शक को कहानी पता है। नाटक में अगले पल क्या घटित होने वाला है,यह भी पता है। फिर भी हर दर्शक रोमांचित है। तो फिर यह क्या चमत्कार है कि दर्शक वर्ष दर वर्ष इस रामलीला का मंचन देखने के बाद कभी ऊबता नहीं है। उसका रोमांच उसकी उत्सुकता यथावत रहती है।

Ram Mandir

क्या यह चमत्कार महाकवि तुलसीदास रचित श्रीरामचरितमानस का है? जिन्होंने राम कथा ऐसे रची की हर व्यक्ति उसे पढ़ते हुए देखते हुए स्वयं को राम के साथ एका कार कर लेता है। उसे ऐसा प्रतीत होता है कि उनके बीच के समय का अंतराल छूमंतर हो गया है और वह राम कथा को फिर से जी रहा है राम के साथ। रामलीला देखने वाला केवल रामलीला नहीं देख रहा, मानस का पाठ करने वाला केवल पाठ नहीं कर रहा बल्कि उसे अनुभव होता है कि वह एक आध्यात्मिक घटना का साक्षी है और उसका अभिन्न अंग भी। उसका मन मानस अंतरतम की गहराइयों से यह स्वीकार करता है कि राम कथा उसे आध्यात्मिकता की उन ऊंचाइयों तक ले जाती है जहां राम निकट है बिल्कुल अपने हैं जिन्हें महसूस किया जा सकता है ,छुआ जा सकता है और कोशिश करने पर राम जैसा हुआ भी जा सकता है। राम सरल है एकदम सरल। आज्ञाकारी पुत्र, आज्ञाकारी शिष्य, स्नेही भाई, प्रेमिल पति हर अवसर पर सामने वाले से विनम्रता एवं मृदुता का व्यवहार करते हुए सभी से कुछ ना कुछ सीखते हुए ऋषियों मुनियों से भी तो रावण से भी।  राम की यही सरलता उनका वह गुण है जो जन सामान्य को भी अपना बना लेता है।

अद्भुत हैं राम

राम का व्यक्तित्व इतना उदात्त है कि उनके पास जो कुछ भी है वही पर्याप्त है। इससे इतर उन्हें और अधिक की कोई अभिलाषा नहीं। पिता के दिए वचन की रक्षा हेतु 14 वर्षों का वनवास उतनी ही सरलता से स्वीकार कर लिया जितनी सरलता से अयोध्या का राजतिलक स्वीकार किया था। राम चाहते तो पिता की आज्ञा न मानते अथवा जब भरत उन्हें वापस अयोध्या लाने गए तो राम भरत के साथ वापस अयोध्या आ जाते पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। 14 वर्षों तक वनवास में रहे, कंदमूल फल खाकर निर्वाह किया वनवासियों के बीच वनवासियों की तरह। राजकुल का प्रतापी यशस्वी राजकुमार अथवा अयोध्या का भावी सम्राट होने का रंच मात्र भी भाव नहीं। इन्हीं सबके बीच तत्कालीन समाज के दलित वंचित आदिवासी तबको के साथ उनका समभाव आश्चर्यचकित कर देता है। छल अहिल्या के साथ हुआ उसके लिए अहिल्या कैसे दोषी हो सकती है? राम उसका उद्धार करते हैं। वहीं वनवास में शबरी के झूठे बेर खाने में भी उन्हें कोई हिचक नहीं है क्योंकि प्राणी मात्र की समानता में उनका गहन विश्वास है। प्रकृति से उनका तादात्म्य अतुलनीय है। सीता हरण के उपरांत सीता की खोज में भटकते राम कहते हैं

हे खग मृग हे मधुकर श्रेणी।

तुम देखी सीता मृगनयनी ।

Ram Mandir

अतुलनीय हैं राम

जिस समय लंकेश रावण द्वारा सीता का हरण किया गया राम लक्ष्मण वन में एकदम अकेले हैं। पर राम उन विकट परिस्थितियों में भी अपना साहस नहीं खोते। उन्हें सीता को वापस लाने हेतु सेना व सहायता दोनों की आवश्यकता थी। पर उन्होंने ना तो अयोध्या से कोई सहायता मांगी ना ही जनकपुर से राम को विश्वास है अपने बाहुबल पर अपनी क्षमताओं पर राम दिखाई देते हैं स्थानीय वनवासियों, रीछ, वानरों, भालुओं को सैन्य रूप में संगठित करते हुए। राम के लिए कुछ भी असाध्य नहीं, फिर भी राम सहायता लेते हैं वनवासियों की। जो सरल है सहज है। जो सहज है सरल है वही राम को सर्वाधिक प्रिय उन्हें ही मिलते हैं राम।

लंका विजय के पश्चात लंका के राज्य या ऐश्वर्य की राम को कोई आकांक्षा नहीं है। लंका का राज्य वे सहर्ष विभीषण को सौंप देते हैं क्योंकि त्याग ही उनकी विशेषता है। जब लक्ष्मण राम से कहते हैं कि हे भ्राता अयोध्या को हम बहुत दूर छोड़ आए हैं और लंका का यह ऐश्वर्यशाली साम्राज्य हमने विजय कर लिया है तो क्यों ना हम यही राज्य करें, तो राम कहते हैं

‘अपि स्वर्णमयी लंका मे ना लक्ष्मण रोचते।

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी (वाल्मीकि रामायण)’

लक्ष्मण यह स्वर्णमयी लंका मुझे प्रिय नहीं लग रही है क्योंकि मां एवं मातृभूमि स्वर्ग से भी बढक़र है। राम जिस समय जहां रहे उन लोगों के साथ उनके होकर रहे। जिसे मिले संपूर्णता से मिले क्योंकि राम-राम है जब मिलते हैं तो संपूर्ण और नहीं तो नहीं। क्योंकि अधूरा राम राम नहीं हो सकता या तो पूरा मिलेगा या नहीं मिलेगा।

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