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राम एक और रामायण तीन सौ पचास!

विनय संकोची

श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम थे और उनकी मर्यादा में भेदभाव, ऊंच-नीच, घृणा-द्वेष, छल-प्रपंच और संकीर्णता का कोई स्थान नहीं था। राम सबके थे और सब राम के थे। सब राम को चाहते थे और राम को सभी समान रूप से प्रिय थे। लेकिन आज राम और राम नाम के तथाकथित ठेकेदारों ने भगवान श्रीराम को संकीर्णता के संकुचित दायरे में खड़ा करने का काम किया है, जिसे पाप और अपराध की श्रेणी में ही रखा जा सकता है। सौम्य सादर सस्नेह अभिवादन राम-राम को एक उत्तेजक नारे ‘जय श्रीराम’ में बदल दिया गया है। ‘जय श्रीराम’ कहने बोलने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन वर्ग विशेष द्वारा उसे बोलने में जो उत्तेजना का प्रदर्शन किया जाता है, वह भक्ति भाव की परिभाषा पर संभवत खरा नहीं उतरता है। इसमें से यदि आक्रोश उत्तेजना को हटा दिया हटा-घटा दिया जाए तो यह भी राम-राम जितना ही सर्वप्रिय होगा।

गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है कि ‘रामहि केवल प्रेम पियारा’, श्रीराम को केवल प्रेम ही प्यारा है, प्रिय है और प्रेम में जाति, वर्ग की कोई बाधा या बंधन नहीं होता है, जो प्रेम करे राम उसके। ऐसे राम को मेरा तेरा में बांटना स्वयं राम के प्रति अन्याय है।

शोधार्थियों के अनुसार राम कथा अनेक भारतीय भाषाओं में लिखी गई। हिंदी में कम से कम 12, मराठी में 8, बांग्ला में 25, तमिल में 12, तेलुगु में 12 और उड़िया में 6 रामायण मिलती हैं। गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस का उत्तर भारत में विशेष स्थान है। इसके अतिरिक्त संस्कृत, गुजराती, मलयालम, कन्नड़, असमिया, उर्दू, अरबी, फारसी आदि में भी राम कथा लिखी गई है। एक अनुमान के अनुसार विभिन्न भाषाओं में करीब 350 रामायण की जानकारी मिलती है।

भारत के अतिरिक्त विदेशों में तिब्बती रामायण, पूर्वी तुर्किस्तान में खोतानी रामायण, इंडोनेशिया की ककबिन रामायण, जावा का सेरत राम, सैरीराम, रामकेलिंग, पातानी रामकथा, इंडो चाइना की रामकेर्ति, खमेर रामायण, वर्मा की युतोकी रामयागन, थाईलैंड की रामकियेन आदि में राम चरित्र का खूबसूरती से बखान किया गया है। इतनी रामायणो रामकथाओं का एक ही अर्थ है कि राम भारत के ही नहीं विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय देवता हैं। ऐसे राम को जाति, वर्ग विशेष का साबित करने का प्रयास प्रशंसनीय तो नहीं ही कहा जा सकता।

अब मैं जो लिख रहा हूं, उसे उन दोनों पक्षों को अवश्य जानना चाहिए जो राम को लेकर हर समय भृकुटि ताने रहते हैं। मुगल बादशाह अकबर ने सचित्र रामायण का फारसी में अनुवाद करवाया था, जिसकी प्रति वर्तमान में महाराजा सवाई मानसिंह (द्वितीय) संग्रहालय जयपुर में रखी है। इस रामायण में शाहजहां और औरंगजेब की मुहर लगी हुई है। अकबर के मंत्री खान-ए-खाना रहीम ने भी रामायण लिखवाई थी, जो वाशिंगटन के संग्रहालय में संरक्षित है। इस रामायण में 620 कथा और 24560 श्लोक हैं, जिनमें से 90 कथा और 3960 श्लोक ही रहीम की रामायण में रेखांकित किए गए हैं। जहांगीर के जमाने में मुल्ला मसीह ने ‘मसीही रामायण’ नामक मौलिक रामायण की रचना की थी। इस रामायण में 5000 छंद हैं। फरीद, रसखान, आलम रसलीन, हमीदुद्दीन नागौरी, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती आदि रचनाकारों ने श्रीराम की काव्य पूजा की है। अमीर खुसरो ने भी तुलसीदास से 250 वर्ष पूर्व अपनी मुकरियों में श्रीराम को नमन किया।

1860 में प्रकाशित रामायण के उर्दू अनुवाद की लोकप्रियता का यह आलम रहा कि 8 साल में उसके 16 संस्करण प्रकाशित करने पड़े। वर्तमान में भी अब्दुल रशीद खान, नसीर बनारसी, मिर्जा हसन नासिर, दीन मोहम्मदीन, इकबाल कादरी, पाकिस्तान के शाह जफर अली खान सरीखे उर्दू रचनाकार श्रीराम के व्यक्तित्व की सुगंध अपनी रचनाओं के माध्यम से फैलाने का कार्य कर रहे हैं।

गोस्वामी तुलसीदास के प्रिय सखा अब्दुल रहीम खान-ए-खाना ने कहा है-‘रामचरितमानस हिंदुओं के लिए ही नहीं, मुसलमानों के लिए भी आदर्श है।’

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