धर्म-अध्यात्म : भगवान को पता होता है, भक्त को क्या चाहिए!
चेतना मंच
विनय संकोची
अधिकांश लोग भगवान से प्रार्थना नहीं करते बल्कि मांग करते हैं। व्यक्ति को प्रार्थनाओं में सामान्य मंगल कामना करनी चाहिए, क्योंकि परमात्मा भली भांति जानता है कि हमारी भलाई किस में है। जगत पिता को पता है कि उसके किस बच्चे को, कब और क्या करना चाहिए।
वास्तव में भगवान ही हमारे हैं। जब हमने संसार में जन्म नहीं लिया था, तब भी भगवान ही हमारे थे एवं संसार में नहीं रहेंगे, मर जाएंगे तब भी भगवान ही हमारे होंगे। यह संसार पहले भी हमारा नहीं था, आगे भी हमारा नहीं होगा और अब भी पल पल यह संसार हमसे अलग हो रहा है। आयु भी बीत रही है और शरीर भी चुकता जा रहा है। सच्चाई तो यह है कि संसार का संबंध आपके साथ ना था और ना ही रहेगा। प्रभु के साथ ही संबंध था, आज भी है और अनंत काल तक रहेगा भी।
परमात्मा का नाम जिस तरह भी लिया जाए, फायदा की करेगा। परंतु जो आदर सहित नाम लेता है, भाव से, प्रेम से नाम लेता है उसका भगवान पर विशेष प्रभाव पड़ता है। नाम और रूप दोनों ईश्वर की उपाधि हैं। नाम चिंतन करो या स्वरूप चिंतन करो, दोनों ही भगवान को तुम्हारी ओर खींचने वाले हैं। ध्यान रखना है भाव का, प्रेम का।
आचरण ऐसा करना चाहिए कि परमेश्वर उसे देख रहा है। व्यक्ति मानता तो है कि भगवान उसके प्रत्येक कार्य को देख रहे हैं लेकिन आज काम ऐसा करता है, जैसे उसे कोई देख नहीं रहा हो और यही बात है जो व्यक्ति को गलत रास्ते पर ले जाती है, दु:ख से अंधकार में धकेल देती है।
प्रभु का कीर्तन करने से मन में प्रसन्नता और मुग्धता का वास होता है और व्यक्ति परमात्मा के निकट होता चला जाता है। परमात्मा से निकटता का एहसास ही तो है, जो उसे आनंद प्रदान करता है। कीर्तन उच्च स्वर में किया जाए, धीरे-धीरे किया जाए, खड़े होकर किया या बैठकर किया जाए, झूम करके किया जाए, नाचते हुए किया जाए, झूमते हुए किया जाए, सभी प्रकार से उत्तम फल देने वाला होता है। लेकिन कीर्तन द्वारा प्रभु नाम की महिमा का गुणगान अभिमान रहित होकर करना चाहिए, क्योंकि अहंकार प्रभु प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा है। कीर्तन करते समय मन को केवल और केवल प्रभु के चरणों में लगाना चाहिए।
संसार में रमे व्यक्ति सुख दु:ख से प्रभावित होते हैं। सभी लोग सुखों की कामना करते हैं और दु:खों से घबराते हैं। विचार करें कि यदि संसार में सुख ही सुख होंगे, तो सुख की पहचान कैसे होगी। वास्तव में दु:ख की अनुभूति ही सुख की परिस्थिति है। यदि तुम सुख प्राप्त करना चाहते हो तो बिना विलंब आध्यात्मिक यात्रा प्रारंभ करनी चाहिए। जीवन को आनंदित करने के लिए सुख से पूर्व दु:ख को स्वीकार करो परमात्मा के मिलने पर दु:ख कभी आएगा ही नहीं। भगवन्नाम असली सुख है, असली धन है।