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धर्म – अध्यात्म : आना जाना लगा रहेगा!

 विनय संकोची
आवागमन संस्कृत का शब्द है और इसका शाब्दिक अर्थ है – आना जाना, बार-बार जन्म लेना और मरना। जन्म मरण का चिरआवर्तन। जो संसार में आता है, वह जाता अवश्य है – यह शाश्वत नियम है और इसे केवल परमात्मा ही बदल सकता है। इसे बदलने का अर्थ होगा तमाम तरह की विसंगतियों विकृतियों का सिर उठाना। संसार नश्वर है और यहां कुछ भी स्थाई नहीं है, जीवन तो बिल्कुल भी नहीं। शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो इस सत्य से परिचित न हो कि वह संसार में हमेशा के लिए नहीं रह सकता है। सब जानते हैं कि उसे परमात्मा ने एक निश्चित अवधि के लिए गिनती की सांसों के साथ संसार में भेजा है, जिनके पूरी होते ही उसे इस संसार को छोड़कर जाना है, जिसे संभवत वह स्वयं से ज्यादा चाहता है, प्यार करता है। जिससे संयोग होता है उसे भी वियोग होना निश्चित है, यही तो आवागमन का भी नियम है।

आवागमन को इस तरह भी समझा जा सकता है, जैसे उदय होने के बाद सूर्य निरंतर अस्त की ओर ही जाता है और एक निश्चित अवधि के उपरांत वह पुनः प्रकट हो जाता है। यही जीव के साथ होता है। जीव संसार में आते ही अपने अस्त की ओर चलना प्रारंभ कर देता है और एक काल सीमा पर जाकर अस्त हो जाता है, उसका अस्तित्व भौतिक रूप से समाप्त हो जाता है। जीव नाशवान है और उसके अंतर घट में विराजित आत्मा अविनाशी है। भौतिक रूप से अस्त जीव की अविनाशी आत्मा पुनः संसार में प्रकट होती है। अंतर केवल इतना है कि सूर्य का रूप परिवर्तित नहीं होता है और आत्मा रूप बदलकर संसार में आती है। परंतु आती जरूर है और आने के बाद फिर जाती अवश्य है।

यह नाशवान संसार किसी जीव का स्थाई डेरा नहीं हो सकता। आवागमन का चक्कर में यही तो संदेश देता है लेकिन हम संसार में आने के बाद सोच बैठते हैं कि हम जाएंगे कि नहीं, अब तो हमें जाना ही नहीं है और यही सोच हमें परमात्मा से दूर करती चली जाती है। संसार हमें जकड़ लेता है और हम परमात्मा को बिसार देते हैं। याद करते हैं तो केवल अपने स्वार्थ के लिए। इस सत्य को भुलाया नहीं जा सकता है कि कलयुग में विरले ही सत्पुरुष हैं जो निस्वार्थ भाव से भगवान को सुमरते हैं, उसे याद करते हैं।

आवागमन से ही स्वर्ग नरक की अवधारणा भी संबद्ध है। व्यक्ति जो कुछ करता है वह या तो अच्छा होता है अथवा बुरा कहलाता है। इस बात को सब जानते हैं, अच्छे कर्मों का फल अच्छा और बुरे कर्मों का नतीजा बुरा होता है। सुफल स्वर्ग का मार्ग प्रशस्त करता है और बुरा फल नर्क का द्वार खोलता है। ज्ञानियों का मानना है कि स्वर्ग नरक सब इसी संसार में है, आपको अपने गलत कामों के फल स्वरूप कष्ट मिलते हैं, दु:ख भोगने पड़ते हैं और अच्छे कार्य आपकी सुख, समृद्धि, संपन्नता का मार्ग प्रशस्त करते हैं। दु:ख कष्ट नरक और सुख शांति स्वर्ग का पर्याय हैं।

आने वाला जाने वाला होता है। आने वाले को जाना ही जाना है। काल रूप अग्नि में सब कुछ लगातार जलता रहता है और इस कालाग्नि से बचकर संसार के किसी भी कोने में छिपा नहीं जा सकता है। जिस क्षण काल रूपी अग्नि की लपट छू लेती है, उसी समय आवागमन का एक अध्याय पूरा हो जाता है।

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