Religion : आखिर क्या है चौरासी लाख योनियों का रहस्य! दरअसल ये योनियां होती क्या हैं! शरीर से निकलने के बाद आत्मा कहां जाती है! ऐसे कई प्रश्न हमारे-आपके दिमाग में अक्सर उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं। और जहां कुछ ‘विद्वान’ साथ बैठ जाएं, तो यह चर्चा एक बहस का रूप ले लेती है। एक ऐसी बहस, जिसका अक्सर कोई निष्कर्ष नहीं निकलता।
लेकिन यह प्रश्न तो मन में उठता ही रहता है। हिन्दू धर्म में पुराणों में वर्णित 84,00,000 योनियों के बारे में आपने कभी न कभी अवश्य सुना ही होगा। हम जिस मनुष्य योनि में जी रहे हैं, वह भी उन चौरासी लाख योनियों में से ही एक है।
तो आइए, आज हम इसी विषय पर एक सार्थक चर्चा करते हुए आपको इन चौरासी लाख योनियों से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी भी दे देते हैं।
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गरुड़ पुराण में है विस्तार से विवरण
Religion : गरुड़ पुराण में योनियों का विस्तार से वर्णन दिया गया है। एक जीव, जिसे हम आत्मा भी कहते हैं, इन 84,00,000 योनियों में भटकती रहती है। यानी मृत्यु के पश्चात वह इन्हीं चौरासी लाख योनियों में से किसी एक में जन्म लेती है।
वैसे भी हम सभी जानते हैं कि आत्मा अजर-अमर होती है। यानी आत्मा कभी नहीं मरती है। तो फिर शरीर का अंत होने के बाद वह जाती कहां है! इसका उत्तर है कि मृत्यु के पश्चात वह एक अन्य योनी में दूसरा शरीर धारण करती है।
आखिर यह योनि है क्या?
Religion : ऐसे में प्रश्न उठता है कि ‘योनि’ का अर्थ क्या है। तो सरल शब्दों में बता दें कि योनि का मतलब है प्रजाति या नस्ल, जिसे हम अंग्रेजी में Species कहते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि विश्व भर में जितनी भी प्रकार की प्रजातियां (Species) हैं, वे सभी ‘योनि’ होती हैं।
इन योनियों में केवल मनुष्यों और पशुओं को ही नहीं गिना जाता, बल्कि पेड़-पौधे, विषाणु-जीवाणु, वनस्पतियां आदि वह सभी प्रजातियां हैं, जिनमें जान है। इन सबकी गणना उन्हीं 84,00,000 योनियों में की जाती है।
आधुनिक विज्ञान बनाम हिंदू धर्म का प्राचीन विज्ञान
Religion : आज के आधुनिकतावादी वैज्ञानिक युग में विश्व भर के जीव विज्ञानियों ने कई वर्षों की शोध करके निष्कर्ष निकाला है कि पृथ्वी पर इस समय लगभग 87 लाख प्रजातियों वाले जीव-जंतु और वनस्पतियां मौजूद हैं। इसे आधुनिक विज्ञान की उपलब्धि समझा जाता है।
लेकिन खास बात यह है कि हिंदू धर्म के ऋषियों-मुनियों ने आज से हजारों वर्ष पहले ही अपने ज्ञान के बल पर बता दिया था कि पृथ्वी पर 84 लाख योनियां (प्रजातियां) मौजूद हैं। यह प्राचीन ज्ञान आज के आधुनिक विज्ञान की गणना के काफी निकट है।
कैसे मिलता है मोक्ष?
Religion : जो भी जीव इस जन्म-मरण के चक्र से छूट जाता है, उसे आगे किसी अन्य योनि में जन्म लेने की आवश्यकता नहीं होती है। उसे ही हम ‘मोक्ष’ या जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति प्राप्त करना कहते हैं। पुराणों में 84,00,000 योनियों का गणनाक्रम भी दिया गया है। पद्मपुराण के 78/5 वें सर्ग में कहा गया है:
”जलज नव लक्षाणी, स्थावर लक्ष विम्शति, कृमयो रूद्र संख्यक:।
पक्षिणाम दश लक्षणं, त्रिन्शल लक्षानी पशव:, चतुर लक्षाणी मानव:।।”
अर्थात, जलचर जीव: 9 लाख, वृक्ष-पौधे: 20 लाख, कीट (क्षुद्रजीव): 11 लाख, पक्षी: 10 दस लाख, पशु: 30 लाख और देवता-दैत्य-दानव-मनुष्य आदि: 4 लाख। इस प्रकार 9 लाख + 2 लाख + 11 लाख + 1 लाख + 3 लाख + 4 लाख = कुल योनियां 84 लाख योनियां होती हैं।
योनियों को बांटा गया है 2 भागों में
Religion : आचार्यों ने 84 लाख योनियों को 2 भागों में बांटा है। इसमें से पहला ‘योनिज’ तथा दूसरा ‘आयोनिज’ है। मतलब 2 जीवों के संयोग से उत्पन्न प्राणी को ‘योनिज’ कहा जाता है, जबकि जो अपने आप ही अमीबा की तरह विकसित होते हैं, उन्हें ‘आयोनिज’ कहा जाता है।
इसके अलावा मूल रूप से प्राणियों को नीचे दिए गए तरीके से 3 भागों में बांटा जाता है:
(1) जलचर:- जल में रहने वाले सारे प्राणी, (2) थलचर:- पृथ्वी पर रहने वाले सभी प्राणी और (3) नभचर:- आकाश में विहार करने वाले सारे प्राणी।
योनियों का वर्गीकरण इस प्रकार है
Religion : इसके अतिरिक्त 84 लाख योनियों को नीचे दिए गए 4 वर्गों में बांटा जाता है:
1. जरायुज:- माता के गर्भ से जन्म लेने वाले मनुष्य, पशु को जरायुज कहा जाता है।
2. अंडज:- अंडों से उत्पन्न होने वाले प्राणी को अंडज कहा जाता है।
3. स्वदेज:- मल-मूत्र, पसीने आदि से उत्पन्न क्षुद्र जंतु को स्वेदज कहा जाता है।
4. उदि्भज:- पृथ्वी से उत्पन्न प्राणी को उदि्भज कहा जाता है।
प्राचीन भारत में विज्ञान और शिल्प ग्रंथ में शरीर की रचना के आधार पर प्राणियों का वर्गीकरण नीचे दिए गए तरीके से किया जाता है:
1. एक शफ (एक खुर वाले पशु):- इसमें खर (गधा), अश्व (घोड़ा), अश्वतर (खच्चर), गौर (एक प्रकार की भैंस), हिरण को शामिल किया जाता है।
2. विशफ (दो खुर वाले पशु):- इसमें गाय, बकरी, भैंस, कृष्ण मृग आदि शामिल हैं।
3. पंच अंगुल (पांच अंगुली) नखों (पंजों) वाले पशु:- इसमें सिंह, व्याघ्र, गज, भालू, श्वान (कुत्ता), श्रृंगाल आदि को शामिल किया जाता है।
मोक्ष की प्राप्ति के लिए सर्वाधिक आदर्श योनि
Religion : यहां यह प्रश्न उठाना स्वाभाविक है कि मोक्ष की प्राप्ति के लिए सर्वाधिक योग्य और आदर्श योनि कौन सी है। तो जान लीजिए कि मनुष्य योनि को मोक्ष की प्राप्ति के लिए सर्वाधिक आदर्श योनि माना गया है।
इसके पीछे तर्क सहित बड़ा कारण भी बताया गया है। दरअसल मोक्ष के लिए जीव में जिस ‘चेतना’ की आवश्यकता होती है, वह हम मनुष्यों में सबसे अधिक पाई जाती है।
अन्य योनि में भी मिला है मोक्ष
Religion : रामायण और हरिवंश पुराण में कहा गया है कि कलयुग में मोक्ष की प्राप्ति का सबसे सरल साधन ‘राम-नाम’ है। लेकिन आचार्यों ने कहा है कि यह अनिवार्य नहीं है कि केवल मनुष्यों को ही मोक्ष की प्राप्ति होगी, अन्य जंतुओं अथवा वनस्पतियों को नहीं।
इस बात के कई उदाहरण हमें अपने वेदों और पुराणों में मिलते हैं कि जंतुओं ने भी सीधे अपनी योनि से मोक्ष की प्राप्ति की। महाभारत में पांडवों के महाप्रयाण (स्वर्ग गमन) के समय एक श्वान (कुत्ते) का वर्णन आता है, जिसे उनके साथ ही मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। पांडवों के साथ श्वान के रूप में वास्तव में ‘धर्मराज’ चल रहे थे।
गज-ग्राह का भी है वर्णन
Religion : विष्णु एवं गरुड़ पुराण में एक गज-ग्राह का वर्णन आता है, जिन्हें भगवान विष्णु के कारण मोक्ष की प्राप्ति हुई। वो ग्राह पूर्व जन्म में गन्धर्व और गज भक्त राजा थे। किन्तु कर्मफल के कारण अगले जन्म में उन्हें पशु योनि में जन्म लेना पड़ा।
इसी प्रकार एक गज का वर्णन गजानन की कथा में है, जिसके सर को श्रीगणेश के सर के स्थान पर लगाया गया था। भगवान शिव की कृपा से उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई। महाभारत की कृष्ण लीला में श्रीकृष्ण ने अपनी बाल्यावस्था में खेल-खेल में ‘यमल’ एवं ‘अर्जुन’ नामक दो वृक्षों को उखाड़ दिया था। वे यमलार्जुन वास्तव में पिछले जन्म में यक्ष थे, जिन्हें वृक्ष योनि में जन्म लेने का श्राप मिला था।
इसलिए यहां समझने की बात यह है कि जीव चाहे जिस भी योनि में जन्म ले, वह अपने पुण्य कर्मों और सच्ची भक्ति के माध्यम से मोक्ष प्राप्त कर सकता है। Religion
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