Wednesday, 18 June 2025

सावित्री ने यमराज से पति को वापस पाया, उसी याद में रखा जाता है यह व्रत

Vat Savitri :  वट सावित्री व्रत मुख्य रूप से भारत के उन हिस्सों में मनाया जाता है जहाँ हिंदू संस्कृति…

सावित्री ने यमराज से पति को वापस पाया, उसी याद में रखा जाता है यह व्रत
Vat Savitri :  वट सावित्री व्रत मुख्य रूप से भारत के उन हिस्सों में मनाया जाता है जहाँ हिंदू संस्कृति में पतिव्रता धर्म और पारंपरिक व्रतों का विशेष महत्व है। यह व्रत विशेष रूप से विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी दांपत्य जीवन की कामना के लिए करती हैं। वट सावित्री व्रत मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात , झारखंड, दिल्ली और अन्य शहरी क्षेत्रों में मनाया जाता है धार्मिक परंपराओं को मानने वाले परिवारों में यह व्रत महानगरों में भी श्रद्धा से किया जाता है।

वट सावित्री व्रत का महत्त्व

वट सावित्री व्रत एक पवित्र हिंदू व्रत है, जो विशेष रूप से सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए करती हैं। आप को बता दें यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को रखा जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं और सावित्री-सत्यवान की अमर कथा पर आधारित वट सावित्री व्रत की कथा सुनती है सुहागिन महिलाओं के लिए ये दिन बहुत खास माना जाता है। इस व्रत को महिलाएं सावित्री की तरह संकल्प, निष्ठा और भक्ति से करती हैं।

इस व्रत को वट सावित्री व्रत क्यो कहा जाता है ?

(1)  वट यानी बरगद का पेड़ । इस व्रत के दिन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं, उसकी पर धागा लपेटती हैं और परिक्रमा करती हैं ।
(2)  सावित्री यानी एक आदर्श पतिव्रता स्त्री यह एक पवित्र और आदर्श पत्नी थीं, जिन्होंने अपने मृत पति सत्यवान को यमराज से वापस जीवन दिलाया था। यह घटना वट वृक्ष के नीचे घटी थी, इसलिए तभी से यह परंपरा प्रचलित हो गई कि महिलाएं इस दिन व्रत रखकर वट वृक्ष की पूजा करें और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करें। धार्मिक विश्वासों के अनुसार, इस व्रत के पालन से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है, साथ ही दांपत्य जीवन में सुख, शांति और स्थिरता बनी रहती है।

वट सावित्री व्रत की कथा

बहुत समय पहले राजा अश्वपति की पत्नी मालवती ने संतान प्राप्ति के लिए तप किया, जिससे देवी सावित्री की कृपा से उन्हें एक कन्या प्राप्त हुई जिस का नाम सावित्री रखा । सावित्री ने स्वयंवर में वनवासी सत्यवान को पति चुना, जिसे अल्पायु बताया गया था। फिर भी उसने सत्यवान से विवाह किया। एक वर्ष बाद, सत्यवान की मृत्यु के दिन सावित्री ने उपवास रखा और वटवृक्ष के नीचे सत्यवान के साथ गई। सत्यवान बेहोश होकर गिर पड़ा और यमराज उसके प्राण ले गए। सावित्री यमराज के पीछे चलती रही। उसकी निष्ठा से प्रसन्न होकर यमराज ने उसे वरदान दिए। सौ पुत्रों का वर मांगने पर यमराज को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने सत्यवान को जीवनदान दे दिया।

वट सावित्री व्रत की विधि

 वट सावित्री व्रत के अवसर पर देशभर में सुहागिन महिलाओं ने उपवास रखकर परंपरागत पूजा विधि का पालन किया। महिलाओं ने सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लिया और सोलह श्रृंगार करके वट वृक्ष की पूजा की।
उन्होंने बरगद के पेड़ की जड़ों में जल चढ़ाया और जल, फल, फूल, रोली, मौली, अक्षत, धूप व दीप अर्पित किए। तत्पश्चात वट वृक्ष की परिक्रमा की गई, जिसमें मौली (धागा) लपेटा गया और प्रत्येक परिक्रमा में पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना की गई। महिलाओं ने सावित्री-सत्यवान की कथा भी सुनी और सुनाई। अंत में आरती कर पूजा में हुई त्रुटियों के लिए क्षमा याचना की गई। शाम को उपवास खोला गया।    Vat Savitri 
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