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Sawan Special: कौनसे हैं वास्तविक शिव – लिंग रूप या महेश रूप?

Sawan Shiv Ling

Sawan Special – हाल ही में मनाई गई सावन (sawan) शिवरात्रि पर हजारों लाखों लोगों ने मंदिर जाकर रुद्राभिषेक किया। जब महामारी में मंदिर में एकत्रित होना वर्जित था, तब घरों में ही पार्थिव (पृथ्वी से संबंधित अर्थात मिट्टी के) शिवलिंग बनाकर यथाशक्ति रुद्राभिषेक किया गया। यह कार्य थोड़ा सरल इसलिए भी हो जाता है, क्योंकि निराकार शिवलिंग बनाने के लिए कला नही बल्कि श्रद्धा अधिक महत्वपूर्ण है।

हिंदू सभ्यता में माने गए 33 कोटि देवी–देवताओं में एक भगवान शिव ही हैं जो साकार और निराकार, दोनो रूप में पूजे जाते हैं। उनकी पूजा का लाभ लिंग (चिन्ह) और वेर (मूर्ति) दोनो से समान प्राप्त होता है। लिंग ब्रह्मभाव का चिन्ह है और वेर महेशभाव का चिन्ह है।

शिव पुराण में बताया गया है कि सृष्टि के आरंभ में जब भगवान विष्णु ने आँखें खोली, तो उनके समक्ष एक महा तेजस्वी, आकर रहित ऊर्जा पहले से उपस्थित थी। इसी शक्ति को परब्रह्म कहा जाता है। यह शक्ति संसर में सर्वोच्च है। इसी से समस्त संसार उत्पन्न हुआ है और यह सभी प्रकार के वर्णन से परे है। उसके पश्चात भगवान विष्णु ने अपनी नाभि से निकलते हुए ब्रह्मा जी को देखा। ब्रह्मा जी ने विष्णु जी के सामने ही प्रथम बार आँखें खोली।

तो कैसे बने शिव के दो रूप?

उपर्युक्त घटनाक्रम से समझा जाता है की प्रथम उपस्थित वो अंग–आकृति रहित ऊर्जा भगवान शिव ही हैं। भगवान शिव ही साक्षात परब्रह्म हैं और ब्रह्मरूप होने के कारण उनके निराकार स्वरूप का प्रतीक लिंग परम पूजनीय है।

विष्णु जी और ब्रह्मा जी के आग्रह पर बाद में भगवान शिव साकार रूप में प्रकट हुए और उस भव्य रूप को भी पूजा जाने लगा। विष्णु जी और ब्रह्मा जी में विवाद के समय भी भगवान शिव एक ज्योतिर्मय स्तंभ के रूप में प्रकट हुए थे जिसका न कोई प्रारंभ था न अंत। इसलिए शिव अनादि है और अनंत भी।

सावन (sawan) में परम पूजनीय शक्ति तो एक ही है परंतु स्वरूप दो हैं। अब शिव भगवान हैं तो उन्हें दिखावे के मोह से मुक्ति जा उदाहरण माना जाता है। लेकिन यहीं अगर कोई मनुष्य अलग स्तिथियों में अथवा भिन्न लोगों के साथ एक समान प्रतीत ना हो तो उसे दोमुंहा या दोगला समझा जाता है।

अब इसमें समझने वाली बात ये है की वही सूर्य जो बर्फ पिघलाता है, मिट्टी को ठोस बना देता है। इसलिए यदि प्राणी हर समय एक सा नहीं है, तो उसका कारण केवल वो प्राणी नही, उसके आस-पास का वातावरण और संगति भी हो सकते हैं।

ऐसे में हमें भोलेनाथ से यह ज्ञान लेना चाहिए की रूप चाहे जैसा भी हो, मनुष्य को सदैव अपने अंतर्मन को स्थिर रखना चाहिए। परिस्थितियों के अनुरूप कर्म भले ही भिन्न हो जाएं परंतु प्राणी के मन के भाव को अटल रहना चाहिए। भगवान शिव चाहे जैसे दिखें, चाहे वरदान दें या संहार करें, मंशा संसार के उधर की ही होती है। वैसे ही हमें भी स्वच्छ विचार और पवित्र आचरण का उद्देश्य नहीं भूलना चाहिए, उसके मार्ग जरूर सबके लिए अलग हो सकते हैं।

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