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Shab-E-Barat : इस्लाम में शब-ए-बारात का महत्वपूर्ण स्थान, जानिए क्यों मनाया जाता है ये त्यौहार

Shab-e-Barat: Important place of Shab-e-Barat in Islam, know why this festival is celebrated

Shab-e-Barat: Important place of Shab-e-Barat in Islam, know why this festival is celebrated

 

Shab-E-Barat :  लखनऊ: इस्लाम में शब-ए-बारात के पर्व को काफी महत्वपूर्ण स्थान है। मुस्लिम कैलैंडर के अनुसार शाबान माह की 14वीं तारीख इस्लाम में शब-ए-बारात के पर्व को काफी महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। मुस्लिम कैलैंडर के अनुसार शाबान माह की 14वीं तारीख के सूर्यास्त के बाद विश्व भर के विभिन्न देशों में इस त्योहार को काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। वहीं इस साल यह पर्व 8 मार्च को होगा। मुस्लिम धर्म में इस रात को बहुत ही महिमावान और महत्वपूर्ण माना गया है। इस दिन लोग मस्जिदों के साथ कब्रिस्तानों में भी इबादत के लिये जाते है। इसके अलावा पिछले साल के किए गये कर्मों का लेखा-जोखा तैयार होने के साथ ही आने वाले साल की तकदीर भी तय होती है। यहीं कारण है कि इस दिन को इस्लामिक समुदाय में इतना महत्वपूर्ण स्थान मिला हुआ है।

Shab-E-Barat :

मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने की अपील

बता दें कि इस साल यह त्यौहार बुधवार यानी 8 मार्च को मनाया जाएगा। वहीं हिन्दू धर्म का प्रमुख त्यौहार होली भी इसी दिन है। ऐसे में मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने होली और शब- ए- बारात को लेकर लोगों से अपील की है। उन्होंने कहा कि पिछले साल की तरह इस बार भी एक ही साथ होली और शब-ए-बारात मनाई जाएगी। इसलिए इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया की तरफ से एडवाइजरी जारी की गई है। इसमें तमाम मुसलमानों और हिन्दू भाईयों से अपील की है। हर साल की तरह इस साल भी एक दूसरे के मजहबी जस्बात का ख्याल रखें और कोई ऐसी हरकत ना करें जिससे होली खेलने और शब- ए- बारात में कब्रिस्तान जाने में दिक्कत हो। वहीं मुस्लिम धर्म से जुड़े लोगों से अपील की गई है कि वह कब्रिस्तान शाम 5:00 बजे के बाद ही जाएं जिससे हिंदू भाइयों को होली खेलने में कोई दिक्कत ना हो और आपको भी कब्रिस्तान जाने में किसी प्रकार की दिक्कत ना हो।

Shab-e-Barat: Important place of Shab-e-Barat in Islam, know why this festival is celebrated

कब्रिस्तान और मस्जिदों में की जाती है सजावट

सुन्नी मुसलमानों मानते ​​हैं कि इस पाक दिन अल्लाह ने नूह (ईसाई धर्म में नूह) के संदूक को बाढ़ से बचाया था। वहीं शिया मुसलमानों के 12वें इमाम मुहम्मद अल महदी की पैदाइश शाबान की 15 तारीख को मानते हैं। इस्लाम धर्म के अनुयायी के लिए ये त्यौहार बहुत अहम होता है।शब-ए बारात की रात ऐसी रात है जो सभी गुनाहों से गुनाहगार को माफी दिलाती है। इस पाक रात के दिन जो भी सच्चे दिल से अल्लाह की इबादत करता है, उसके सामने अपने गुनाहों से तौबा करता है परवरदिगार उसे माफी अता करता है। इसीलिए मस्जिदों और कब्रिस्तानों में इस दिन मुस्लिम लोग अपने पूर्वजों को याद करने के लिए पहुंचते हैं। घरों में मीठे पकवान बनते हैं और इन्हें दुआ करने, इबादत के बाद गरीबों में बांटा भी जाता है। इसके अलावा मस्जिदों और कब्रिस्तानों में की गई खास सजावट देखते ही बनती है। यही वजह है कि मुस्लिम समुदाय के लोग इसके लिए खास तैयारियां करते हैं।

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फूल और अगरबत्ती जलाकर किया जाता है याद

इस दिन केवल खुदा की इबादत ही नहीं की जाती बल्कि वो अपने जो अल्लाह को प्यारे हो गए हैं उनकी कब्र पर जाकर पूरी रात दुआ की जाती है। फूल और अगरबत्ती के जरिए उनको याद किया जाता हैं। कब्रों पर चिराग जलते हैं और दुनिया को अलविदा कह गए अपनों के लिए मगफिरत की दुआएं पढ़ी जाती हैं। माना जाता है कि रहमत की इस रात में अल्लाह पाक कब्र के सभी मुर्दों को आजाद कर देता है। ये रात इस्लाम में 4 मुकद्दस रातों में से एक मानी जाती है। पहली होती है आशूरा की रात, दूसरी शब-ए-मेराज, तीसरी शब-ए-बारात और चौथी शब-ए-कद्र की रात कही जाती है। मुस्लिम समुदाय मानता है कि उनके वो अपने इस रात वापस अपने घर का रुख कर सकते हैं, इसलिए शब ए बारात की रात मीठा बनाने का रिवाज है।

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