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Ujjain Mahakal: उज्जैन का महाकाल मंदिर जहा दर्शन मात्र से मोक्ष की प्राप्ति होती है 

Ujjain Mahakal:

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Ujjain Mahakal: उज्जैन का महाकाल मंदिर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों मे से एक है ।यह एक ऐसा ज्योतिर्लिंग है जो दक्षिणमुखी और स्वयंभू  है । ये मंदिर अपने रहस्यों को लेकर काफी चर्चा मे बना रहता है । ऐसी मान्यता है  कि इसके दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है । इस मंदिर की प्रशंसा महाकवि  कालिदास जी ने मेघदूत मे की थी। प्रतिवर्ष और सिंहस्थ के पूर्व इस मंदिर को सुसज्जित किया जाता है। उज्जैन पांच हजार साल पुराना नगर माना जाता है। इसे अवंती, अवंतिका, उज्जयिनी, विशाला, नंदिनी, अमरावती, पद्मावती, प्रतिकल्पा, कुशस्थली जैसे नामों से जाना जाता है। महाकालेश्वर मंदिर की भस्म-आरती भक्तों के बीच बेहद लोकप्रिय है। इसमें ओंकारेश्वर और नागचंद्रेश्वर के शिलालेख और गणेश, कार्तिकेय और पार्वती के चित्र भी हैं।इसे पृथ्वी का नाभिस्थल भी कहा जाता है क्योंकि इस मंदिर के शिखर से कर्क रेखा भिन्न है।

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महाकालेश्वर स्वयंभू होने की कथा:

उज्जैन का महाकाल

Ujjain Mahakal: माना जाता है कि भगवान शिव को उज्जैन नगरी बेहद प्रिय है । उज्जैन मे भगवान शिव के काफी भक्त निवास करते थे,वही इसी नगरी मे दूषण नामक दैत्य ने बहुत आतंक मचा रखा था। उसके आतंक से बचने के लिये भक्तों ने भगवान शिव की अराधना करने लगे। भक्तों की पूजा और तपस्या से प्रसन्न हो कर महाकाल स्वयं वहा प्रकट हुए और राक्षस का वध किया। इसके बाद भक्तों ने भगवान शिव से हमेशा के लिए उज्जैन में निवास करने की प्रार्थना की और तभी भगवान शिव वहाँ महाकाल ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए।

सभी ज्योतिर्लिंगों मे से महाकाल ऐसा ज्योतिर्लिंग  है जिसकी प्रतिष्ठा पूरी पृथ्वी के राजा और मृत्यु के देवता मृत्युंजय महाकाल के रूप में की जाती है। कहा जाता है कि पृथ्वी के केंद्र उज्जैन में इसी शंकु यंत्र पर महाकालेश्वर लिंग स्थित है। यहीं से पूरी पृथ्वी की काल गणना की जाती है।

महाकाल मंदिर के सामने से कोई बारात नहीं निकलती क्योंकि बाबा के सामने कोई घोड़े पर सवारी नहीं कर सकता ।

बाबा की सुबह होने वाली भस्म आरती शमशान कि चिता की राख से की जाती। महाकालेश्वर को उज्जैन का राजा माना जाता है और इसलिए राजाओं को यहाँ आना वर्जित है। ऐसी मान्यता है कि अगर राजा इस नगरी में रात में ठहरने की जहमत उठाते हैं तो उनका राजपाट हाथ से निकल जाता है। प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री आज भी रात के वक्त उज्जैन में नहीं ठहरते।

Ujjain Mahakal: भस्म आरती की परंपरा:

उज्जैन का महाकाल

जब दूषण नामक राक्षस ने आक्रमण किया था। दैत्य के इस आक्रमण से महाकाल ने भक्तों की रक्षा की थी। इसके पीछे राक्षस की राख से अपना श्रृंगार किया और हमेशा के लिए वहीं बस गए। तभी से उज्जैन में भस्म आरती की परंपरा आने लगी है।महाकालेश्वर मंदिर में आरती के समय कपाट बंद हो जाते हैं और केवल मंदिर के पुजारी ही बाबा का शृंगार करते हैं। आजकल बंद कमरे में आरती की पूरी प्रक्रिया को रिकॉर्ड भी किया जाता है। महाकाल की भस्म आरती का समय ब्रह्म महूर्त में सूर्योदय से 2 घंटे पहले और शाम को आरती का समय 6.30 से 7 बजे तक ईव आरती की जाती है।

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