History of Samosa : समोसा शब्द सुनते ही सबके मुहँ मे पानी आने लगता है ।कोई भी चाय पार्टी बिना समोसे के पूरी नही होती है । शाम को लगने वाली छोटी सी भूख हो या सुबह का नाश्ता किसी भी समय समोसे का अपना ही मज़ा है। कोई समोसा छोला,तो कोई समोसा सब्जी ,समोसा चटनी के साथ खाना पसंद करता है ।ज्यादातर लोग इसे चाय के साथ खाना पसंद करते है ।ये 10 रुपये मे मिलने वाला समोसा लाखो रूपये का व्यापार करता है
History of Samosa :
समोसे का इतिहास: समोसे का इतिहास बहुत पुराना है ।कहा जाता है कि समोसा एक फ़ारसी शब्द “सम्बोसाग “से बना है ।समोसे का इतिहास 2 हजार वर्ष पुराना है जब आर्य भारत आये थे ।ये ईरान से चलकर भारत आया था। कहा जाता है कि महमूद गजनवी के दरबार के शाही खाने मे मीट कीमे और सुखे मेवे से भरी एक नमकीन डिश परोसी जाती थी। जो लगभग समोसे जैसे ही दिखतीं थी ।
समोसे मे आलू कहा से आया : भारत मे आलू की खेती बहुतायत मे होती है। 16 सदी के समय पुर्तगाल भारत मे आलू लेकर आये।तभी से आलू की उपज मे बढ़ोत्तरी होने के कारण आलू का उपयोग समोसे मे भरने के लिये होने लगा था । भारतीयों ने अपने स्वाद के अनुसार उसमे पिसा धनिया,अदरक,मिर्ची आदि का प्रयोग होने लगा।
तभी से भारतीय समोसे का अविष्कार हुआ।तभी से आलू वाले समोसो को इत्ना पसंद किया जाने लगा की मीट वाले समोसो की जगह आलू के समोसे ने ले ली।
जगह के अनुसार समोसे का बदलता रूप: जिस तरह जगह के अनुसार समोसे के अन्दर भरा जाने वाला आलू बदल जाता है उसी तरह इसकी उपरी परत मे भी बदलाव होता रहा है ।कराची मे मिलने वाले समोसे की उपरी परत इतनी पतली और हल्की होती है की इसे कागजी समोसा कहा जाता है ।
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वही पश्चिम्बंगाल मे मिलने वाले समोसे को सिंघाड़ा कहते हैं इसकी बनावट पानी मे मिलने वाले फल सिंघाड़े की तरह होती है ।इसलिये वहा के लोग इसे सिंघाड़ा कहते हैं ।हर गांव कस्बे,और हर गली नुक्कड़ पर आसानी से मिलने लगा।इस हर दिल अजीज समोसे ने अपनी जगह हर देश गांव,शहरों मे बना ली।विदेशों मे तो फ्रोजेन समोसे का निर्यात भी होता है ।इस तरह लाजवाब समोसे ने अपनी जगह पूरे देश मे बना रखी है ।